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काम ही पूजा

काम ही पूजा

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नवीन अपने कमरे से आराम कर जब बाहर आए तो देखा कि उनके दोनों बेटे किसी बात को लेकर बहस कर रहे हैं। 

नवीन के दो बेटे थे। निखिल और अखिल। दोनों ग्रैजुएशन कर रहे थे। उनकी उम्र में केवल डेढ़ साल का अंतर था। अतः दोनों के बीच किसी ना किसी बात को लेकर विवाद रहता ही था। नवीन ने दोनों को डांटते हुए कहा।

"तुम लोग पढ़ाई छोड़ कर किस बेकार की बात पर लड़ रहे हो।"

बड़े बेटे निखिल ने कहा।

"पापा हम लड़ नहीं रहे हैं। हम तो आने वाले भविष्य के बारे में चर्चा कर रहे हैं।"

नवीन ने अविश्वास से कहा।

"अच्छा अपने भविष्य के बारे में चर्चा कर रहे थे तुम लोग।"

जवाब अखिल ने दिया।

"हाँ पापा। बात ये है कि कुछ ही सालों में हम पढ़ाई खत्म कर कुछ ना कुछ काम करेंगे। हमारे बीच चर्चा हो रही थी कि अपना काम अच्छा है या नौकरी। भाई तो नौकरी के पक्ष में है। पर मेरा कहना है कि अपना काम ही अच्छा होता है।"

पहली बार नवीन को लगा कि उनके बेटे किसी अच्छे विषय पर बहस कर रहे हैं। उन्होंने भी बहस को आगे बढ़ाते हुए अखिल से कहा।

"पहले तुम ये बताओ कि तुम अपने काम को ही अच्छा क्यों मानते हो ?"

पापा के भी चर्चा में शामिल होने से उन दोनों को अच्छा लगा। अखिल उत्साह के साथ बोला।

"पापा अपना काम ही सबसे अच्छा है। जितनी मेहनत करेंगे उसका फायदा हमको ही मिलेगा। किसी और को नहीं। फिर किसी को जवाब भी नहीं देना पड़ेगा।"

निखिल अपना पक्ष रखने को तैयार था। वह बोला।

"पापा ये सच है कि अपना काम हो तो सारा फायदा अपना। पर जोखिम भी तो है। नौकरी में कम से कम बंधी बंधाई आमदनी तो मिलती है। रही जवाबदेही तो वह अपने काम में भी किसी ना किसी के लिए रहती है।"

अखिल ने कहा।

"वो बात ठीक है भाई पर नौकरी में भी ख़तरा है। ना जाने कब मालिक कह दे अब ज़रूरत नहीं। नौकरी चली गई। आजकल कितनी ही कंपनियां अपने कर्मचारियों को निकाल रही हैं।"

"पर अपना काम भी ज़रूरी तो नहीं चल जाए। वह भी बंद हो सकता है।"

दोनों बेटों ने अपनी अपनी दलीलें रख दी। वो लोग नवीन की तरफ देखने लगे। नवीन ने दोनों को समझाते हुए कहा।

"तुम दोनों ने अपना अपना पक्ष रखा। अच्छा लगा जानकर कि तुम लोग अपने विचार स्पष्टता से रख सकते हो। अब बात है कि कौन सही है और कौन गलत।"

दोनों ने सर हिला कर हामी भरी।

"तुम दोनों ही अपनी जगह सही भी हो और कुछ मामलों में गलत भी।"

दोनों बेटों ने एक साथ पूछा।

"वो कैसे ?"

नवीन ने कहा।

"अखिल तुम को लगता है कि अपने काम में किसी को जवाब नहीं देना पड़ता है। ऐसा नहीं है। आपकी जवाबदेही सबसे पहले खुद के लिए रहती है। दूसरा काम भले ही अपना हो पर जब आप अपने क्लाइंट को खुश रखेंगे तभी काम मिलेगा।"

नवीन ने निखिल से कहा।

"तुम कहते हो कि अपने काम में जोखिम है। तो बेटा जोखिम तो हर क्षेत्र में है। बिना जोखिम उठाए सफलता नहीं मिलती है।"

निखिल ने पूछा।

"तो पापा फिर सही क्या है ?"

"बेटा जो भी हम करें पूरी ईमानदारी और मन से करें। अपने काम को बोझ ना मानकर उससे कुछ सीखने का प्रयास करें।"

नवीन रुके। फिर अपने दोनों बेटों से बोले।

"तुम लोग अपनी पसंद से जो चाहो करो। पर कभी भी अपने काम के प्रति लापरवाह ना होना। याद रखो काम ही पूजा है।"

दोनों बेटों ने अपने पिता की सीख को मन में बैठा लिया।


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