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Sakshi Nagwan

Drama

4.9  

Sakshi Nagwan

Drama

सपनो का सफर

सपनो का सफर

18 mins
5.2K


एक गाँव में चन्दर नाम का एक लड़का रहता था एक बार की बात है चन्दर की माँ ने उसे कहा," बेटा चन्दर रतिया राम के बाग से अमरुद लेआओ मुझे आज शाम को अमरुद का हलवा बनाना है ,और तुम्हे भी तो बहुत पसंद है ना" इस पर उसके बेटे ने कहा "माँ मुझे अमरुद का हलवा बहुत पसंद है लेकिन मई रतिया राम के बाग से अमरुद नहीं लाऊंगा क्योकि पिछली बार गया था तो उसने मुझको धमकी दी थी की "अगली बार वह उसे नहीं छोड़ेगा " इसलिए मै उसके बाग में नहीं जाऊंगा आप भइया को भेज दीजेए वे बहुत बहादुर है इस पर उसकी माँ ने बड़े गुस्से से कहा " नहीं आज तो तुम ही लेकर आओ गे " इस पर चन्दर ने बड़ी डरी हुए और सहमी हुई आवाज़ में कहा "माफ कीजिये माँ मै इतना बड़ा खतरा मोल नहीं ले सकता" इस पर उसकी माँ ने कहा बस इतने में ही डर गए " क्या तुम्हे पता है अनामिका खुराना कौन है?" इस पर चन्दर ने जवाब दिया नहीं माँ मै नहीं जनता फिर उसकी माँ ने कहा"चलो आज मै तुम्हे अनामिका के सपनो के सफर की कहानी सुनाति हूँ

एक शहर में अनामिका नाम की एक लड़की रहती थी वह अपने माँ -बाप और भाई के साथ मुंबई में रहती थी वह कला -कृतियों में बहुत माहिर थी उसकी कला में उसकी सचाई बखूबी निखर कर आती थी सभी उसकी कला के दीवाने थे उन दीवानो में एक नाम सबसे ऊपर था और वो नाम था आकृति

आकृति उसके बचपन की सहेली थी वह अनामिका से हमेशा एक बात कहा करती थी "की तुम्हारी कला ईश्वर दवारा दिया गया एक नायब तोफा है तुम खुशनसीब हो की भगवान ने तुम्हे चित्रकारी जैसे ये नायाब चीज बक्शी है क्योकि रंगो से खेलना हर किसी के बस की बात नहीं है

