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श्यामा

श्यामा

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कल रात बहोत देर से सोयी थी मैं, शुक्रवार था, सभी दोस्त अपने अपने ऑफिस के बाद मेरे घर आने वाले थे, क्यूंकि इस बार महफ़िल की मेज़बान मैं थी |

ख़ूब गपशप हुई, खाना आर्डर किया, म्यूजिक सुना, और एक दुसरे का जमकर मज़ाक उड़ाया शाम को 9 बजे शुरू हुई महफ़िल रात को 2.30 बजे तक चली फिर सब एक-एक करके अपनी कार की चाबियाँ टटोलते रात ही को घर के लिए निकल गए |

सुबह की 10 बज रही है, दरवाज़े की घंटी बजी |

मैंने नज़रअन्दाज किया और तकिया अपने कानो पर रखकर सो गयी | दुबारा बजी, और लगातार 10 मिनट तक रुक-रुक कर बजती रही | मैं झुंझलाते हुए उठी और आँखे मलते हुए दरवाज़ा खोला |

सामने मेरी कामवाली थी | मैंने कहा क्यूँ आई तुम? नींद ख़राब कर दी मेरी | तुम चली भी जाती तो मैं कुछ नहीं कहने वाली थी तुम्हे |

तुम्हारी सफाई से ज्यादा प्यारी है मुझे अपनी नींद, मैंने चिढ़ते हुए कहा |

वो हँस दी और कहने लगी, आपको फर्क नहीं पड़ता पर मुझे अच्छा नहीं लगता की घर साफ़ नहीं हुआ | अब आप आराम से सो जाइये मैं सफाई कर लेती हूँ, और हाँ, बस एक मिनट सोफा पर बैठिये मैं चद्दर बदल देती हूँ, काफी दिन से एक ही चद्दर बिछी है, कपड़े भी वाशिंग मशीन में डालने हैं आज |

मैं रुआंसी शक्ल बनाके सोफे पर पड़ी रही जब तक वो मेरे रूम से कपड़े बटोर रही थी और चीजों को अपने ठिकाने रख रही थी | 15 मिनट में उसने पूरा कमरा समेटा और मुझे हमेशा की तरह गुनगुने पानी का ग्लास थमाया और कहा "जाओ दीदी अब आराम से सो जाओ अपने रूम में", मैं काम करके आपके लिए नाश्ता बना के चली जाउंगी | आपकी मम्मी जब पिछली बार आई थी और जो साबूदाना खिचड़ी बनाना सिखाया था ना, वो बना के जाउंगी, बिलकुल वैसे जैसी आपको पसंद है | फिर वो धीरे धीरे कुछ गुनगुनाते हुए अपना काम करने लगी | मेरी नींद अबतक उठ चुकी थी | पानी पी कर मैंने उसे चाय बनाने को कहा और अपने फोन में खो गयी |

श्यामा (मेरी कामवाली) मुझसे कुछ 2-3 साल छोटी, छरहरे बदन वाली, सांवली, मासूम सी दिखती थी, जो एक 3 साल के बच्चे की माँ थी | मेरी इकलौती एकतरफा सहेली|

'एकतरफा' क्यूंकि हम दोनों में से बातें सिर्फ उसी के पास थी, 'सहेली' क्यूंकि मैं उसकी बात को अनसुना नहीं करती थी और 'एकतरफा दोस्ती' क्यूंकि वो मुझसे किसी भी जवाब की उम्मीद के बिना बात करती | मेरा जवाब भी ज्यादातर सिर्फ हाँ या ना में होता था |

मैं सोफ़ा पर बैठी रही और उसके हाथ का बना एक शानदार चाय का प्याला अपने मुंह से लगाकर नींद का अंतिम नामोनिशान भी मेरी पेशानी से हट गया | मैंने देखा कि कैसे वो अपनी धुन में किचन में मेरा नाश्ता पकाने में लगी थी |

इस अजनबी शहर में आये 2 साल हो चुके थे मुझे, और श्यामा को यहाँ काम करते डेढ़ साल | कभी-कभी जीवन में कुछ ऐसी चीजें भी होती है जो जितना भी मिले उतनी ही काफ़ी होती हैं, शायद श्यामा के लिए उसकी एक तरफ़ा गपशप ही हमारी दोस्ती और उसकी कर्तव्यनिष्ठता का आधार थी, और वो इसी में खुश रहती थी |

दूसरी काम करने वालियों की तरह नहीं थी वो, ना कभी किसी और मालकिन की बुराई और न अपने घर का रोना धोना | अपनी परेशानी बताकर वार-त्यौहार पर पैसे या कपड़ों की मांग करता उसे कभी नहीं देखा था मैंने | उन सब जैसी हो कर भी सबसे अलग थी वो |

मैंने किचन में झाँका तो हर एक डब्बा चमचमाता और हर बर्तन अपनी जगह पर जमा हुआ था, सहसा ही मेरे मुंह से कुछ निकला जो शायद अबतक का मेरा उससे किया गया सबसे पहला व्यक्तिगत सवाल होगा |

मैंने पुछा श्यामा कितनी बजे से काम शुरू करती हो और कितने घरों में काम करती हो?

