अक्स
अक्स
समंदर की लहरे साहिल से टकराकर संगीत बजा रही थी। चाँदनी अपने पूरे शबाब पर थी। हल्की सर्दी मौसम को एक हसीन एहसास करा रही थीं।
वो बेखबर दुनिया से एक दूसरे मे समाये थे, जैसे चाँद के आगोश में चाँदनी हो।
"सुनो...सुनो ना !
अभी भी नही सुधरे...एक बार में ही जवाब नहीं देते हो।"
"तुम्हारी आँखें कुछ बोलने दे तब ना।"
सारा कसूर तुम्हारी आँखों का हैं जो मैं इन मे डूब गया हूँ।"
"बस बस रहने दीजिए...बातें तो कोई आपसे बनवाये।"
"अरे कहाँ सच ही तो बोल रहा हूं चाहे तो मेरे दिल में झांक कर देखो।"
कहकर उसके लबो पर एक अक्स खींच दिया, शरमा कर वो लाल हो गई। गाल अंगारे की तरह दहकने लगे, रूह जैसे पिघल रही थीं...।
तभी हवा का झोंका आया और शोर मचाने लगी।
"वसुधा....!"
वो जोर से चिल्लाया...
घुटने के बल बैठ कर वो रोने लगा।संमदर भी खामोश हो गया...। हवा भी डर गई, बस वो रो रहा था।
"वसुधा कहाँ चली गई तुम, काश वो लहर मुझे भी ले जाती...काश तुम्हारे साथ संमदर मुझे भी समेट लेता।"
उसके क्रंदन से चाँद भी बादल मे छिप गया।
अचानक खनकती हुई हँसी सुनाई दी ।
"पागल हो प्रणय ! तुम्हारे साथ ही तो हूँ...अपनी आँखे बंद करो, मैं तुम्हारी आँखों मे बसी हूँ।
मेरे जिस्म की खुशबू तुम्हारी रूह मे बसी है।
मेरा अक्स, हमारा मुन्ना... उसका ध्यान रखो !
जाओ प्रणय, घर जाओ...।"
वो यंत्रवत - सा उठा और चल पड़ा।
समंदर की लहरें फिर चल पड़ी, जैसे वसुधा मुस्कुरा रही हो।