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तेरा साथ है कितना प्यारा

तेरा साथ है कितना प्यारा

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“अच्छा सुनो, मैं जरा अभी आता हूँ, वो दोस्तों का ज़रूरी फोन आ गया है, पार्क में महफ़िल लगा रहे हैं, तो मुझे बुलाया है, तुम ज़रा रात का खाना तैयार करो मैं बस यूँ गया और यूँ आया।" कहते हुए वर्मा जी ने टेबल पर पड़े अपने पैसे और मोबाइल जेब में डाला और चप्पल पहनकर जल्दी से निकल पड़े और मिसेज वर्मा देखती ही रह गईं और सोच में पड़ गयी कि आखिरकार माजरा क्या है ? पहले तो वर्मा जी ऐसे बिल्कुल नहीं करते थे। बस शाम चार बजे पार्क जाते और छः बजे तक घर वापिस आ जाते फिर चाय नाश्ता कर उनकी मदद करते रात का खाना बनाने में। लेकिन अब पिछले कुछ दिनों से ना जाने कौन-सा भूत सवार हो गया जो किसी न किसी बहाने से शाम को भी घर से बाहर निकल पड़ते।

मिसेज वर्मा के मन में अपनी ही खुराफात चल रही थी कि किस तरह पता लगाया जाए। दिमाग में अजीबो-गरीब सोच लिए वो रात के खाने की कब सारी तैयारी कर बैठी पता ही नहीं चला।एक ही बेटी थी दोनों की वो भी शादी के बाद विदेश में सेटल…दोनों के घर में अकेले ही रहने के कारण कुछ ज्यादा काम नहीं होता था फिर भी वर्मा जी अपनी पत्नी की काफी मदद करते थे आखिरकार बहुत प्यार जो ठहरा दोनों के बीच।

बस सब कुछ ठीक हो, कहीं वो मुझसे कुछ छुपा तो नहीं रहे, कही सोचे कि मुझे पता चलेगा तो मैं परेशान हो जाऊँगी लेकिन मैं तो अभी भी परेशान हो रही हूँ, मन में इसी उधेड़बुन के चलते डोर बेल की आवाज़ कानों तक आ पड़ी तो कुर्सी से धीरे-धीरे उठ खुद को संभालती हुई मिसेज वर्मा ने दरवाजा खोला तो वर्मा जी को सामने खड़ा हुआ, " ओह ! सॉरी थोड़ी लेट हो गया कहते हुए वर्मा जी अंदर आये और तपाक से बोले अच्छा सुनो मैं खाना खा कर आया हूँ और सोने जा रहा हूँ तुम भी जल्दी से खाना खा कर और दवाई लेकर सो जाना। कल भी मुझे दोस्तों के साथ जाना है बहुत बिजी शेड्यूल है कल का, इसीलिए आज टाइम से सो कर नींद पूरी कर कल सुबह रिफ़्रेश हो जाऊँगा।" कहते हुए व कपड़े चेंज कर वर्मा जी सोने चले गये, और मिसेज वर्मा गुस्से में मुँह फुला बेमन से एक रोटी खा और दवाइयाँ लेकर सो गईं।

अगली सुबह मिसेज वर्मा का मूड खराब होना स्वाभाविक ही था, वर्मा जी को उठा व चाय की प्याली बना उनके सामने रख दी व कुछ देर चुप रहने के बाद बोलीं, "अरे ! वो अपने पड़ोसी है ना मल्होत्रा जी, उनका इस उम्र में बाहर किसी और औरत के साथ चक्कर चल रहा है, बताओ जी इस उम्र में शर्म भी नहीं आती उन्हें नाती पोती वाले हो कर यह हाल है। सही कहा है किसी ने, कि इश्क औऱ मुश्क छुपाये नहीं छुपते ! अब घर से झूठ बोल बोल कर जाएँगे तो आज नहीं तो कल पकड़े ही जायेंगे, बहुत अच्छा किया मिसेज मल्होत्रा ने जो उनका पीछा कर उन्हें रंगे हाथों पकड़ लिया ऐसा ही होना चाहिए।" वर्मा जी उनकी बातों में ज्यादा दिलचस्पी ना दिखाते हुए बस हाँ में हाँ मिलाते गए और बोले कि "अच्छा अब जल्दी से नाश्ता तैयार कर दो मुझे ज़रूरी काम से बाहर जाना है।"

वर्मा जी की यह बात सुन और गुस्सा आ गया मिसेज वर्मा को, बस नाश्ता करके वर्मा जी घर से बाहर जाकर निकले ही थे कि बड़ी ही फुर्ती से मिसेज वर्मा भी निकल पड़ी उनका पीछा कर सारी बात को जानने के लिए। घर के कुछ दूरी पर बने शॉपिंग मॉल में वर्मा जी घुस गए और मिसेस वर्मा भी उनके पीछे-पीछे। तभी वर्मा जी वहाँ के एक रेस्टोरेंट में चले गए और उनको रंगे हाथों पकड़ने का मकसद ले मिसेस वर्मा उनके पीछे-पीछे रेस्टोरेंट का दरवाजा खोलते हुए जैसे ही अंदर गयी तो उनके ऊपर अचानक से फूलों की वर्षा हो गयी और सामने खड़े सारे रिश्तेदार तालियाँ बजा मिसेस वर्मा के जन्मदिन की बधाई देते हुए नजर आए। कुछ सेकंड्स के लिए मिसेस वर्मा की समझ से सब कुछ परे था तभी हाथों में फूलों का गुलदस्ता लिए सामने खड़े वर्मा जी ने उन्हें जन्मदिन की बधाई देते हुए हाथ में एक सुंदर-सी सोने की अंगूठी पहना दी।

बधाई का तांता लग गया था और विदेश से उनकी बेटी और दामाद जी भी वीडियो कॉलिंग के जरिए उनके इस खूबसूरत पलों में शामिल थे। आज मिसेज वर्मा का जन्मदिन जो कि वो खुद भी भूल गई थी यादगार बन गया था। वर्मा जी अपनी धर्मपत्नी के पास आकर बोले, "यहाँ कि सारी डिशेज तुम्हारी पसंदीदा और स्वाद अनुसार हैं, और हाँ मैंने कल शाम खुद यहाँ आकर सब टेस्ट किया था।” मिसेस वर्मा साहब जी को देख कर हँसने लगी और समझ गयी उनका कल रात का खाना ना खाने का कारण।


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