बाइस बसंत
बाइस बसंत
नेहा फ्लैट खाली करते हुए अपने सामान में से अनावश्यक सामान हटा रही थी। क्या करती मजबूरी थी, बड़े फ्लैट की अब उसे आवश्यकता भी नहीं थी। ऊपर से बड़े फ्लैट का अधिक किराया कहाँ से देती। उसके हाथ में आई कुछ पुरानी तस्वीरों ने उसे वो सारे मीठी यादें ताज़ा करा दीं जो अब कड़वी लगने लगी थी। वो सारे खुशनुमा लम्हे अब कभी ना भर सकने वाला एक नासूर बन चुके थे। क्या-क्या सोचा था उसने और क्या हो गया। अब तो उसे निखिल के नाम, उसकी सूरत से भी नफरत सी हो गई है।
नेहा अपने गाँव से शहर पढ़ने आई थी। पढ़ाई पूरी होने के बाद उसे अच्छी कंपनी में सेक्रेटरी की नौकरी मिल गई थी। शुरू के कुछ दिन बहुत अच्छे गुज़रे। धीरे-धीरे कंपनी के काम-काज बढ़े तो नेहा पर भी काम का बोझ बढ़ गया।
प्रोजेक्ट, प्रेजेंटेशन, बिजनेस मीटिंग, डिनर होने लगे और ऐसे ही दिनों में नेहा और निखिल के बीच के फासले कम होने लगे। साथ कॉफी पीना, डिनर, फिल्में, माल घूमते-घूमते दोनों बहुत करीब आ चुके थे। दोनों के बीच प्यार का अंकुर फूटने लगा था।
लेट नाइट के लिए नेहा के हॉस्टल वाले उसे बहुत बार टोक चुके थे। हॉस्टल से मिली चेतावनी के रहते नेहा एक फ्लैट में रहने चली गई। अब निखिल और नेहा को कोई रोकने-टोकने वाला ना था। रातों की मुलाकातें और लंबी होने लगी थीं।
कुछ रोज़ बाद निखिल ने अपना फ्लैट खाली करके किराए पर दे दिया और नेहा के साथ उसी के फ्लैट में रहने चला आया। ऑफिस में दबे छुपे होने वाली बातों से बचने के लिए निखिल ने नेहा को नौकरी करने के लिए मना कर दिया।
यूँ शुरू हो गई दोनों की एक नई ज़िंदगी। दोनों प्रगाढ़ प्रेम की पींगे बढ़ाते हुए सब सीमाएं लाँघ ही चुके थे। नेहा अक्सर उस से विवाह की बात छेड़ देती जिसे निखिल आसानी से टाल जाता। शुरू में नेहा को घर पर बहुत अच्छा लगने लगा था। दिन में बस घर संभालना और खाना बनाना और शाम को दोनों का बाहर घूमना। आहिस्ता-आहिस्ता उसे आदत ही हो गई।
उन्हीं दिनों मोहब्बत की सीमाएं पार करते एक रोज़ नेहा ने उसे बताया कि अब वो दो से तीन होने वाले हैं। यह सुनते ही निखिल का मूड उखड़ गया। दो पल के लिए उसके चेहरे का रंग बदल गया पर जल्द ही खुद को संभालते हुए बोला, "अभी, इतनी क्या जल्दी है ? अभी तो हमारी ज़िन्दगी शुरू भी नहीं हुई। तुम अबॉर्शन करवा दो।"
नेहा इसके लिए राज़ी तो ना थी पर निखिल ने अपनी लच्छेदार बातों से उसे फुसला ही लिया। उधर नेहा के माता पिता विवाह के लिए जोर दे रहे थे तो नेहा ने उन्हें भी मना कर दिया था।
अब अक्सर दोनों एहतियात बरतने लगे पर निखिल तो जैसे विवाह या बच्चों के लिए किसी कीमत पर तैयार ही ना था। बस नेहा के साथ लिव इन रिलेशनशिप के लिए तैयार था। उसका ये फैसला एक रोज़ उसकी जुबान पर आ ही गया।
