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Arunima Thakur

Tragedy

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Arunima Thakur

Tragedy

लड़कियों प्यार मत करना ...

लड़कियों प्यार मत करना ...

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" रोंगटे खड़े कर देने वाली एक और हृदय विदारक घटना। इलेक्शन का समय है, समाचार एजेंसियों के पास पर्याप्त मसाला है। शायद इसलिए इस मामले ने तूल नही पकड़ा। या शायद अब इस तरह की घटनाएं समाचार माध्यमों के लिए आम हो गयी है। अब उनकी टीआरपी पर इन घटनाओं से ज्यादा फ़र्क़ नही पड़ता शायद। जो भी हो फेसबुक और व्हाट्सएप पर फिर भी काफी शोर है। 


हाँ बहुत शोर है पैतीस टुकड़ों का। क्या यह इसलिए कि ये बहुत दर्दनाक है ? नही यह बहुत वीभत्स है। दर्दनाक तो वो था जो किसी को दिखा ही नही। इन पैंतीस टुकड़ों में कटने से पहले, एक मौत मरने से पहले, वह कितनी मौते मरी होगी जब उसका दिल टूटा होगा। क्या वह जीवित मन का दर्द मरने के बाद के इन पैंतीस टुकड़ों से कम रहा होगा ? क्या उस दिल के टुकड़े हम गिन सकते हैं ? हर टुकड़ा ना जाने कितनी बार टूटा होगा। ना जाने कितनी किरचों ने उसकी आत्मा को छलनी किया होगा। इसे धर्म या जाति से ना जोड़े। इसे सिर्फ विश्वास और भरोसे के पहलू से देखें।  

पुरुष प्रधान समाज को ल़डकियों को चरित्र प्रमाणपत्र देने का मौका मिल गया ।जाति और धर्म के ठेकेदारों को एक दूसरे का कद घटाने का मौका मिल गया।पीड़ित लड़की से किसी को सहानुभूति नहीं है क्योंकि उसने लड़की होकर भी अपनी हद पार की है ।वैसे हम सब आधुनिकतावाद की बात करते हैं। लेकिन दहलीज को पार करती हर औरत पुरूषों को खटक जाती है। क्यूँ ? 


क्या ये पुरूषों की दुनियां हैं ? इसे मर्द बनाते और बिगाड़ते हैं ?


औरत मर्दो की दुनियां में सिर्फ एक टुकडा है माँस का ? 


जब चाहें मोहब्बत करता हैं जब चाहें नफरत, पुरुष अपनी जरूरतों के मुताबिक औरतों को पूजता और ठुकराता है । समय पड़ने पर तलवे चाटने से भी परहेज नहीं करता है ।


पुरुषों का विरोध करना हैं तो औरतों को अपनी जमीन खुद तैयार करनी होगी ।


लड़कियाँ जैसे जैसे बड़ी होती हैं समाज एक अदृश्य दीवार खड़ी कर देता है ।

आधुनिक समाज में असामाजिक तत्व ल़डकियों को उकसाते हैं कि दीवार को तोड़ दो। 


लेकिन समझदार और संवेदनशील लड़कियाँ दीवार पर लगाती हैं, सीढिया, रोजगार और पढाई लिखाई की और निकल जाती उस पार एक मजबूत आधार के साथ ।


पुरुषों से यह समाज कोई सवाल नहीं पूछता, वो मधुशाला जाये या वेश्यालय। समाज कभी आड़े नहीं आता, वो स्त्रियों के अंगों की गालियाँ बनाए।


कोई पुरुष नहीं बोलेगा 

वो महिलाओं को सीमित स्वतंत्रता देते है 

पुरुष इतना धीमे चलते हैं कि उन्हें हर औरत भागती दीखती हैं ।


इस क्रूर और जघन्यत अपराध से पुरुष होना शर्मिंदगी का द्योतक हैं।"

रेवती कुर्सी से सिर टिका कर लेट गई । वह सतीश मिश्र जी का ब्लॉग पढ़ रही थी। अच्छा लिखते है। बहुत सारी बाते लिखी है। उसके काँपते हाथ उस ब्लॉग में एक सवाल लिखने लगते है। "अच्छा लिखा है आपने। आपने लिखा है समझदार और संवेदनशील लड़कियाँ...। तो क्या आपके अनुसार समझदार लड़कियों को प्यार नही करना चाहिए। क्या उसने प्यार करके, किसी पर विश्वास करके गलती की। क्या पूरा दोष लड़की और लड़के का ही था"। 