अनामिका ने अपनी कला के दम पर सब के दिलो पर राज कर लिया था शहर की बड़ी बड़ी पर्दर्शनीयो के मालिक उसकी कला कृतियों को खरीदने के लिए मिनते किया करते थे एक दिन की बात है की अनामिका अपनी प्रतियागिता की तैयारी कर रही थी तभी अचानक उसके पास एक फ़ोन आया फ़ोन पर एक आदमी ने उससे कहा "की तुम अपना नाम प्रतियोग्यता से वापस ले लो अगर तुम ने ऐसा ना किया तो तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा प्रतियोगिता से नाम वापस लेने के लिए तुम्हे मुँह-मांगी कीमत मिलेगी तभी वह ये सब सुनकर बड़े गुसे से बोली "तुम हो कौन और मै तुम्हारी इन खोखली धमकियों से डरने वाली नहीं हु " इतना सब कुछ कहने और सुनने के बाद वह आदमी बिना कुछ कहे फ़ोन काट देता है फ़ोन कटने के बाद वह फिर से अपनी तैयारिओं में लग जाती है ठीक एक हफ्ते के बाद उसके प्रतियोगिता थी वह सुबह जल्दी उठ कर तैयार हो गई जाने से पहले वह अपनी माँ से मिल कर गई उसने अपनी माँ को कहा "माँ मै जा रही हूँ , मुझे आशीर्वाद दीजिये की मै इस प्रतियोगिता में अव्वल आ सकू ,क्योकि यह प्रतियोगिता मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है " उसकी माँ ने कहा ,"मेरा आशीर्वाद सदैव तेरे साथ है" परन्तु आज उसकी माँ के चेहरे पर चिंता की रेखाए झलक रही थी , अनामिका ने अपनी माँ से पूछा ,"माँ क्या हुआ आप इतनी परेशान क्यों है कुछ हुआ है क्या "? इस पर उसकी माँ ने कहा ,"नहीं बेटा मै परेशान नहीं हूँ पर मेरा दिल बहुत घबरा रहा है मानो कुछ गलत होने वाला है मुझे रह-रह कर तुम्हारी चिंता सताय जा रही है मेरे दिल में न चाहते हुए भी कई गलत भाव उमड़ कर आ रहे है मानो कुछ बहुत गलत होने जा रह है" अपनी माँ की ये सब बाटे सुन कर वह जोर से हंस पड़े और उसने अपनी माँ से कहा "औ ! मेरी फिल्मी माँ ,तुम जरा नाटक देखना कम कर दो ऐसा कुछ भी नहीं है यह तुम्हारे मन का वहम है और आज मै पहेली बार थोड़ा न जा रही हूँ जो तुम इतना डर रही हो " इस पर उसकी माँ ने अपनी रुंधी हुई आवाज़ से कहा "क्या करू मजबूर हूँ माँ का दिल है इतनी आसानी से कैसे मान सकता है " इतने में ही पीछे से उसके पापा और भाई आ गए और उसके पापा ने कहा ,"तुम माँ बेटी की बाते तो ख़तम ही नहीं होती " इतने में ही उसके भाई ने कहा "दीदी जल्दी जाओ कही ये न हो की आप यहाँ अपने सपनो का सफर सजाते रहो और वहा कोई और आपके सपनो के सफर पर अपना हक जमा ले " इतने में ही अनामिका अपनी प्रतियोगिता के लिए चल पड़ती है

वह जैसे ही वहा पर पहुंची तो उसने देखा की वहा पर हज़ारो की तादात में प्रतियोगी हिसा लेने के आए हुए थे ऐसे लग रहा था मनो सरे संसार के रंग एक जगह इकठे हो गए हो उन सबको एक ऐसा चित्र बनाना था जिसे देख कर समाज और आपके बिच में गहरा सम्बंद नज़र आए इतना सब सुनते ही सभी प्रतियोगी अपने अपने चित्र बनाने शुरू कर दिए अनामिका भी अपना चित्र बना रही थी अचानक उसके पास एक लड़का आया और बड़े द्वेष के भावना के साथ बोला ,"कहा था ना तुम्हे की नाम वापस ले लो वरना तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा " यह सुनते ही उसने कहा ,"अपनी हद में रहो ," उसकी यह बात सुनकर वह आदमी शातिर हंसी हंस कर आगे बढ़ गया उस आदमी की ऐसी हंसी सुन कर अनामिका कुछ पलो के लिए सहम गए और सोचने लगी क्या मैने सच में कोई बड़ी गलती तो नहीं कर दी परन्तु कुछ क्षणों बाद वह दोबारा अपना चित्र बनाना शुरू कर देती है चित्र बनाते -बनाते लगभग ६ घंटे बित चुके थे इतने में ही अचानक एक घोषणा हुई की "सभी प्रतियोगी अपने -अपने चित्र बना कर समाप्त कर ले और एक घंटे तक प्रतियोगिता के परिणाम घोषित किये जाएगें

