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बाई आई?

बाई आई?

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       मुम्बई में घरेलू काम करने वाली सहायक महिलाओं का नाम बाई है। ये बाईयां भिन्न आकार,रूप, स्वभाव और आचरण की पाई जाती है। गृहस्वामिनी जो सहज ही गृहस्वामिनी होती है उसके हृदय पर बाई का स्वामित्व होता है। बाई बाई रटते ही ये सोती जागती हैं। इन गृहणियों की अपनी सहेलियों से जितनी चर्चा बाइयों को लेकर की जाती है उतनी तो अड़ोसन-पड़ोसन की चुगली भी नहीं की जाती। सुबह उठते ही फोन इंटरकॉम और वाट्सएप से बाई की जासूसी आरम्भ कर दी जाती है। अमुक जगह पहुँच कर उसने काम आरम्भ कर दिया है यह सूचना पाते ही गृहणी की बांछें खिल जाती है। एक जगह राहत सामग्री पहुँच गई है अर्थात जल्दी ही हम तक भी पहुंचेगी इस विचार से बाढ़ पीड़ित जैसी राहत महसूस करते हैं कुछ कुछ उसी तरह का भाव गृहणियों के मन में आने लगता है। 

      ये बाईयां अपनी कीमत खूब समझती हैं। ये हफ्ते में एकाध दिन अनुपस्थित रह जाती हैं। यह एक दिन गृहणियों के लिए क़यामत का दिन होता है। सुबह सुबह इंटरकॉम फोन बजता है और इमारत के किसी फ़्लैट से फोन आता है जिसमें किसी सुराणा मैडम या लाठा मैडम या जलपा बेन की आवाज़ गूंजती है और कान में विस्फोट कर देती है, बाई आई? बस यह दो शब्द आसन्न संकट की पूर्व सूचना है। अर्थात बाई अपने पहले मोर्चे पर नहीं पहुंची तो अन्य प्रतीक्षार्थी भी मुंह धो रखें! अब गृहणियों के लिए आपदा काल शुरू होता है जिसका प्रबंधन अति आवश्यक है। दनादन फोन घुमाये जाने लगते हैं। शत्रु का शत्रु हमारा मित्र होता है शास्त्र के इस नियम के अनुसार एक बाई द्वारा प्रताड़ित सभी गृहणियां आपस में मित्र होती है। वे एक दूसरे से संपर्क साध कर युद्धस्तर पर इस संकट से निपटने का उपाय ढूंढने लगती है। आठ मंजिल वाली खन्ना की बाई अभी लिफ्ट में दिखी थी उसे बुला लें? एक सन्नारी सुझाव देती है। नहीं! तीन मंजिल वाली मित्तल मैडम प्रस्ताव खारिज कर देती हैं जिनका अभी दो साल पहले ही विवाह हुआ है। खन्ना की बाई के लक्षण ऐसे नहीं हैं जो पति के घर में रहते उसे बुलाने का जोखिम लिया जा सके। कुंटे, सानप और मेरी के नाम ख़ारिज करने के बाद जब जनमत सुरेखा बाई के नाम पर एकमत होता है तो वही आने से इनकार कर देती है। इस बीच फोन का उपयोग अपने सर्वोच्च सूचकांक को छू रहा होता है जिसमें अपनी अनुपस्थित बाई के विशद गुणगान के अलावा उसे निहाल कर देने जैसी गुप्त प्रतिशोधात्मक बातों की अधिकता होती है। 

अंततः रोते झींकते काम करने पर विवश गृहणियां निढाल हो जाती है। ये गृहणियां उस आम जनता की तरह है जो लाख असंतोष के बावजूद व्यवस्था का कुछ नहीं बिगाड़ पाते। अगले दिन जब गुप्तचर विभाग यह सूचना देता है कि बाई पहले मोर्चे पर पहुँच गई है तब राहत की सांस आती है। कल का सारा क्रोध मीठे उलाहने में बदल चुका होता है जिसका जवाब बाई बड़े प्रोफेशनल ढंग से देकर काम में जुट जाती है। 


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