Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Rupa Bhattacharya

Drama

2.4  

Rupa Bhattacharya

Drama

अकेली लड़की

अकेली लड़की

7 mins
1.5K


माँ, गरिमा दीदी से भेंट कर और सामान देते हुए वापस मैं पुणे चली जाऊंगी।


"न न तूझसे नहीं होगा! एक तो शगुन के ढेर सारे समान, ऊपर से तेरा खुद का समान और उतनी दूर की यात्रा! तू अकेले कैसे संभालेगी?

मेरे पैरों का दर्द कुछ ठीक होते ही मैं तेरे पिता के साथ चली जाऊंगी"


"माँ तब मेरी भेंट उस नन्ही परी से कैसे होगी?"


"हाँ, बात तो तेरी ठीक है और माँ, बच्ची के नामकरण में हमारी तरफ से कोई न गया तो दीदी कितनी दुखी होंगी"


"ठीक है, फिर मैं जल्दी सामान पैक किये देती हूँ"


अगली सुबह शालू जाने के लिए तैयार हो रही थी।


"शालू बेटा! अब भी सोच ले तू यदि न जाना चाहे तो मत जा, सीधे पुणे चली जा"


"अकेली लड़की उतना दूर"


"माँ मैं चली जाऊंगी, तू खामख्वाह घबरा मत! और शाम होने के पहले ही तो मैं पहुंच जाऊंगी"


"माँ, इतना सारा सामान क्यों दे रही हो? और ये लम्बी सी छाता क्यों पैक कर रही हो?"


"अरे बेटी ! बरसात का मौसम है, एक छाता हमेशा साथ रखना चाहिए और देख !नन्ही और तेरी दीदी जीजाजी के लिए कुछ कपड़े, घर की बनी कुछ ' मिठाई ' बस। मैंने तेरा बोझ ज्यादा नहींं बढ़ाया है"


दो घंटे बाद,


"माँ तू अभी तक तैयार नहींं हुई !नीचे ड्राइवर खड़ा है"


"हाँ हाँ चल"


स्टेशन पर ट्रेन खड़ी थी।


"सुन! ट्रेन से बीच बीच में फोन करती रहना"


"कैसे संभव है? माँ क्या हर जगह टावर मिलेगी?"


"ओह हाँ। ठीक है, वहां पहुंच कर फोन करना"


"बाॅय माँ "


"बायॅ बेटी सावधानी से जाना, तेरे जीजा स्टेशन पर लेने आ जाएंगे"

"ओम नमः शिवाय"


शालू की माँ मन ही मन बुदबुदाती रही और गाड़ी नियत समय पर चल पड़ी।


पर्स से अपना इयर फोन निकालते हुए शालू सोचने लगी 'हे भगवान' इस पैसेंजर ट्रेन में अभी मुझे छह घंटे गुजारने होंगे।


शालू ने आसपास के लोगों पर एक नजर डालते हुए कानों में ईयर फोन लगा लिया। "ये गंवार लोग कैसे घूर रहे हैं ! मानो कभी कोई लड़की देखी ही नहींं। बाहर अचानक बारिश शुरू हो गई थी। खिड़की से बाहर देखते हुए शालू सोच रही थी बाहर कितना दिलकश नज़ारा है ! झमाझम बारिश, चारों ओर हरियाली, दूर पहाड़ी पर धुआँ धुआँ सा बादल, जोरों से नृत्य करती हुई वृक्षों की पतली पतली टहनियाँ, बरसाती नदी में तब्दील होते हुए नाले और इन सबके साथ भागती हुई रेलगाड़ी"


बेताबियो के शरारे बिछे है

ये सावन के रिमझिम झड़ी है

कदम बेखुदी में बहकने लगे है

ये मदहोशियों की घड़ी है


शालू के कानों में गूँजती हुई सुरीली गाने की धुन, और धीरे धीरे उसकी आखें बंद होती चली गई थी।


अचानक उसे हल्की सी आवाज आई !


"क्या यह सीट खाली है?"