प्रतियोगिता के परिणाम आ चुके थे, सभी यह सोच रहे थे की हम विजेता हो परन्तु उस वक्त अनामिका के मन में कुछ और ही चल रहा था इस प्रतियोगिता मैं बताया गया की हर भाग मैं से चार - चार प्रतियोगी चुने जाएंगे और फिर वो प्रतियोगी अगले पड़ाव पर जाएंगे जब अनामिका के भाग का परिणाम बताने का समय आया तो वह कुछ डरी हुई लग रही थी विजेताओं के नाम बोले गए- चौथे नंबर पर है अथर्व तीसरे नंबर पर स्मिता दूसरे नंबर पर धनन्जय(जो की अनामिका का दुश्मन था ) और हमारे दिलो पर राज करने वाली, रंगो से खेलने वाली और अपने चित्र से बोलने वाली हमारी विजेता का नाम है अनामिका खुराना

अनामिका ने जैसे ही अपना नाम सुना तो मनो उसके दिल का सारा डर ख़ुशी में निकल गया हो उसके दिल में मनो खुशियो ने अपना डेरा डाल लिया हो अनामिका को मंच पर बुलाया गया और उसे सम्मानित किया गया उसे ३ साल का कॉन्ट्रैक्ट दिया गया और साथ ही २ लाख का चेक और साथ ही में २५ हजार की स्कालरशिप दी गयी जिस की सहायता से वह अपनी प्रतिभा को और भी निखार सके और वह बैठे अतिथि गणो ने उसकी प्रतिभा को और भी प्रोत्साहित किया यह सब कुछ देख कर धनन्जय की नफ़रत ने एक अलग ही रुख ले लिया था वह जिसे ही अपने घर के लिए निकली तो अचानक वह एक वहां से दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है

उसे दुर्घटनास्थल पर उपस्थित व्यक्ति उसे हस्पताल ले गए हस्पताल वालो ने अनामिका के घर पर फ़ोन कर के उसके हादसे के बारे में सुचना दे दी जैसे ही उसके घर वाले हस्पताल पहुंचे तो डॉक्टर ने उन्हें बताया की अप्प पर भगवान की असीम कृपा है जो की इतने बड़े हादसे के बाद भी आपकी बेटी बच गयी बस एक बात का अफ़सोस है की वह अब कभी भी चित्रकारी नहीं कर पायेगी क्योकि हादसे में उसके सीधे हाथ ने काम करना बंद कर दिया है यह सुनकर उसके पिता ने अपनी काँपती हुई आवाज में कहा ,"चित्रकारी नहीं कर सकती आप ये क्या कह रहे हैं डॉक्टर साब मेरी बची अब कभी चित्रकारी नहीं कर पायेगी। " डॉक्टर ने जवाब देते हुए कहा,"अपने सही सुना हैं आप तो भगवान का शुक्र मनाइये की आपकी बेटी बच गयी "उसके पिता की ऐसी दर्द भरी बाते सुनकर डॉक्टर ने उस से कहा,"कृपा आप हिम्मत मत हारिये अनामिका को आपकी जरूरत हैं ।" उसके पिता ने पूछा क्या हम अपनी बची से मिल सकते हैं तो इस पर डॉक्टर ने कहा ,"हाँ, मिल सकते हैं परन्तु आप उससे जायदा बात मत कीजियेगा ।" वे जैसे ही उससे मिलने गए तो वह हस्पताल के बिस्तर पर बेजान सी पड़ी थी मनो वह जिंदा लाश हो। जैसी ही उसके पिता ने उसके सर पर हाथ रखा तो वह रो पड़ी इतने में ही डॉक्टर अनामिका के कमरे में आये और बोले,"अब यह बिलकुल ठीक हैं आप इसे घर ले जा सकते हैं।" जैसे ही अनामिका घर पहुंचकर अपने कमरे में जाती हैं तो वह उस दिन की बात को याद कर के खुद को कोस रही थी । उसके पिता ने उससे पूछा," क्या हुआ?" इस पर उसने जवाब देते हुए एक हफ्ते पहले बीती हुई उस बात को बताया और साथ ही कहा,"अगर उस दिन मैँ उस आदमी की बात मान लेती तो आज मेरे साथ यह ना होता, उसने आज मेरे साथ साथ मेरे सपनो के हाथो को भी अपाहिज किया हैं ।" ऐसा अपने पिता से कहा कर वह जमीं पर गिर कर रोने लगी और साथ ही कहने लगी ,"अब मेरा कोई भविष्य नहीं हैं । मेरे सपने शुरू होने से पहले ही ख़त्म हो गए। अब मेरी जिंदगी में रंगो की कोई जगह नहीं रही क्योंकि अब मेरी जिंदगी अँधेरे के काले रंग में ही बंद हो कर रह जाएगी।"

