मुखौटा
मुखौटा
प्रेस रिपोर्टर नीरज एक नामी समाजसेविका नीरा के घर साक्षात्कार लेने जाता है क्योंकि हाल ही में उन्होंने नाबालिग़ बच्चों को विदेश में बेचने वाले गिरोह से छुड़ाया था। पूरी मीडिया टीम उनके घर में अपना जमावड़ा बनाये हुए थी। जैसा कि आप सब जानते ही हैं कि कोई भी ऐसी ख़बर हो तो मीडिया वाले सबसे आगे आकर उसकी तह तक पहुँच जाते हैं। कुछ असल तो कुछ मिर्च-मसाले के साथ पेश करते देखे गये हैं लेकिन नीरज थोड़ा सा अलग था। वह पूरी तह तक पहुँचकर ही अपना कार्यक्रम टी०वी०न्यूज० चैनल पर देता था। यही उसकी अपनी अलग पहचान थी।
जैसे ही नीरज घर में जाता है तो क्या देखता है ? एक छोटा लड़का ७-८ साल का होगा घर का दरवाज़ा खोलता है। वह तुरंत पूछता है कि आप तो उन लड़कों में से ही हो जिनको नीरा मैम ने गुंडों की क़ैद से छुड़ाया है। तुमको तो शैल्टर होम में होना चाहिये था फिर यहाँ कैसे ? तुरंत नीरा मैम आ जाती हैं और उसको अंदर भेजकर बात संभालते हुए बोलती हैं, “इसकी तबियत ठीक नहीं थी इसलिये मैं इसको घर ले आई थी। चलो जल्दी पूछो आपको जो पूछना है ? मुझे कहीं पर जाना है।” कहते हुए बैठ जाती हैं।
उस लड़के को देखकर ऐसा नहीं लग रहा था कि इसकी तबियत ख़राब है। नीरज को दाल में कुछ काला नज़र आ रहा था। भला वह कहाँ चुप बैठने वाला था ? क्योंकि वह किसी भी बात की तह तक पहुँचने के लिये मशहूर जो था। यह बात नीरा भी अच्छी तरह से जानती थी। इसलिये एक बार तो उसको देखकर वह ठिठक ही गई थी। नीरज ने एक के बाद एक सवाल पूछने शुरू कर दिये। नीरा बड़ी सफ़ाई के साथ उत्तर देती गई। अभी साक्षात्कार पूरा भी नहीं हुआ था कि नीरा के घर में बाथरूम जाने के बहाने उसने और सारे बच्चों को भी एक कमरे में देख लिया ! जो डरे सहमे से दुबके हुए एक कोने में बैठे थे।
अब तो उसे सबूत भी मिल गया था। उसने पूरी अपनी टीम को वहाँ बुला लिया और मैम का ख़ुलासा सीधे टी०वी० चैनलों पर दिखा दिया कि कैसे लोगों के सामने एक समाज सेविका का मुखौटा लगाये हुए एक अपराधी महिला छिपी हुई है ? जो नाबालिग़ बच्चों से उनका बचपन छीनकर कैसे काम करवाती है ? पढ़ाई करने की उम्र में दिन-रात काम में झोंक देती है। ख़बर आते ही सब दाँतों तले अंगुली दबाने लगे कि बाहर से समाजसेविका और अंदर से छी:!
ख़बर मिलते ही पुलिस भी तुरंत वहाँ पहुँच गई और बच्चों को आज़ाद किया गया। उनसे पता लगा कि कैसे वह गाँव से यह कहकर लाई थी कि शहर में रोज़गार दिलायेगी। परंतु यहाँ आकर पता लगा कि रोज़गार और कोई नहीं बस इनकी सेवा करनी है। ना दिन अपना ना रात अपनी और एक आवाज़ में ना पहुँचो तो कोड़े पड़ते हैं। कमर पर कोड़े के निशान भी दिखाते हैं। साहब हमें इनसे बचा लीजिये हम यहाँ रहना नहीं चाहते ! कहकर बच्चे रोने लगते हैं।
सब बच्चों को शैल्टर होम पहुँचाया गया और समाजसेविका को जेल।
इस तरह के मुखौटे पहने हुए अनेक लोग हमें समय-समय पर मिलते रहेंगे पर हमारा कर्तव्य हमेशा यही होना चाहिये कि हम कैसे सजग रहते हुए उनके मुखौंटों के पीछे छिपे हुए असली चेहरों को बाहर निकाल पायें और एक सच्चे भारतीय होने का कर्तव्य निभा सकें।