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क़त्ल का राज़ भाग 8

क़त्ल का राज़ भाग 8

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क़त्ल का राज़

भाग 8

             अगले दिन ज्योति सम्यक की पत्नी आशा के घर गई। उसका घर कांदिवली पूर्व की दामूनगर नामक विशाल झोपड़पट्टी एरिया के बीच एक खस्ताहाल इमारत में पहली मंजिल पर था। दरवाजा एक दस बारह साल की लड़की ने खोला जिसका चेहरा हूबहू सम्यक जैसा था। ज्योति समझ गई कि यही सम्यक की बेटी ईशा है। ज्योति ने अपना परिचय देते हुए उसकी मम्मी से मिलने की इच्छा जताई तो ईशा ने ज्योति को सोफे पर बैठने को कहा और भीतर चली गई फिर तुरंत ही लौटी तो तौलिये से हाथ पोंछती हुई आशा उसके पीछे पीछे आ गई। 

"जरा कपड़े धो रही थी, आशा ने कहा। वो दोहरे बदन की स्त्री थी जो किसी जमाने में खूब सुंदर रही होगी ऐसा ज्योति ने सोचा पर अब चर्बी उसके बदन पर कब्ज़ा कर चुकी थी। ऊपर से दुखी पारिवारिक जीवन का क्लेश उसकी आँखों के गिर्द काले घेरे के रूप में अड्डा बना चुका था। ज्योति ने बताया कि वो उसके पति को बचाने की कोशिश कर रही है इसी सम्बन्ध में कुछ बातें करने आई है तो आशा बोली आपको किसने अपॉइंट किया है मैडम? मेरे पास तो आपको देने के लिए फूटी कौड़ी भी नहीं है।

ज्योति उसके भोलेपन पर मुस्कुराती हुई बोली, "आशा जी मैं आपके यहां फीस मांगने नहीं आई हूँ! सम्यक मेरा कॉलेज का मित्र रहा है तो उसका केस मैं मुफ़्त लड़ रही हूँ। यहां तो मैं आपसे सम्यक के बारे में कुछ जानने आई हूँ। 

पूछिये क्या पूछना चाहती हैं? मानो राहत की सांस लेती आशा बोली।

कॉलेज में सम्यक एक हंसमुख और मस्त लड़का था वो ऐसा शराबी कैसे बन गया?

मेरी फूटी किस्मत से बन गया और क्या? शादी के बाद कुछ समय उसका चाल-चलन और बर्ताव अच्छा रहा फिर उसने रंग दिखाने शुरू कर दिए। ईशा के जन्म के बाद और जिम्मेदारी दिखाना तो दूर एक नंबर का ऐय्याश और शराबी बन गया। हार कर मुझे तलाक का नोटिस देना पड़ा पर वो इसके लिए भी राजी नहीं था। मैं ईशा पर ऐसे नाकारा इंसान की छाया भी नहीं पड़ने देना चाहती थी तो उसका घर छोड़कर यहां रहने आ गई। अब खुद ही देखो कि वो टुच्चा इंसान क़त्ल करके कहाँ पहुंचा हुआ है।

            ज्योति ने सहमति में सर हिलाया। एक गैरजिम्मेदार इंसान के घर परिवार की क्या अवस्था होती है ये वो खुद अपनी आँखों से देख रही थी। जैसा कुछ दुकानों पर मैंने उधार बेचा वाला पोस्टर होता है जिसमें दुकानदार की हर चीज अव्यवस्थित दिखाई जाती है वही उस घर का हाल था। कपड़े इधर उधर बिखरे पड़े थे। एक कार्डबोर्ड के बड़े से बक्से में ढेर सारे मैले कपड़े ठूंस कर ड्राइंग रुम में ही रखे हुए थे। लगता था आशा को भी घर की साफ़ सफाई से कोई ख़ास लगाव नहीं था। 

मैडम आपका घरखर्च कैसे चलता है आप कोई काम तो नहीं करती न? ज्योति ने पूछा। 

आशा बोली, अपनी बेटी ईशा के नामपर हर महीने पंद्रह हजार सम्यक दे जाता है। इसमें कोताही नहीं करता पर अब क्या होगा? अब तो भूखों मरना पड़ेगा कहकर आशा सुबकने लगी। 

ज्योति ने उसे ढांढस बंधाया और बोली, सच में मुसीबत तो बहुत बड़ी है पर एक बात अच्छी है कि सम्यक ने अपना घर बचा रखा है जो अगर भगवान् न करे उसे कुछ हो जाए तो आपके काम आ सकता है उसके किराये के रूप में आपको कुछ धन मिलता रहेगा। 

आशा ने सहमति में सर हिलाया और बोली हाँ! यह बात मुझे मेरे वकील ने भी बताई है कि अभी हमारा तलाक हुआ नहीं है और मैं उसकी कानूनी पत्नी होने के कारण उस मकान की अधिकारिणी हूँ। इतने में अंदर कपड़े धोने की मशीन टीं-टीं की आवाज करने लगी तो आशा उछलकर खड़ी होती हुई बोली लगता है कपड़े धुल गए! ज्योति भी नमस्ते करके बाहर निकल आई।

 

कहानी अभी जारी है .....

क्या आशा की दुश्वारियों का क्या केस से कोई रिश्ता था?

पढ़िए भाग 9


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