४ साल बाद

अनामिका के माता पिता और भाई घर की बालकनी में बैठ कर चाय पि रहे थे चाय पीते- पीते अनामिका की माँ बोल उठी चार साल बिते उस हादसे के बाद अनामिका ना तो किसी के साथ बोलती हैं ना कही बहार जाती हैं बस सारा दिन अपने कमरे में गुमसुम सी बैठी रहती हैं इतने में ही घर की घंटी बजती हैं उसके पिता ने कहा "आदि जरा देखो दरवाजे पर कौन हैं इतने में ही आदि दरवाजा खोलने गया उसने देखा की अनामिका की सबसे अच्छी सहेली आकृति खड़ी थी उसने जैसी ही आदि को देखा तो उसने बड़ी ख़ुशी से पूछा "कैसे हो तुम ?" आदि ने उसे जवाब देते हुए उसे अंदर बुलाया इतने में ही उसके माता पिता भी आ जाते हैं उसके माता पिता भी उसे देख कर काफी खुश होते हैं तभी आकृति पूछ पड़ती हैं की " अंकल अनु कहा हैं वह कही देखे नहीं दी रही हैं कही गए हैं क्या?" इस पर अनामिका के पिता ने जवाब देते हुए कहा" नहीं वह अपने कमरे में हैं पर वह किसी से मिलना नहीं चाहती" उसके पिता की ये बात सुन कर आकृति ने कहा "क्यों क्या हुआ " इस पर उसके पिता ने उसके साथ बीती सारी बात उसे बता दी उसके पिता की ये बाते सुन कर उसे काफी दुःख पहुँचता हैं इतना सब सुनने के बाद उसने उसके पिता से कहा"अंकल अब आप चिंता मत कीजये अनु फिर से पेंटिंग करेगी ये मेरा आप से वादा हैं मै अनु से मिलना चाहती हूँ " उसकी माँ कहती हैं ठीक हैं बीटा तुम मिल लो आकृति जैसे ही अनामिका के कमरे में जाती हैं तो वह अनामिका की हालत को देख कर काफी दुखी हो जाती हैं फिर उसने अपनी भावनाओ पर काबू किया और उसने अनामिका को बुलाया अनामिका ने देखा की आकृति उस से मिलने आई हैं आकृति को देख कर वह काफी खुश हो जाती हैं आज इतने वर्षो के बाद उसके चहरे पर इतनी ख़ुशी आई थी उसने आकृति को कहा" आओ बैठो ,तुम कैसे हो तुम्हे काफी वर्षो के बाद देखा हैं " इस पर आकृति ने जवाब दिया "हाँ लगभग ४ शाल बाद मिले हैं वैसे मै