भैया ! राईट लेना

भैया ! राईट लेना

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सौम्या एयरपोर्ट से बहार निकलकर अपनी टैक्सी का इंतजार कर रही है। देहरादून से अहमदाबाद की फ्लाईट काफ़ी थकावट भरी थी, 10 घंटे का ले-ओवर , अहमदाबाद पहली बार आ रही है वो, यहाँ के एक कोलेज में डीज़ाइन स्टूडेंट के तौर पर पढने आई है| देहरादून की रहने वाली है , पिता आर्मी में ब्रिगेडीयर हैं। बेटी भी पिता पर गयी है, काफ़ी जिंदादिल और बहादूर| ख़ासी जगहों पर सोलो ट्रिप कर चुकी है. अकेले अहमदाबाद आना कोई बड़ी बात नहीं है उसके लिए। चुस्त और समझदार लड़की है सौम्या, इसीलिए माता-पिता निश्चिंत हैं।

‘इन दो शहरों के लिए सीधी फ्लाइट बजट में मिलना मुश्किल नहीं नामुमकिन है’, सौम्या ने सफ़र के दौरान अपने पास की सीट पर बैठी लड़की से कहा जो उसके साथ ही बाहर खड़ी अपने परिजनों की बाट निहार रही थी , उसने बस सहमती में सर हिलाया ही था कि एक सिडान कार में बैठा युवक झटपट बाहर आया। उसे गले लगाया ।सामान कार की डिक्की में रख उसके लिए दरवाज़ा खोला और ड्राइविंग सीट पर जा बैठा। सौम्या वहीँ खडी इन सब गतिविधियों को देख रही थी और टेक्नोलॉजी को कोस थी।

“शीट ! गधे ने राइड केंसल कर दी। ”

उसे पिछले 15 मिनट से बाहर खड़ा देख बहोत से रिक्शा वाले उसके आस पास मंडराने लगे। उसने पहले ध्यान नहीं दिया, फिर सोचने लगी, ‘अभी 12 ही तो बज रही है’ और वैसे भी उसकी फ्रेंड पीहू ने कहा था अहमदाबाद शहर सेफ है। रात में घुमने में कोई दिक्कत नहीं।

‘छोड़ो ,ऑटो ही ले लेती हूँ। ’ सौम्या बडबड़ाई।

उसने आस-पास खड़े लोगों पर एक नज़र डाली। ऐसा लगा मानो सब उसे ही देख रहे हों। वहां के आते-जाते बाकी लोगों से हटकर थी वो , मध्यम ऊंचाई की, पतली-दुबली 21 बरस की लड़की जिसके काले, सीधे रेशमी बाल, छोटी सी नाक और दूध जैसी गोरी, चमकती पहाड़ी त्वचा उसकी सुन्दरता को निशब्द ही बयान कर रहे थे। सौम्या को भी शायद यह कारण कुछ-कुछ समझ आ गया ,उसने आत्मविश्वास से रिक्शे वालों की तरफ़ देखा जो उसकी नज़रों का इशारा समझ कर एक साथ उसकी तरफ दौड़े।

सभी उसके नाइके के हूडेड जैकेट, घुटनों से फटी जीन्स और लेदर बूट्स वाले हुलिए से उससे ज़्यादा पैसों की मांग करने की फ़िराक में नज़र आ रहे थे।

‘मैडम मीटर से चलूँगा’ ‘एक्सक्यूज़ मी मेडम’ ‘किधर जाना है मैडम’ ‘अरे आओ मेरे रिक्शे में बैठो, मैं ले चलता हूँ’ जैसी बातें उसके कानों में एक साथ पड़ रही थी। फिर उनमे से एक ने तो सीधा उसका ट्रोली बैग लिया और अपने रिक्शे की ओर बढ़ने लगा।

“अरे,अरे क्या कर रहे हो? मैंने ले जाने को बोला क्या? रखो वापस सामान इधर” उसने गुस्से से कहा।