शालू ने अधखूली आखों से देखा, सामने एक युवक कंधे पर बैग झुलाये खड़ा था। उसने न सुनने का स्वांग रचते हुए अपनी आखें बंद कर ली। बाहर लगातार बारिश हो रही थी। कुछ देर बाद शालू ने महसूस किया कि सामने बैठा हुआ युवक लगातार उसे घूरे जा रहा है।

जैसे ही शालू ने उसकी ओर देखा, नौजवान खिड़की से बाहर देखने लगा था।


वाटर बाॅटल से थोड़ा पानी पीकर वह फिर से गानों में व्यस्त हो गई। एक बार अधखूली आखों से उसने देखा, सामने वाला युवक अब मोबाइल में व्यस्त हो गया था। अब उसे कुछ भूख भी लग रही थी। कानों से इयर प्लग निकाल कर खिड़की से बाहर की ओर देखा, ट्रेन एक छोटी सी स्टेशन पर रुकी हुई थी। बाहर दो, एक मुसाफिर खड़े थे।


"जी, मुझे मुकेश कहते हैं। मैं राजगंजपूर जा रहा हूँ"


"ओह अच्छा !" शालू ने टरकाने वाले अंदाज में जवाब दिया। शालू को अजनबियों से ज्यादा बात करना पसंद नहींं था।


"जी जान सकता हूँ ,आप कहाँ जा रही हैं?"


"झाड़सुगूड़ा"


संक्षिप्त उत्तर देकर वह खिड़की से बाहर देखने लगी।


"आप इस बरसात में अकेली सफर कर रही है?"


शालू के मन में आया कि इसे फटकार दे ! इसे क्या! मैं अकेली जाऊँ ! कहाँ जाऊँ !


कुछ सोचते हुए शालू ने जवाब दिया,

"जी नहींं, मेरे मामाजी बगल वाले बर्थ में हैं"


"ओह ! तो उन्हें यहाँ बुला लीजिए ,यहाँ जगह तो काफी खाली है"


"जी, वह शायद सो रहे हैं, उठेंगे तो खुद चले आएँगे"


शालू ने फिर से कानों में ईयर फोन लगा लिया। उसे पता था, युवक उससे फिर बातें करने की कोशिश करेगा। उसने अपनी आखें बंद कर सिर को खिड़की से टिका दिया था।


"जी, आपने अपना इयर फोन हैंड सेट से कनेक्टनहीं किया है !"


"ओह ! !" शालू ने युवक की ओर देखा। वह मंदमंद मुस्कुरा रहा था। शालू को इस युवक से कोफ्त सी होने लगी थी। उसने सोचा खामख्वाह युवक गले पड़ रहा है। रेल गाड़ी एक स्टेशन पर रुकी हुई थी। धीरे धीरे शाम गहराने लगी थी। अभी भी रुकरुक कर बारिश जारी थी। शालू ने घड़ी देखते हुए सोचा, पहुँचते पहुँचते रात हो जाएगी।

सामने वाला युवक अपनी सीट पर नहींं था। शालू एक सुकून की सांस लेती हुई आराम से सीट पर फैल कर बैठ गई। इन छोटे छोटे स्टेशनों पर पैसेंजर उतर तो रहे थे, मगर सवार कोई न हो रहा था। उस बर्थ में अब मात्र एक ही यात्री बचा था।


तभी तक कागज के प्लेट में कुछ लेकर युवक फिर हाजिर था।


"प्लीज कुछ लीजिए"


शालू ने देखा प्लेट में समोसा और चटनी था।


"नो थैंक्स, मुझे भूख नहींं है"


"कोई बात नहीं", कहकर वह सामने की सीट पर बैठ गया।


कुछ देर बाद शालू ने कनखियों से देखा, युवक समोसा चटनी में डुबाकर गपागप खा रहा था।


एक लम्बी डकार लेते हुए उसने कहा, "बगल के बर्थ में तो कोई नहींं है। आपके मामाजी कहाँ गये?"


शालू ने कोई जवाब नहींं दिया।


"आपके मामाजी"


"आप मेरे मामा जी के पीछे क्यों पड़े हैं?