अमेरिका से ऍम बी बी एस कर रही हूँ अभी दो महीने की छुटिया हैं इसलिए मै घर आ गई फिर मैने सोचा की मै तुम से भी मिल लू क्योकि तुमसे मिले भी काफी वकत तो गया था इस लिए आ गई मुझे अंकल से तुम्हारे बारे में पता चला इस पर अनामिका रो पड़ी और बोली "आज भी जब मै उस दिन के बारे सोचती हूँ तो वह मंज़र मेरे सामने हूबहू निकल कर मेरे सामने आ जाता है मैने अपनी उस बेवकूफी के रहते मैने अपने सपनो को ही ख़तम कर लिया है उसकी ये बात सुन कर आकृति ने उससे कहा,"जो होता है अच्छे के लिए ही होता है क्या पता तुम्हारे उस हादसे से तुम्हार जीवन में कुछ अच्छा होना हो" इस पर अनामिका हँस पड़ी और बोली "जिसका सहारा और साहस ही उससे छीन जाए उसका कभी भी भला नहीं हो सकता इस पर आकृति ने कहा " और किसी का तो पता नहीं परन्तु इस हादसे से तुम्हारी ज़िंदगी में तो जरूर अच्छा हुआ है उस हादसे में तुम्हारा एक हाथ ख़तम हो गया वही दूसरी और तुम्हारे दूसरे हाथ में भगवान ने उन दोनों हाथो की कार्य क्षमता एक हाथ में डाल दी इस पर अनामिका ने आकृति से कहा,"तुम होश में तो हो तुम्हे पता भी है की तुम क्या बोल रही हो?" उसने अनामिका के सवाल का जवाब देते हुए कहा" अब तुम ही देखो, तुम जो अपना रोजमरा का काम दो हाथो से करती थी पर अब तुम वही काम एक हाथ से भी करके उसे अंजाम तक पंहुचा रही हो बेशक उस काम को करने में तुम्हे वक्त लगता है परन्तु तुम उस काम को अंजाम तक पंहुचा देती हो" इस पर अनामिका ने बड़े भरी मन से कहा " मज़बूरी में किया गए काम में और ख़ुशी के किया गए काम में जमीन और आसमान का अंतर पाया जाता है मज़बूरी में हम पर उस काम को करने के लिए दबाव डाला जाता है वही दूसरी और ख़ुशी में हम पर कोई दबाव नहीं होता है इस पर आकृति ने कहा वही तो मै भी तुमसे कहा रही हूँ की बिना दबाव के अपने सपनो को फिर से उड़ान दो कही ये न हो की वक्त ही तुम्हे अलविदा ना देदे