रिक्शे वालों के झुण्ड से एक आदमी कहकहा लगाकर हंस पड़ा | कुछ तीस-पैंतीस बरस का वो आदमी उनसब में सबसे ज़्यादा शरीफ़ और ईमानदार लग रहा था | सौम्या उसी के रिक्शे में बैठ गयी।

रिक्शेवाले ने एक मीठी मुस्कान के साथ सौम्या का सामान सीट के पास रखा और मीटर गिराया। उसने अन्दर बैठ कर चैन की सांस ली।

‘अच्छा मैडम किधर जायेंगी?’

‘एन.आई.डी केम्पस ले चलो, पालड़ी एरिया में है वो |’

“ओह अच्छा, वो कोलेज, अभी ले चलता हूँ”

ऑटो चल पड़ा, सौम्या ने अपना व्हाट्सएप स्टेट्स टाइप किया ‘एंड द न्यू जर्नी बिगीन्स @एन.आई.डी अहमदाबाद’ और साथ में एक दो इमोटिकन जड़ दिए।

दिसम्बर की सर्दियों का समय है ,साल के अंतिम दिन ,क्रिसमस और नए साल के आगमन की उजली रौशनी में नहाया है अहमदाबाद शहर ,सुन्दर जान पड़ रहा है, अच्छी चेतना दे रहा है ,देहरादून की तुलना में काफ़ी कम ठंडा, सौम्या इसे सुहावना मौसम कह सकती है , कौतुहल से चारों ओर देख रही है, सौम्या ने अपने फोन का जी.पी.एस ओन किया और खुद ही से बातें करने लगी ‘गांधीनगर होते हुए ये ऑटो अब इस रूट पर जाएगा, ओके, यहाँ से लेफ्ट, ठीक है......अरे...बड़ा रूट पकड़ लिया इसने....चोर कहीं का....हाँ अब सही ट्रेक...ला ला ला....हम्म हम्म ह्म्म्म...’

फिर बिच-बिच में चैट पर दोस्तों को रिप्लाई देने लगी , रिक्शे वाले ने गाना बजाया...’तुझे अक्सा बीच घुमा दूं आ चलती क्या…ओये होये..ओये होये होये ..... ‘ गाने की आवाज़ ऊँची थी, सौम्या ने यह गाना कभी नहीं सुना पर धुन पकड़कर गुनगुनाने की कोशिश कर रही थी , एक मिनट तक वो धुन के साथ अपने पैर हिलाने लगी, फिर बोर होकर जी.पी.एस देखने लगी और कहा “आवाज़ धीमी करो प्लीज़, फोन पर बात करनी है”

‘ओ...के...वो फ़िल्मी गानों का बहोत शौक है हमको’ रिक्शेवाले ने हंस कर कहा और गाना बंद कर दिया।

सौम्या ने कुछ नहीं कहा और एक नंबर डायल किया “हाँ पापा, सो गए थे? अच्छा जगे थे? मुझे ऑटो मिल गया है, 25 मिनट में केम्पस पहोंच जाउंगी, फिर रूम मिलते ही आपको टेक्स्ट कर दूंगी...हाँ......और जगे रहने की ज़रूरत नहीं है, आप आराम से सो जाओ, गुडनाईट”

फिर फोन में खो गयी और झुंझला कर बोली “ओहो, आपने फिर लम्बा रूट लिया, रुको अब मैं बताउंगी वैसे ही चलना”

“मेडम हमसे बहतर कौन जानता है अहमदाबाद के रास्तों को , चलो ठीक है। जैसा आप कहोगी वैसे ही चलाऊंगा। आपको घर पहुँचाना हमारी ज़िम्मेदारी है”

“और आपको भाडा देना मेरी” सौम्या ने व्यंग्य कसते हुए कहा।

“ओहो, भैया ! राईट लेना था ना”