लिख कर उसने पोस्ट कर दिया और फिर से आँख बंद करके कुर्सी पर सिर टिका कर लेट गयी। तब से टिंन की आवाज़ पर उसने देखा उसकी पोस्ट पर किसी का कमेंट था।


"मैडम जी गलती तो सरासर लड़की की थी। ज़माना इतना खराब है। रोज ऐसी घटनाएं घट रही है। क्या जरूरत थी लड़की को समाज के बनाये नियमो को ताक पर रख कर लिव इन मे रहने की"


एक दूसरा कमेंट था, "आपको क्या लगता है कि गलती अगर लड़के और लड़की की नही थी तो किसकी थी "?


रेवती कहना चाहती थी, "समाज की। क्यों समाज लड़की को प्यार करने की स्वतंत्रता नही देता है ? क्यों ? प्यार करने के बाद क्यों घर तक वापस जाने वाले रास्ते बंद हो जाते है ? लड़के भी प्यार करते है। घर के दरवाजे उनके लिए तो बन्द नही होते। यहॉं तक जब एक इंसान हत्या करता है। उसे फाँसी हो या उम्रकैद उसको भी सजा में रियायत दी जाती है। अच्छे चाल चलन पर सज़ा माफ भी होती है। उनको समाज स्वीकार भी कर लेता है। तो जब लड़कियाँ प्यार करने का गुनाह करती है तो उनको इतनी कठोर सजा क्यों। काश प्यार करने की गलती करने वाली हर लड़की के पास विकल्प हो घर वापस जाने का"।  


यहाँ तक तलाकशुदा को भी समाज मे सम्मान मिलता है। क्या अंतर होता है दोनों में ? सिर्फ समाज की स्वीकृति का ही न। शादी करने के बाद अलग हुए तो वही लड़की समाज को स्वीकार्य है। प्यार में धोखा खाकर घर लौट आने वाली लड़की समाज को स्वीकार्य नही"।


क्यों प्रेम और विश्वास से अपना समर्पण करने वाली लड़की कलंकित कहलाती है ? लड़के कलंकित क्यों नही कहलाते। जैसे समाज एक लड़की का जीना दूभर कर देता है, लड़कों पर तो कोई उँगली भी नही उठाता। क्यों "?

रेवती की आँखे छलछला आयीं। वर्षो पहले उसने भी तो गलती की थी प्यार करने की। जिसकी सजा वह आज तक भुगत रही है और वह, जिस पर विश्वास किया, समर्पण किया, वह तो अपने परिवार के साथ सुखी है। रेवती अकेली जूझ रही है समाज के, उस प्यार के परिणाम उस की बेटी के सवालों से। 

 तब से उसकी पाँच वर्षीय बेटी आ कर उससे लिपट गयी। वह उसे चूम कर सोचने लगी, वह अपनी बेटी को अभी से समझाएगी। फिर उसे खुद पर ही हँसी आ गयी। उसकी माँ ने भी तो ना जाने कितना कुछ समझाया था तो कौन सा वह समझ पायी थी। यह उम्र ही ऐसी होती है शायद कि हर एक को लगता है कि वह सही है, उसका प्यार, वह शख्श , सब सही है। फिर पता नही कब सब गलत होता चला जाता है। लड़के कभी भी यू टर्न मार लेते है। लड़कियों के पास वापस लौटने का विकल्प नही होता है। वह या तो मर जाती है या मारी जाती है या चलती है अकेले जैसे रेवती चल रही है। 

रेवती ने लिख कर पोस्ट कर दिया, "अगर सभी वास्तव में चाहते है कि इस तरह की पैतीस टुकड़ो की घटनाएं न हो तो लड़की को प्यार करने की गलती करने के बाद भी समाज और परिवार को उसे स्वीकार कर लेना चाहिए बिल्कुल वैसे ही जैसे यह समाज लड़को को स्वीकार कर लेता है बिना किसी प्रश्न के"। 


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