आकृति की ये सब बाते सुन कर उसके मन में एक क्षण के लिए अपने सपनो को एक नई उड़ान देने का ख्याल आता है फिर दूसरे ही पल वह अपने हाथ को देख कर फिर से पीछे हट जाती है और बड़े दुखी मन से कहती है " मैंने अपने जीवन में एक सपना सितारों की तरह सजाया था मै मानती हूँ की वह मुझे बहुत प्यारा था और बहुत ही कीमती था लेकिन वह सपना बहुत समय पहले टूट चूका है और मैंने भी ऐसे अपना भाग्य समझ कर उसे स्वीकार कर लिया है शायद वो सपना मेरे लिए बना ही नहीं था और जो मेरा है ही नहीं मै उसे पाने की कोशिश भी नहीं करना चाहती उसकी ऐसी बाते सुन कर उसने उसके कमरे में रखे उस कैनवस की और इशारा करते हुए कहा "क्या सच में तुम अपने उस अनमोल सपने को भूल चुकी हो" उसने कहा ज़रा उस आसमान के आंगन को जरा गौर से देखो इसके भी कितने तारे टूट कर जमीन पर गिर गए तो अब मै तुमसे पूछती हूँ " क्या तुम्हे आसमान में कोई फरक देखे देता है?" इस पर उसने आसमान को गौर से देखते हुए कहा "नहीं मुझे कोई फर्क दिखाई नहीं दे रहा है" वह अनामिका को कहती है जो बीत जाता है उसे कल कहते है जब आसमान अपने टूटे हुए सितारों का जो की उसे बहुत प्यारे थे कब शोक मनाता है तो तुम क्यों अपने बेटे हुए कल पर रो रही हो तुम जितना अपने बीते हुए कल पर रोती रहोगे उतनी ही तुम्हारी आने वाली ज़िन्दगी अंधकार में डूबती नज़र आएगी क्योकि बीती बातो को सोच कर सिर्फ दुःख मिलता है और कुछ नहीं तुम अपने बीते हुए कल के बारे सोच कर तुम अपने सुनहरे भविष्य को अंधकार के कुँए में ढकेल रही हो और तुम ही मुझे कहा करती थी "हमें कोई लहार रोक नहीं सकती क्योकि हम मज़िल के दीवाने है मज़िल हमें नहीं बल्कि हम मंज़िल को बनापर यहाँ पर तो एक हवा के झोंके से ही तुम ने अपने कदम पीछे कर लिए उसने कहा "तुम मेरे साथ चलो मै तुम्हे कुछ देखना चाहती हूँ" अनामिका ने पूछा पर तुम मुझे काया देखना चाहती हो? इस पर वह उसे कहती है तुम बस एक बार मेरे साथ चलो वह अनामिका को घर की बालकनी में ले गई उसने पार्क खेल रहे लड़को में से एक की और इशारा करते हुए पूछा" क्या तुम्हे पता है वह लड़का कौन है?" इस पर अनामिका ने जवाब देते हुए कहा" हाँ जानती हूँ ये रक्षित है हम से ३ साल बड़ा है" तुम पता है की वह क्या करता है अनामिका ने कहा नहीं मुझे नहीं पता" आकृति कहती है वह फुटबॉल में स्टेट चैंपियन है उसके साथ भी एक हादसा हुआ था जिसमे उसने अपनी एक टाँग गवा दी थी पर क्या तुम जानती हो उसने कभी हार नहीं मानि और आज वो स्टेट चैंपियन है तुम खुद सोचो फुटबॉल जिसमे दोनों पैरों के दवारा ही खेलना संभव है परन्तु परन्तु चित्रकारी में सिर्फ एक हाथ की ही आवश्यकता पड़ती है फिर चाहे वह दया हाथ वो चाहे बया हाथ हो तुम्हे कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए थोड़ी सी हिम्मत से तुम अपने सपनो के सफर को फिर से सजा सकती हो और वैसे भी किसी ने क्या खूब कहा है " हर काली रात के अँधेरे के बाद सूरज की पहली किरण अपने साथ एक नई ज़िन्दगी और आशा की एक नई किरण अपने साथ लाती है" तुम भी उस नई सुबह की तरह अपने सपनो के सफर को एक नई रौशनी दे कर उसे साकार करो इतना सब कुछ सुनने के बाद वह आकृति के गले से लिपट कर रोने लगी और बोली " अब मै हार नहीं मानूँगी मै फिर से अपने सपनो के सफर को सजा कर उसे एक नई उडान दूँगी

