ज्ञान की चमक (नारंगी रंग)
ज्ञान की चमक (नारंगी रंग)
(सातवां दिवस - नारंगी रंग
नौ देवियों के रूप में सातवीं नारी शक्ति बेटी को नमन है । नवरात्रि का सातवां दिवस माँ कालरात्रि के नाम है। माँ कालरात्रि ज्ञान और बोध की देवी है।नारंगी रंग ज्ञान और चमक का प्रतीक है। ज्ञान और शिक्षा में अंतर है। आज की पीढ़ी शिक्षित है ज्ञानी नही। आज हम हम अपने स्व के विकास के लिए नही नौकरी पाने के लिए ज्ञान ग्रहण करते है। इसलिए हम सिर्फ शिक्षित हो पाते है ज्ञानी नही। वास्तव में शिक्षा का उद्देश्य ज्ञान प्राप्ति होना चाहिए नौकरी प्राप्त करना नही। चलिये आज की कहानी पढ़ते है।
वह दौड़कर आ कर मेरे गले से लग गईं। उनका रिजल्ट आया है। उन्होंने मेरे दोनों हाथों को थामते हुए चूमकर अपनी आँखों फिर माथे से लगा लिया। उनकी आँखें आँसुओ से भरी थी पर चेहरा चमक रहा था। वह बोलीं, "भाभी ने कभी इस घर में मुझे परायापन नही महसूस होने दिया। पर फिर भी ज़िन्दगी बोझ लगती थी। लगता था क्यो ज़िंदा हूँ ? निरूद्देश्य जीवन जी रही थी। तुमने आकर जीना सिखाया मेरे जीवन को एक दिशा दी"।
सासूमाँ भी आकर मेरे माथे को चूमकर बोली, "अब सही अर्थों में मेरी जिम्मेदारी पूरी हुई। मैं इसे ले तो आई थी पर इसकी आँखों मे यह चमक, चेहरे पर यह तेज नही ला पायी थी। ना ही इसके मन मे जीने की ललक जगा पायी थी। जुग जुग जियो बेटा"।
कुछ समझ नही आ रहा ना, रुकिए कहानी शुरू से शुरू करती हूँ। शादी के बाद ससुराल पहुँचते ही बहुत सारी रस्मों के बाद मेरा परिचय ससुराल के सभी लोगों से करवाया गया। पैर छूने, मुँह दिखाई की रस्म हुई। मेरी रिश्ते की जेठानी मेरा परिचय सबसे करवा रही थी। मैं मन ही मन सोच रही थी क्या जरूरत है परिचय की ? यह परिचय तो ऐसे दे रहे हैं जैसे मुझे सब याद ही रहेगा । मुस्कुराते हुए हैं मैं सभी लोगों का परिचय और आशीर्वाद ले रही थी। अंत में सास ने एक साधारण सी महिला या लड़की, पता नहीं जो भी हो शायद मेरी ही उम्र की थी का पैर छूने को बोला और मुझे कहा, "यह नमिता है। रिश्ते में तुम्हारी बुआ सास लगती है। घर के काम में मेरी मदद करती है। इसका पूरा सम्मान करना।
शादी के कुछ दिनों बाद मैंने देखा सुबह की शुरुआत नमिता की पुकार से ही होती। कहने को तो वह वहां रहती थी । पर घर में उसकी स्थित मुझे एक नौकरानी की सी लगी। हमउम्र जानकर मैंने एक दिन उसे कुछ मजाक में बात की। सासु माँ ने सुन ली तो मुझ पर नाराज हो गयी। मुझे भी लगा इस घर, ससुराल में मेरी स्तिथि एक नौकरानी से भी कमतर है। मुझे बुरा लगा यह देख कर, सासु माँ बाद में मुझे समझाने लगी कि वह रिश्ते में तुम्हारी बुआ सास लगती है। काम कितना भी करवा लो पर सम्मान से बात किया करो। मैं समझ नहीं पा रही थी कि वह नौकरानी है या पारिवारिक सदस्य। वैसे तो सम्मान से बात तो हम सभी के साथ करते हैं और मैंने तो कुछ हंसी मजाक ही किया था। वास्तव में मुझे उसे देखकर दया आती । वह मेरी हमउम्र थी या थोड़ी ही बड़ी रही होगी। टुकडे टुकड़े में पता चला कि वह एक विधवा है। शादी कमउम्र में हो गयी थी। गौना नहीं जा पाया था कि पति की मौत हो गई । ससुराल वाले ले नही गए। दूसरी शादी हो नही पायी । गाँव में माँ बाप के साथ ही रहती थी। शादी हो गई तो पढ़ाई बंद करवा दी गई थी कि अब जो पढ़ना हो ससुराल जाकर करना। पढ़ने का इतना शौक भी नहीं था अभी करोना की पहली लहर में ही उसके माता-पिता भी चले गए।सासु माँ बताती है यह अभागी थी इसलिए बच गई । नजदीकी रिश्तेदार के रूप में तरस खाकर या जमीन के लालच सासु माँ अपने साथ लिवा लाईं।