"इस बिल्डिंग के कुछ 6 घरों में | सुबह 7 बजे से आती हूँ दीदी, शाम 6 बजे तक सब ख़तम करके अपने घर जाती हूँ |"

बहोत थक जाती होंगी? पैसा भी मैं तुम्हे सिर्फ सफाई करने का देती हूँ, तुम क्यूँ ज़बरदस्ती अतिरिक्त काम करती हो? मैंने पूछा |

वो मुस्कुरा दी और साबूदाना भिगोने लगी |

मैं भी हमेशा काम के झंझट में भागती-दौड़ती रहती थी, कभी ध्यान ही नहीं रहता कि वो क्या-क्या काम देख रही है, बस हर महिने का तय रूपया मैं उसे थमा देती थी और वो ख़ुशी ख़ुशी ले लेती थी |

मैंने फिर पूछा, तुमने मेरी बात का जवाब नहीं दिया? पैसों की ज़रूरत है तुम्हें? तुम खुल कर कह सकती हो, मैं कर दूंगी तुम्हारी मदद |

वो फ़िर कुछ नहीं बोली |

मैंने कहा ओफ्फो | अब बताओ भी ?

"दीदी, एक बात है जो आपसे कहनी थी" उसने धीरे से कहा|

"तो, कहो" ,

आपको याद है कुछ 6 महिना पहले आपको जब नया फ्रिज और अलमारी घर में शिफ्ट करनी थी आपने मुझसे कहा था कि किसी को इसमें मदद करने के लिए भेज दूँ ?

"फिर तुमने अपने पति और उसके भाई को भेजा था ना, हाँ याद है मुझे" मैंने कहा

उसदिन मेरा पति अपनी मजदूरी के पैसों के साथ कुछ और भी घर ले आया था|

"क्या?"

उसने सर झुका कर कहा "आपकी एक घड़ी"

"वो रोज़ शराब पीकर घर आने लगा, मेरे लिए साड़ी भी लाया, बच्चे के लिक कपड़े , जब मैंने पुछा कि इतने पैसे कहाँ से आये?

तब उसने बताया कि आपकी एक मंहगी घड़ी चुरायी उसने, उसी को बेच कर वो ये सब कर रहा है |

जब मैंने उसे वो घड़ी वापस लाने को कहा तो उसने मुझे बहोत पीटा और कहा कि अगर मैंने अपना मुंह खोला तो वो मुझे और मेरे बच्चे को घर में नहीं रहने देगा |

"मैं डर गयी थी कि अगर आपको सच्चाई बता दी तो आप मुझे काम से निकाल दोगे | मेरा घर और काम दोनों छीन जाते |इसीलिए मैं चुप रही जब आपने मुझसे पुछा कि क्या मैंने सफाई करते वक्त वो घड़ी देखी? पर मैं हैरान थी कि मेरे ना कहने पर आपने दूसरी बार दुबारा वो सवाल नहीं किया |

मुझे ये बात रोज़ सताने लगी कि आपने मुझपे बिलकुल शक नहीं किया और घड़ी खोने को अपनी ही लापरवाही समझ के भूल गयी |

ये बात खाए जा रही थी मुझे कि मैंने इतनी अच्छी मालकिन का भरोसा तोड़ा | मैं आपके पैसे तो नहीं लौटा पाती पर तब से मैंने ठान लिया कि जो कुछ भी मुझसे बन पड़ा, मैं आपके लिए करुँगी | आपके लिए थोडा ज़्यादा काम करना मेरी मानसिक थकान को मेरी शरीर की थकान से बहोत कम कर देता है| "

"यकीन मानिये दीदी, ये मेरे अपने अच्छे के लिए ही कर रही हूँ मैं क्यूंकि मैं ये कभी नहीं चाहूंगी कि मेरा बेटा भी बड़ा होकर वो करे जो उसका बाप कर रहा है |

शायद उसकी गलती का प्रायश्चित करके मैं अपने बेटे का भविष्य सुधार पाऊं |"

कुछ क्षणों तक मैं एक तक उसे निहारती रही |

श्यामा पढ़ी लिखी नहीं थी, पर उसकी ये बातें मुझे दुनियादारी की दकियानूसी बातों से कहीं ज़्यादा गहरी लगीं

"अचानक मेर तन्द्रा टूटी, मैंने भारी आवाज़ से कहा, ओह तो तुम अब उसका भविष्य सुधारोगी, यहाँ बर्तन औरकपड़े धो कर ?

अरे जिसका भविष्य तुम्हें सुधारना है वो तो अब भी अपने शराबी बाप की हरकतों को देख कर वो सब ही सीखेगा|

कुछ नहीं होगा तेरी मजदूरी और ईमानदारी से श्यामा, कुछ नहीं होगा जबतक तु अपने उस निकम्मे पति को छोड़ नहीं देती |

और छोड़ कर कहाँ जाउं दीदी, गरीबों का कौन है ? उनपर तो बस कुछ पल के लिए दया की जा सकती है, इससे ज्यादा मदद की उम्मीद नहीं कर सकता किसी से भी कोई|

अगले पल मैं कुछ ऐसा बोल पड़ी जिसकी कल्पना ना तो मैंने और ना ही उसने कभी की होगी, मैंने कहा

"तो फिर मेरे घर आ जा रहने, खाना पका लेना, घर साफ़ कर लेना, सब्ज़ी राशन ले आना |

मेरे फ्रेंड की मम्मी प्ले स्कुल चलाती है पास में, उसमे काम कर लेना, तेरा बच्चा भी वहीँ पल जायेगा"

तु हॉल में रह लेगी ना?|

वो कुछ बोल ही नहीं सकी, बहोत खुश थी वो और बहोत अचंभित |

शायद हम दोनों ही अपने-अपने स्तर के लोगों के बीच होकर भी उनसे अलग थे |

और हमारा ये अनोखापन ही हमदोनों को इतना जोड़ गया कि हमारी एकतरफ़ा दोस्ती भी आज संवेदनाओं का सच्चा उदाहरण लग रही थी |


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