रिक्शा की गति अचानक से तेज़ हो गयी, सौम्या की आँखे फटी रह गईं , वो चिल्लाई “भैया राईट लो” “राईट लो”

“सुन नहीं रहे” “कहाँ ले जा रहे हो?” “रोको”

सड़क सुनसान थी, रिक्शा बहोत तेज़ चल था और रिक्शा वाले ने स्पीकर ओन कर दिया “अरे कबतक जवानी छुपाओगी रानी कंवारो को कितना सताओगी रानी कभी तो किसी की दुल्हनिया बनोगी.....जोर जोर से संगीत की आवाज़......आवाज़ ऊँची होती जा रही थी, रिक्शावाला साथ में गाने लगा...मुझसे शादी करोगी.....

सौम्या की आवाज़ घुटती जा रही थी , उसकी फटी ऑंखो से आंसू टपक रहे थे, मुहँ लाल , होंठ सुख गए थे, कुछ समझ नहीं आ रहा...इतनी तेज़ गति में कूदेगी तो बहुत चोट लगेगी और फिर भागने का भी कोई यत्न न बचेगा।

रिक्शावाले ने एक तीखा लेफ्ट मोड़ लिया और रिक्शा रोक ली , सौम्या ज़ोर से कूदी और भागने लगी। वो उसे भागते हुए देखने लगा।

चारों ओर कंटीले झाड़ थे, और थोडा दूर जाने पर घने पेड़ , एक सैंडल भागते भागते टूट गया। नंगे पैरों से भागती और हांफती जा रही थी। पैर में कंकर चुभने लगे , वो यहाँ से वहां भागती रही और फ़िर धीरे से पीछे मुड़कर देखा तो पाया रिक्शेवाला बड़े इत्मीनान से अपनी रिक्शा का शीशा साफ़ कर रहा था और गुनगुना रहा था ,वो वहीँ एक बिजली के खम्भे के पीछे खडी हो गयी जिसका बल्ब टूटा हुआ था। उसका सामान अब भी रिक्शे में है। हड़बड़ाहट में हाथ से छुटा फोन बज पड़ा, काँलिंग लाईट की चमकती स्क्रीन से पता चला कि फ़ोन रिक्शा के टायर के पास गिरा था।

रिक्शेवाले ने फ़ोन उठाया, और स्विच ऑफ़ कर दिया।

अब वो धीरे-धीरे सौम्या की ओर बढ़ने लगा। सौम्या घने पेड़ों में घुसने लगी, जैसे ही आगे नज़र गयी, घुप्प अँधेरे से उसका दिल बैठ गया | उसने कदम पीछे कर लिए और आखें मींच कर खम्भे से चिपक गयी | अगले क्षण स्वयं को किसी भी अवस्था में पाने के लिए तैयार थी वो। आखों के आगे मौत तांडव कर रही थी | एक भयानक प्रताड़ना या मौत।

रिक्शेवाला उसके करीब बढ़ रहा है। दूर के एक खम्भे से आ रौशनी से उसकी परछाई बड़ी होती चली जा रही है| परछाई के बढ़ते आकर के साथ सौम्या की धड़कन बढ़ रही है | सांस लेना मुश्किल है, दम घुट रहा है।

रिक्शेवाले ने उसके थम्भे से चिपके हाथों को पकड़ा और उसे जोर से बहार की ओर खिंचा |.आधी गर्दन झुका कर सौम्या को सर से पाँव तक देखने लगा, और धीरे से उसके कान में कहा “आँखे खोलो मैडम”

उसके डर से झुके चहरे को उसकी ठुड्डी पर ऊँगली रखकर उठाते हुए कहने लगा “देखो ना....देखो इधर” फिर चिल्लाया “देखो !!” “खोलो आँखे”