निखिल परिवार के बंधनों और जिम्मेदारियों से दूर मुक्त जीवन जीने के पक्ष में था। आखिर नेहा ने भी उसकी बातों में आकर लिव इन में रहने की बात अपने माता- पिता को बताई। उन्होंने बहुत समझाया पर उसे ना कुछ दिखाई देता था ना ही किसी की अच्छी राय से कोई मतलब था। नेहा की आँखों पर तो बस निखिल के प्यार की पट्टी बंधी थी। माता-पिता से लड़ झगड़कर नेहा निखिल के साथ उन्मुक्त जीवन जी रही थी।
मौसम बदले, साल बदले, दिन बीतते गए, उम्र बढ़ती गई, साथ ही बदलने लगे निखिल और नेहा भी। बालों में चाँदी और चेहरे पर उम्र के निशान दिखने लगे थे। उन्मुक्तता भी धीरे- धीरे धूमिल होने लगी। निखिल भी अब देर से घर लौटता, कभी-कभी पी कर आता, कभी खाना भी बाहर खाकर आता। पूछने पर काम का बहाना बना देता। लगता था वह प्यार की अग्नि जो दोनों की दिलों में थी वो अब धीरे धीरे मंद पड़ने लगी थी। अब जब भी नेहा देर से आने का कारण पूछती तो निखिल गुस्सा हो जाता।
निखिल की जेब से कभी फिल्म के टिकट मिलते, तो कभी शर्ट पर लिपस्टिक के निशान.....एक रोज़ नेहा ने बाहर आइस क्रीम खाने जाने की जिद की तो गाड़ी में उसे ड्राइविंग सीट के पास वाली सीट पर एक झुमका मिला। पूछने पर निखिल उस पर बहुत बिगड़ा और चिल्लाने लगा, "तुम मेरी लगती ही क्या हो ? किस रिश्ते से मुझसे पूछ रही हो यह सब ?"
"किस रिश्ते से मतलब ? मैं जिस रिश्ते से तुम्हारे साथ रह रही हूँ उसी रिश्ते से पूछ रही हूँ.......
"साथ रह रहे हैं तो क्या हुआ ? हम कोई पति-पत्नी तो नहीं है....फिर तुम मुझ पर अपना ये हक कैसे जमा रही हो ?"
"हम पिछले लंबे अरसे से साथ रह रहे हैं....... अपने जीवन के बाइस बसंत मैंने तुम्हारे नाम कर दिए....... उसका यह ईनाम दे रहे हो.....?
"मेरे नाम कर दिए ? जैसे मैंने बदले में तुम्हें कुछ नहीं दिया......मुफ्त में तो कुछ नहीं मिलता......कमा तो मैं रहा था......."
"ओह, तो बस तुमने मुझे एक वस्तु समझ लिया........ साफ क्यों नहीं कहते कि अब तुम्हारा मन भर गया......."
देर रात तक नेहा रोती रही। रोते- रोते ना जाने कब उसकी नींद लग गई। सुबह जब आँख खुली तो निखिल एक कागज के टुकड़े पर उसे छोड़कर जाने का फरमान लिखकर जा चुका था।
नेहा हाथ में पकड़ी तस्वीर लिए सोच रही थी अब क्या करेगी ? माता-पिता, सगे-संबंधियों से रिश्ता तोड़कर निखिल से रिश्ता जोड़ने का ये अंजाम होगा, ऐसा तो कभी सोचा ही ना था। विवाह नाम का कोई एग्रीमेंट नहीं था कि एलुमनी माँगे। नौकरी निखिल ने बहुत पहले छुड़वा दी थी। नेहा के पास अधिक पैसे भी ना थे कि वह फ्लैट का किराया या घर का खर्च चला सके। सोचा कहीं एक छोटा सा कमरा लेकर रह लेगी। इसीलिए सामान कम कर रही थी, जिसमें मिल गई यह तस्वीर जो कंपनी में दिए उसके पहले प्रेजेंटेशन का था। तस्वीर में उसके पास ही निखिल बैठा था।
नेहा ने फाडकर फेंक दी हाथ में पकड़ी वह तस्वीर और लग गई अपने सामान और जीवन के बाकी बचे दिनों को सँवारने.......जब निखिल ही छोड़कर जा चुका था तो इस तस्वीर का क्या करेगी।