सबके राम
सबके राम
फटी साड़ी का पल्लू संभालते हुए उसने फूलों की टोकरी पंडितजी के दरवाज़े पर रख कर उन्हें आवाज़ लगाई " पंडितजी आ कर फूल चुन लीजिए वरना आप कहेंगे कि आपके राम लाल्ला के लिए टूटे फूल देकर गई है कुसुम"
आवाज़ सुन कर पंडितजी बाहर आए और सुंदर फूल चुनते हुए उन्होंने कुसुम से कहा "तुझे कल ही नई साड़ी दी थी कि राम मंदिर के भूमि पूजन पर पहन लेना और तू फिर यही चीथड़ा लपेट आईं, नई साड़ी क्यों नहीं पहनी"?
"अरे पंडितजी मेरे राम के आने का पूरी ज़िन्दगी ऐसे चीथड़े पहने ही इंतजार किया है, वो मुझ शबरी को ऐसे ही जानते हैं,जो नई साड़ी पहन ली तो आप जैसा समझ कर मुझ भिखारी को ना देखा तो? मैं तो राम जनम पर पहनूंगी तुम्हारी नई साड़ी, अभी मुझे इसी में संतोष है। मेरी पड़ोसन है सलमा उसके सामने नई साड़ी पहने का दिल नहीं करता "उसका लड़का मर गया था दंगों में, वो कह रही थी हो सके तो अपने राम से कहना मेरे बेटे को जन्नत नसीब करें और उसे शांति दें, उससे जो भी भूल हुईं हो माफ़ करें, मै जानती हूं राम रहीम सब एक हैं, यदि मेरा असलम ये समझ कर दंगाइयों की बातों में नहीं आता तो आज जिंदा होता, कुसुम बहन, तू तो पंडितजी को जानती है उन्हीं से कहना मेरी अर्जी लगा दें अपने राम के पास"।
" क्यों पंडितजी लगा दोगे ना असलम के नाम की अर्जी, मैं तो राम लल्ला को अपने मन में बोल दी हूं, पर आज उनके मंदिर का भूमि पूजन है तो शायद वो साक्षात यहां आकर कृपा बरसाएं"
पंडितजी अपने राम लल्ला की महानता और हर मन में बसने की कला को नमन करते हुए बोले" जब सलमा अपने सच्चे मन से श्री राम को अर्जी देना चाहती है तो भला मैं क्यों नहीं राम से प्राथना करूंगा", और उन्होंने अपने गाल पर फिसला आंसू झट से पोंछ लिया।