घर में कामवाली लगी थी फिर भी नमिता एक पैर पर सब की आवाज पर दौड़ती। अब हम दोनों दोपहर में थोड़ी बहुत बातें कर लेते थे। मैं ध्यान रखती थी कि मैं बातों में अपनी मर्यादा ना भूलूँ । अभी हमारी बातों में सासु माँ भी शामिल होती। हाँ मेरी सासु माँ बुरी नहीं थी। अब मुझे समझ आ रहा था कि तब मैं नई थी। वह मेरा स्वभाव नही जानती थी, तो डरती थी कि कही मैं नौकरानी समझ कर नमिता का अपमान न कर बैठूँ। उनको भी बेटी नहीं थी तो नमिता रूप में उनकी कमी भी पूरी हो गई थी । नमिता का कहना था कि निरूद्देश्य जीवन जीने से अच्छा है किसी की मदद करना। वह इसलिए भी सब काम भाग भाग कर करती कि उसे यह ना लगे कि वह किसी पर बोझ है। सासू माँ का भी यही कहना था कि उसको ना लगे कि वह पराई है इसलिए वह जो करना चाहती है उसे करने देती हूँ।
एक दिन मैंने मौका पाकर सासू माँ को कहा, "अगर आप उन्हें इतना ही मानती हो तो उनको आगे की पढ़ाई क्यों नहीं करवाई"? सासू माँ बोली, "बोला था। पर वह पढ़ना नहीं चाहती। वैसे भी दूसरों की अमानत है। कुछ ऊँच नीच गई तो लोग बोलेंगे जमीन के लालच में..."।
बात तो सच थी । मैं भी तो यही सोच रही थी। मैंने अभी ऑफिस जाना शुरू नहीं किया था। कोरोना के दो साल बाद भी मेरा वर्क फ्रॉम होम हीं था। वह मुझे लैपटॉप पर काम करते बहुत ध्यान से देखती। मैंने पूछा, "क्या देखती है आप" ?
वह कुछ नहीं बोली सिर्फ मुस्कुरा दी। मैंने कहा, "आपको सीखना है"।
उनकी आँखों में चमक आ गई । मैंने हाथ पकड़ कर बैठा लिया और बोला, "देखो जैसे मोबाइल चलाते हैं यह कुछ कुछ वैसा ही है। मैंने उन्हें कुछ सिखाना चाहा तो वह बोली, "मुझे आता है। स्कूल में सीखा था"।
अरे हाँ ना, आप कितना पढ़ी हो ?
वह बोलीं, "बारहवीं तक । मुझे पढ़ाई करना इतना अच्छा नही लगता पर कंप्यूटर चलाना अच्छा लगता है"।
"क्या बात है, आपने कभी किसी को बताया नहीं"।
वह हँस दी। शायद हंसी ही उनके सारे सवालों का जवाब थी इंसानों के भी तकदीर के भी। मैंने सासू माँ से पूछ कर पति का पुराना कंप्यूटर उनके लिए ठीक करवा दिया उसमें नेट भी डाल दिया और उसको अपडेट भी करवा दिया। उन की टाइपिंग स्पीड देख कर तो मैं हैरत में पड़ गई थी ।
"अब इस पर क्या करना है आपको" ? मैने पूछा।
वह बोली, "कोडिंग..."।
वह तो मुझे एक पर एक शाक दिये जा रही थीं।
मैंने पूछा, "आपको मालूम है कोडिंग क्या होती है"?
वह बोलीं, "हाँ."। फिर उन्होंने बताया कैसे वह मोबाइल पर कोडिंग से जुड़े वीडियों को देखती है। और उनको कोडिंग थोड़ी बहुत आती भी है। मैंने उसकी ऑनलाइन कोडिंग क्लास लगवा दी। अब मुझे खुशी है कि मैंने किसी निरुद्देश्य जीवन को एक दिशा दी है। आज भी नमिता भाग भाग कर घर के सारे काम करती है पर अब उसके चेहरे पर जीवन की मुस्कान है, ज्ञान की चमक है।
मुझे नही मालूम कि कुछ सालों बाद अन्य कहानी की नायिकाओं की तरह वह अपनी खुद की क्लास खोलेगीं या कोडिंग के द्वारा अपना कोई धमाकेदार गेम्स लांच करेगीं।वह जो कुछ भी करेंगी पर अब अपने आप को किसी पर बोझ नही मानेंगी ना ही ज़िन्दगी बोझ समझ कर जियेंगी। शादी भी उन्हें करनी होगी तो हो ही जाएगी। मेरा कहना वापस वही है, ज्ञान का उपयोग भौतिक अर्थों में सिर्फ जीविकोपार्जन के लिए करना आवश्यक नही। यह अपनी आत्मसंतुष्टि के लिए किया जाना चाहिए।
खैर अभी तो नमिता का चेहरा ज्ञान के तेज से चमक रहा है। मेरा और सासुमाँ का चेहरा खुशी से।