बिरसा मुंडा
बिरसा मुंडा
९ जून १९०० को महज २५ वर्ष की उम्र में स्वतंत्रता सेनानी व जननायक बिरसा मुंडा ने रांची जेल में अंतिम सांस ली।
बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर, 1875 को छोटा नागपुर में मुंडा परिवार में हुआ था।मुंडा एक जनजातीय समूह था जो छोटा नागपुर पठार में निवास करते थे।1897 में महज़ 22 साल की उम्र में बिरसा मुंडा ने उलगुलान की शुरुआत की थी, जिसका तात्पर्य महाविद्रोह से है। जनजातीय आंदोलनों में सबसे विस्तृत व संगठित बिरसा आंदोलन था। यह अंग्रेजों की लागू की गयी ज़मींदारी प्रथा और राजस्व व्यवस्था के ख़िलाफ़ लड़ाई के साथ-साथ जंगल-ज़मीन की लड़ाई थी, यह सूदखोर महाजनों के ख़िलाफ़ भी जंग थी। ये महाजन, जिन्हें वे दिकू कहते थे, क़र्ज़ के बदले उनकी ज़मीन पर कब्ज़ा कर लेते थे। यह मात्र विद्रोह नहीं था, यह आदिवासी अस्मिता, स्वायतत्ता और संस्कृति को बचाने के लिए संग्राम था।
आदिवासियों का संघर्ष अट्ठारहवीं शताब्दी से चला आ रहा है।1766 के पहाड़िया-विद्रोह से लेकर 1857 के ग़दर के बाद भी आदिवासी संघर्षरत रहे।आदिवासियों को लगातार जल-जंगल-ज़मीन और उनके प्राकृतिक संसाधनों से बेदखल किया जाता रहा और वे इसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते रहे।
बिरसा मुंडा एक जर्मन मिशन स्कूल में पढ़ते थे, लेकिन उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और आदिवासियों के अधिकारों के लिए लड़ना शुरू कर दिया। उन्होंने 'बिरसाइत' नामक एक संप्रदाय की शुरूआत की।
अंग्रेजों ने ज़मींदारी व्यवस्था लागू कर आदिवासियों के वे गांव, जहां व सामूहिक खेती किया करते थे, जमींदारों, दलालों में बांटकर, राजस्व की नयी व्यवस्था लागू कर दी। इसके विरुद्ध बड़े पैमाने पर लोग आंदोलित हुए और उस व्यवस्था के ख़िलाफ़ विद्रोह शुरू कर दिए गए।
1886 और 1890 के बीच बिरसा मुंडा ने चाईबासा में मिशन-विरोधी और स्थापना विरोधी गतिविधियों में भाग लिया। बिरसा मुंडा को भारतीय समाज एक ऐसे नायक के तौर पर जानता है जिसने सीमित संसाधनों के बावजूद अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था और अंग्रेज़ी हुकूमत को लोहे के चने चबवा दिए। बिरसा को पकड़ने के लिए 500 रूपये का इनाम रखा गया।1900 में अंग्रेज़ बिरसा को पकड़ने में कामयाब रहे। दो साल जेल में रहने के बाद जेल में ही उनकी मृत्यु हो गई। ऐसा कहना है कि उन्हें जेल में ज़हर दे कर मारा गया।
झारखंड में कई जातियों के लोग बिरसा मुंडा को भगवान की तरह पूजते हैं।बिरसा और उसके शिष्यों ने क्षेत्र की अकाल पीड़ित जनता की बहुत सहायता की जिससे उनके जीवन काल में ही लोग एक महापुरुष मानने लगे और धरती आबा के नाम से पुकारने और पूजा करने लगे थे। बिरसा मुण्डा की समाधि राँची में कोकर के निकट डिस्टिलरी पुल के पास स्थित है। वहीं उनकी प्रतिमा भी लगाई गई है। उनकी स्मृति में रांची में बिरसा मुण्डा केन्द्रीय कारागार तथा बिरसा मुंडा अंतरराष्ट्रीय विमानक्षेत्र भी है।
10 नवंबर 2021 को भारत सरकार ने 15 नवंबर यानी बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की।15 नवंबर 2000 को उनकी जयंती पर ही झारखंड को बिहार से अलग किया गया था।