अनामिका अपनी चित्रकारी फिर से शुरू कर देती है यह देख कर उसके परिवार वाले बहुत खुश होते है उनकी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं होता अनामिका अपने चित्र को पूरा करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा देती है शुरू शुरू में तो उसे बहुत कठिनाई होती है परन्तु वह अपनी हिम्मत नहीं खोती वह निरंतर प्रयास करती रहती है पहले वह अपने बाए हाथ से चित्रकारी करने के लिए उस हाथ को अभ्यस्त बनती है जब वह उस हाथ से काम करने में और चित्रकारी करने में कुशल हो जाती है तो वह एक नए चित्र को बनाना शुरू कर देती है वह उस चित्र को लगभग १ महीने में पूरा कर देती है वह उस चित्र को बेचने के लिए जाती है परन्तु उस चित्र को कोई भी खरीदने को तैयार नहीं था क्योकि उस प्रकार के चित्र जो की अनामिका बनाया करती थी वह बिकने बंद हो चुके थे वह निराश हो कर घर आती है उस दिन वह बहुत दुखी होती है उस के परिवार वाले उसका मनोबल बढ़ाते है उस बड़े हुए मनोबल के रहते उसने दोबारा एक चित्र बनाया

अनामिका उस चित्र को बेचने के लिए जाती है और उस चित्र को अच्छे दाम में बेच भी देती है पर बदनसीबी से अनामिका ने जिस के पास अपना बनाया चित्र बेचा था उसके पास धनन्जय का फ़ोन आता है और वह उस से उस चित्र पर अपना नाम लिखवाने को कहता है परन्तु वह आदमी उसकी बात मानने को तैयार नहीं होता फिर धनन्जय उसे मुँह मांगी कीमत देने को भी तैयार हो जाता है तो फिर वह उस चित्र पर धनन्जय का नाम लिखने को राज़ी हो जाता है

जब प्रदर्शनी का दिन आता है उस दिन अनामिका बहुत खुश होती है वह अपना बनाया गया चित्र देखने जाती है परन्तु वहा जाकर वह हैरान हो जाती है की वहा पर उस के नाम की जगह धनन्जय का नाम लेखा हुआ था यह सब कुछ देखने के बाद वह धनन्जय के पास जाती है और ऐसा काम करने का कारन पूछती है तो धनन्जय कहता है की " जब से तुम आए हो तब से कोई भी मेरे चित्र खरीदने को तैयार नहीं होता है मै अपना नाम फिर से कामना चाहता हूँ" इस पर अनामिका उसे एक चुनौती देती है की तुम्हे एक ऐसा चित्र बनाना है जिस से एक ज़िंदगी की सचाई उजागर हो चित्रकारी की उस प्रतियोगिता की तैयारी करने के लिए अनामिका धनन्जय को १ महीने का समय देती है

१ महीन के बाद उस प्रतियोगिता का समय आता है तो उस प्रतियोगिता में अनामिका जित जाती है और धनन्जय ने भी उसकी प्रतिभा को प्रोत्साहित किया और अपने किये गए बर्ताव की उससे क्षमा मांगी परन्तु अनामिका के सपनो का सफर अभी थमा नहीं था वह और भी मेहनत करती है एक दिन उस मेहनत के रहते वह एक मशहूर चित्रकार बन जाती है

चन्दर की माँ ने कहा "अब तुम्हे समझ में आया की कैसे अनामिका ने कितनी कठिनाइयों से अपनी सपनो को साकार किया है सपने तो हम सब देखते है परन्तु उन सपनो को साकार करने के लिए हमे कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है कुछ लोग इन सपनो को साकार करने के लिए उन चुनोतियो का सामना बड़े सयम के साथ करता है परन्तु कुछ लोग इनसे डर कर अपने सपनो को पीछे छोड़ कर अपनी ज़िन्दगी में आगे बढ़ जाते है परन्तु ये लोग अपनी ज़िन्दगी में कभी खुश नहीं रहा पाते इसका कारन यह है की जो अपने सपनो के सफर को अधूरा छोड़ कर आगे बढ़ जाते है वे लोग उस वक्त ये भूल जाते है की मंज़िल के बिच से जो मुड़कर जाते है उसे किनारे तक पहुंचने के लिए भी आधा रास्ता तय करना पड़ता है अपने सपनो को साकार करने के लिए सिर्फ एक कदम का फ़ासला होता है वे चाहे तो उस एक कदम को पार कर के अपनी मज़िल को हासिल करे या उस एक कदम के डर से अपनी सपनो को पीठ दिखा कर आ जाए एक इंसान के असली पहचान उसके सपनो के उस नाज़ुक पलो में होती है जहाँ यह अपनी सयम, धैर्य और होंसलो की परीक्षा देनी होती है इसी एक परीक्षा से उस इंसान की पूरी ज़िन्दगी के सफर का अंदाज़ा हो जाता है जैसे मैने तुम्हे एक लड़की की कहानी सुनाई जिसने अपने सपनो को साकार करने के लिए कितनी मुश्किलों और परीक्षाओ का सामना करा और उसने किस तरह अपनी सपनो को शिखर तक पहुँचाया"


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