दफ्तर में खून भाग 9
दफ्तर में खून भाग 9
गतांक से आगे-
जब मालिनी की नजरें प्रभाकर से मिलीं तो वह खिसियाकर इधर उधर देखने लगी लेकिन उसका चेहरा फ़क पड़ चुका था।
प्रभाकर ने पूछा, आप ने अपनी कुहनी क्यों चेक की मैडम? आप तो कल नहीं गई थी न? वैसे भी ऐसा कोई केमिकल नहीं होता है। मैंने ब्लफ मारा जिसमें आप फंस गईं।
मालिनी गड़बड़ा गई और उसके गले से अस्पष्ट सी आवाजें आने लगीं। प्रभाकर ने सख्त होते हुए कहा, अब सब बकोगी या हवालात में चलकर पूजा की जाए? मुझे पता है कि आपने भी वंदना के साथ ही काली पट्टी वाली चप्पलें खरीदी थी।
प्रभाकर के साथ दो लंबी तगड़ी महिला सिपाही भी थीं, जब मालिनी कुछ नहीं बोली तो प्रभाकर ने उन्हें इशारा कर दिया इसपर एक ने मालिनी के बाल पकड़े और दूसरी ने ऐसा चांटा मारा कि उसकी आँखों के आगे चाँद तारे नाच उठे। वह रोती हुई सब बताने पर राजी हो गई ।
हाँ ! मैंने ही मारा है अग्निहोत्री और पांडे को! वह चिल्लाकर बोली, मेरी जगह कोई भी होता तो यही करता ।
क्यों ? प्रभाकर बोला, आखिर ऐसा क्या किया था दोनों ने?
मैं जब से इस कार्यालय में आई हूँ , अग्निहोत्री मेरे पीछे बुरी तरह पड़ा हुआ है। कई तरह से लालच देकर उसने मेरा शोषण करना चाहा। मेरे घर में मैं ही कमाने वाली हूँ, पिताजी को लकवा हो चुका है। मैं नौकरी छोड़ना अफोर्ड नहीं कर सकती थी। जब पानी सिर से ऊपर हो गया तब मैंने तय किया कि इस पिशाच का मर जाना ही ठीक है।
ओह ! मुझे तुमसे पूरी हमदर्दी है मालिनी ! पर तुम्हें हमारे पास आना चाहिए था। प्रभाकर बोला, आगे क्या हुआ?
शामराव मुझसे न जाने क्यों खार खाता था और बिना मतलब लड़ता-झगड़ता था । मैंने अग्निहोत्री का कत्ल करके उसका इल्जाम इसके सिर डालने की योजना बनाई ।परसों जब यह मुझसे लड़ा तब मैंने इसके सैंडविच बना चुकने के बाद, इसका उपयोग किया चाक़ू सावधानी से इस प्रकार उठा लिया कि उसपर से उँगलियों के निशान न मिटें। फिर अगले दिन मैं खुद अपने बैग में ग्रीस से सना रुमाल लेकर ऑफिस आई और खुद के चेहरे पर वह रुमाल फिरा कर शामराव पर इल्जाम मढ़ दिया।
सो क्लैवर! प्रभाकर बुदबुदाया।
मैं जानती थी कि शामराव इस झूठे इल्जाम से तिलमिला जाएगा और अग्निहोत्री भी बवाल करेंगे फिर मेरे एक्शन के लिए जमीन मिल जायेगी।
ठीक सोचा था तुमने, प्रभाकर बोला, बिलकुल वही हुआ, फिर आगे क्या हुआ?
जब शामराव पैर पटकता कूच कर गया तब मैं सबकी नजरें बचाकर अग्निहोत्री के केबिन में गई और मैंने ऐसा जताया मानो मैं उसकी बातें मानने के मूड में हूँ! यह देखकर उसकी बांछें खिल गई। जैसे ही उसने मुझे अपने पास खींचना चाहा मैंने शामराव वाला चाक़ू उसकी छाती में उतार दिया और चुपचाप आकर अपनी सीट पर बैठ गई। आगे तो आप जानते ही हैं, मालिनी बोली।
लेकिन तुमने रामनाथ को क्यों मारा? प्रभाकर ने पूछा।
उसने मुझे हड़बड़ाहट में अग्निहोत्री के केबिन से निकलते देख लिया था और वह मुझे ब्लैकमेल करने पर उतर आया मालिनी बोली। उसने मुझे साफ़ साफ़ कहा कि अगर मैं उसकी बात नहीं मानूँगी तो वह पुलिस को सब बता देगा, मैं उसके सामने सिर झुकाए सोच रही थी कि क्या करूँ तब तक उसने मुझे राजी समझकर दबोचना चाहा। तब मैंने शीशे की वजनी ऐश ट्रे उठाकर उसपर दे मारी और वहाँ से निकल भागी। उस समय शामराव तो ऑफिस में नहीं था, बाकी सब अपने काम में व्यस्त थे तो मुझे किसी ने नहीं देखा।
रामनाथ पांडे को मारने की कैसे सूझी ? प्रभाकर ने पूछा।
आपने कल ऑफिस में आकर जो जाल फेंका, मैं उसमें फंस गई। मुझे लगा कि अगर रामनाथ ने होश में आकर मेरा नाम ले दिया तो मैं फंस जाऊंगी यही सोचकर मैं अस्पताल गई और ट्रेनी डॉक्टरों के दल में शामिल होकर उसकी नाक की नली खींच दी ।
तुम्हें अगर यह पता होता कि रामनाथ तो पहले ही मर चुका है और वह जाल कातिल को फांसने के लिए है तो तुम नहीं आती न ?
मालिनी ने सहमति में सिर हिला दिया।
तुम्हें डॉक्टर का वेश अपनाने की कैसे सूझी?
मैं जानती थी कि अस्पताल में डॉक्टर के गेटअप का बड़ा लाभ मिल सकता है, इसलिए मैंने एप्रन और स्टेथोस्कोप खरीदा और वहाँ आसानी से घुस गई।
वहाँ से भागते समय मुझे इन्हें कहीं फेंकने का मौका नहीं मिला तो ऑफिस में लाना पड़ा।
और खुद को बचाने के लिए तुमने अपनी सहेली को फंसाने के लिए उसकी दराज में इन्हें प्लांट कर दिया? प्रभाकर ने पूछा तो मालिनी का सिर झुक गया।
उसे गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया गया। शामराव, जुंदाल और वंदना के सिर पर लटकती तलवार हट गई और इंस्पेक्टर विनय प्रभाकर का नाम अगले दिन के अखबारों में चमक उठा।
समाप्त ।