उन्हें जहां उतरना था, वहां उतर चुके हैं" शालू ने कुछ तेज आवाज में कहा


"अरे आप तो बुरा मान गई। मैं तो यूँ ही"


"क्या बात है बहन जी?" बगल के सीट वाले यात्री ने पूछा।


"जी कुछ नहीं" शालू ने शांत होकर उत्तर दिया।


अगले स्टेशन पर इकलौता पैसेंजर भी उतर गया। शालू अब मन ही मन डरने लगी थी।

ट्रेन बहुत धीमी गति से चल रही थी, अचानक वह एक झटके के साथ रुक गई। बाहर तेजी से बारिश होने लगी थी। ट्रेन एक पूल पर रुकी हुई थी। शालू ने खिड़की के बाहर देखा तो उसके रोंगटे खड़े हो गये।


नीचे मटमैला नदी तूफानी वेग से बह रही थी।

शालू ने अपना नजर खिड़की से हटा लिया था।


"उफ ! ट्रेन को भी इसी जगह रुकना था। नीचे का दृश्य बहुत भयावह है" सामने वाले युवक ने कहा।


"जी" शालू ने संक्षिप्त उत्तर देते हुए युवक की ओर देखा।

युवक की आखें लाल थी, और वह कुछ अजीब सी नजरों से उसे देखने लगा था। अब ट्रेन फिर से रेंगने लगी थी। शालू से अब वहां बैठा न गया। वह अपनी अटैची और पर्स उठाकर वहां से जाने लगी।


"अरे ! आप कहाँ जा रही है?"


शालू ने जवाब नहींं दिया और आगे बढ़ गई।

एक दो बर्थ आगे जाकर वह बैठ गई। वहां कोई न था, आगे पीछे हर जगह केवल सन्नाटा और बाहर बारिश की तेज आवाज।

अचानक कम्पार्टमेन्ट के अंदर बिजली गुल हो गई। चारों ओर घूप्प अंधेरा।


शालू का दिल जोरों से धड़क रहा था। टूटी हुई खिड़की से तेजी से बारिश का पानी अंदर आ रहा था। मोबाइल की रोशनी से किसी तरह शालू ने अपना छाता खोल कर सीट पर दुबक कर बैठ गई।


अचानक बाहर जोरों की बिजली कड़की और बाहर उसे "राजगंजपुर" लिखा दिखाई दिया। शायद युवक यहाँ उतर गया होगा। उसने चैन की सांस लेते हुए ईश्वर से प्रार्थना की "हे भगवान मुझे सही सलामत गंतव्य तक पहुँचा देना"


ये बारिश भी रुकने का नाम न ले रही थी। कुछ देर बाद ट्रेन फिर रुक गई। बाहर और अंदर केवल घूप्प अंधेरा था। ट्रेन शायद जंगल में रुकी हुई थी, खिड़की के बाहर जुगनू की रोशनी और झींगुरों की आवाज सुनाई दे रही थी।


शालू ने मोबाइल ऑन करना चाहा पर वह कामयाब नहीं हुई। गाना सुनने के कारण मोबाइल का चार्ज बिलकुल डाउन हो गया था।


तेज बारिश और हवा के झोंको के कारण मेन गेट सन्नाटे को चिरती हुई जोरों से आवाज कर रही थी। शालू फूटफूट कर रोने लगी।

अचानक शालू को एक तेज आवाज सुनाई दी

"मोहतरमा आप किधर हैं?? घबराइए नहींं

मैं हूँ न"


आवाज सौ प्रतिशत युवक की थी। शालू के हाथ पैरों में पसीना आने लगा था।वह थरथर काँपने लगी थी। अचानक उसके चेहरे पर मोबाइल की रोशनी पड़ी।


"अरे ये क्या ! आप पानी में क्यों बैठी हो? अरे डरो नहीं जानेमन , इधर मेरे पास आओ"


शालू उठकर खड़ी हो गई और अपने लम्बे छाते से उस युवक पर एक जोर दार प्रहार किया। युवक इस अप्रत्याशित प्रहार को सह न पाया और चीख मारकर नीचे गिर पड़ा।

क्रमश:


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama