इंसानियत का सपना
इंसानियत का सपना
आज छुट्टी का दिन था और गुड़िया की टीम अपने किचन सेट के साथ गृहस्थी का खेल खेल रही थी, सुधा अपना काम निपटाते हुए उनके आपसी संवाद का आनंद ले रही थी।
"देखो मुझे तो पापा बनना है तुम मम्मी बन जाओ और शेरू"गुड़िया का टेडी "हमारा प्यारा सा बेटा" ठीक है न अपनी छोटी सी गर्दन को जरा नीची झुकाते हुए अपनी सहेली जया को जैसे आदेशित समझाइश दे रही थी।
"नही मुझे मम्मी बनना अच्छा नही लगता, जब देखो काम करो और उस पर भी दादी डाँटती रहती है,और मम्मी रोती है "जया मायूस होते हुए बोली।
"तो मैं पापा बन रहीं हूँ तो मुझे क्या आराम करना होता है, कल तुम्हारे पापा कह रहे थे, बॉस बात बात पर डाँटता है आजकल"
गुड़िया भी सोचनीय मुद्रा में ठोड़ी पर हाथ रखती हुई बोली।
अब क्या करें, कुछ मज़ा नही आ रहा ,चलो मम्मी से पूछते है।
और दोनो सुधा के पास आई
,"माँ बताओ न क्या खेलें, ये किचन और पापा माँ के खेल में तो डांट ही मिलनी है" हाँ आँटी आप ही बताइए न !!
सुधा बच्चों की मासूमियत भरे प्रश्नों से थोड़ा मुस्कुराई,
बोली बच्चों खेलने का मन नही है तो चलो आप थोड़ी देर सो जाओ और सुंदर सा सपना देखो और फिर मुझे बताओ कि किसने कितना सुंदर सपना देखा ।
उन्हें सुलाकर सुधा सोचने लगी बच्चों पर घर में होने वाली बातों का कितना गहरा प्रभाव पड़ता है,आज खेल में भी वो जिस चरित्र को निभाने में इतना सोच रही है, बड़ी होकर उसे कैसे जियेगी।
खैर, बात को भूलकर काम निपटाकर कुछ देर सुस्ताने लगी
थोड़ी देर बाद बच्चों को उठाकर कुछ खिलाने के इरादे से उन्हें जगाया, खाना खिलाते हुए बड़े प्यार से पूछा तो "तो बताओ दोनों ने क्या सपना देखा"
आँटी मुझे तो पापा के बॉस और दादी डाँटते हुए दिखे कुछ और नही, मासूमियत से हाथ और गर्दन हिलाते जया ने कहा।
"गुड़िया, तुमने क्या देखा बेटा"
माँ हमारे पास तो न दादी है और न ही पापा बस हम दोनों है न,
इसलिए मैंने सपना देखा कि मैं बड़ी होकर तुम्हें खूब खुश रखूंगी खूब पढ़ाई करूँगी आपका मुझे "एक अच्छा इंसान " बनाने का सपना ज़रूर पूरा करूँगी,
जया और मैं मिलकर जया की दादी को समझाएंगे अच्छी बात नही होती,हर समय छोटों को डाँटना, ठीक है न माँ ।
"i wish" ऐसा ही हो बच्चों की मासूमियत भरी गहराई से अचंभित सुधा सोच में डूबी थी
"काश हर इंसान का सपना हो, बस इंसानियत "