सौम्या ने फिर भी आखें नहीं खोली, उसके दोनों हाथ रिक्शेवाले ने पकड़ रखे थे और वो आखें मींचे एक अनहोनी का इंतजार कर रही थी। शरीर ठंडा पड़ चुका था | फिर एक जोर के तमाचे ने उसे अब भी जिंदा होने का आभास दिलाया | एक और तमाचा | “खोलो ना आखें मेरी मैडम” रिक्शेवाले ने अपनी ज़बान से सौम्या के हाथ को चाटा।

सौम्या ने तुरंत आखें खोली और गिडगिडाने लगी

“आखें मत बंद करना, नहीं तो और परेशान करेंगे आपको” कहकर रिक्शेवाला अपनी शर्ट के बटन खोलने लगा | एक- एक करके उसने सारे बटन खोले, फिर शर्ट को तह किया और पास में पड़े एक चपटे पत्थर पर फूंक मारकर शर्ट उसपर रख दी |

अगले पल उसने अपनी पसलियाँ चौड़ी की और किसी पहलवान की तरह बाजुओं की मांसपेशियां दिखाते हुए उसके आगे खड़ा हो गया | फिर अपना मुंह खोलकर अपने दांत दिखाने लगा |.सौम्या ने उसपर नज़र डाली | वो बलिष्ट था | दांत सफ़ेद झक।

“एसी बोडी बनाया हूँ, सलमान जैसी, देखो दांत कितने मज़बूत हैं। हीरो दिखता हूँ या नहीं? कितनी पिक्चर देखता हूँ उसकी...जीम भी जाता हूँ” उसने सौम्या के बाल पकड़ते हुए कहा।

सौम्या चीखी, और कहने लगी “हाँ, लगते हो आप...मुझे छोड़ दो, प्लीज़..प्लीज़..”

रिक्शेवाले ने पतलून से एक कंघी निकाली, अपने बाल संवारे, फ़िर पूछा “और भैया? भैया लगते हैं?”

सौम्या ने कांपते हुए कहा “नहीं, नहीं बिलकुल नहीं...”

“सच” रिक्शेवाले ने अपनी कमर से बंधे बेल्ट को खोलते हुए पूछा।

“हाँ....आप तो हीरो लगते हो एकदम....सलमान की तरह”

रिक्शेवाले ने अपना बेल्ट हवा में कोड़े की तरह चलाया “..चलो अब अकल आई....नहीं तो धरते एक और....”

“नहीं....छोड़ दो मुझे” सौम्या ने मार के डर से अपना चहरा पीछे कर लिया।

लगभग एक मिनट तक कोई आहट नहीं हुई। सौम्या ने धीरे-धीरे अपनी आखें खोली और देखा रिक्शेवाला अपनी शर्ट पहनकर रिक्शे की तरफ बढ़ रहा था, कुछ ही पल में रिक्शा उसकी तरफ़ आने लगा।

रिक्शा उसके पास रोक कर रिक्शेवाले ने कहा “चलो फिर...छोड़ ही देते हैं आपको” वो जोर जोर से हँसने लगा

उसने सौम्या को रिक्शे में बिठाया और मुख्य रस्ते की ओर चल पड़ा। सौम्या पूरे रस्ते स्तब्ध बैठी रही। कुछ देर में ऑटो एन.आई.डी. केम्पस के आगे खडी थी। रिक्शेवाले ने बड़ी सहजता से मुस्कुरा कर कहा “ मैडम चार हज़ार रुपये हुए”

सौम्या रिक्शा से उतरी, अपना सूटकेस उतारा और पर्स में रखे केश से चार हज़ार गिन कर उसे दे दिए।

“थैंक यू मेडम | कोई ज्यादा परेशानी तो नहीं हुई ना?”

“नहीं”

“और शहर में आके कुछ सीखा ?”

“हाँ”

“क्या?”

“कि किसी रिक्शेवाले को भैया नहीं कहना |” सौम्या अपना सामान उठाकर केम्पस गेट की ओर दौड़ पड़ी।

रिक्शेवाले ने रिक्शा मोड़ा और स्पीकर ओन किये ...."जस्ट चील चिल जस्ट चिल…"


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