बचपन की शरारत भरी यादें -शैतानी का फल
बचपन की शरारत भरी यादें -शैतानी का फल
15 अगस्त का दिन था । हम घर पहुंचे । बस्ता रखा । तभी दूसरा मित्र आ गया। बोला," चल ! उस घर में खेलेंगे," कह कर मित्र ने अधुरे बने मकान की ओर इशारा कर दिया।
हम जिस पुलिस लाइन में रहते थे वह कुछ मकान बन रहे थे । उस मकान की दीवारों पर चढ़ना। वहां से रेत में कूदना हमें बहुत अच्छा लगता था। यही हमारी शैतानी की कार्यस्थली थी।
" कौन ज्यादा लंबा कूदेगा?" मेरे मित्र ने कहा।
हम 8-10 लड़के लड़कियां थे। सभी एकदूसरे से बढ़चढ़ कर बोले, " मैं कूदूंगा। मैं कूदूंगा।"
फिर क्या था ? सभी बारीबारी से कूदने लगे। इस से मकान बनाने वाले की रेत बिखर जाती थी। इसी के साथ ही हम ईंटें जमीन पर लंबी जमाते थे । एकदूसरे से दूर खड़ी करते थे । ऐसी ही 100-200 ईंटें सीधी खड़ी कर देते थे।
तब एक ईट को धक्का देते। वह दूसरे से टकराती। दूसरी ईट गिरती। वह तीसरे से टकराती। इस तरह हमारी ईटों की रेल चला करती थी।
ऐसे ही हम 15 अगस्त पर शैतानी कर रहे थे। हमारी शैतानी से मकान बनाने वाला नाराज था । कारण, हम जगहजगह ईटों को फैला देते थे। रेत बिखर जाती थी । इस कारण वह छुट्टी व अन्य दिनों में हमारा बहुत ही ध्यान रखता था। ताकि हम उस के मकान और रेत पर शैतानी ना करें।
15 अगस्त की छुट्टी का दिन था। हम मकान की दीवार पर चढ़ गए । बारीबारी से रेत पर कूद रहे थे। मेरे मित्र ने कहा, " चल देखते हैं, इस बार कौन ज्यादा लंबा कूदता है ?"
" चल ! देखते हैं," कह कर मैं ने मकान की बनती हुई दीवार पर दौड़ लगा दी। तेजी से भागते हुए कूद गया, " मैं यहां तक कूदा हूं," कह कर मैंने रेत पर निशान बना दिया।
मेरे मित्र ने वैसा ही किया। वह तेजी से दीवार पर दौड़ा। रेत पर कूद गया। वह मेरी लाइन से थोड़ा ज्यादा कूदा था," मैं तुझ से ज्यादा लंबा कूदा हूं, " कह कर उस ने मुझे चिढ़ाया।
मैं पीछे कैसे रहता । मैं ने , " देख ! अब मैं तुझ से ज्यादा लंबा कूदूंगा, " कह कर मैं तेजी से दीवार पर चढ़ा गया। फिर दीवार पर तेजी दौड़ कर कूदने वाला था, तभी मेरा मित्र जोर से चिल्लाया, " पप्पू ! भाग ! मकान वाला आया है !! " कह कर मित्र तेजी से घर की ओर भाग गया।
मैं तेजी से दीवार पर दौड़ रहा था । एकाएक रुका। सम्भाला। मगर , तब तक बहुत देर हो चुकी थी । सीधा नीचे गिरा। जमीन पर पत्थर के नुकीले टुकड़े पड़े हुए थे। सीधे ठोड़ी में घुस गए। खून निकलने लगा।मकान मालिक तब तक पास आ चुका था। मैं अपना खून देख कर डर गया था। तेजी से रोने लगा। तब मकान मालिक ने पास आ कर मेरी ठोड़ी पर हाथ रखा। उसे दबाया । खून बंद किया। मुझे चुप कराया। फिर पूचकार कर मेरे घर ले जाने लगा।
उस ने तो मुझे कुछ नहीं कहा। मगर, मैं बहुत घबराया हुआ था। पिताजी डाटेंगे। मम्मी मारेगी। शैतानी करता है । शर्म नहीं आती। हो सकता है मुझे मार भी पड़ जाए। यह सोच कर मैं घबरा रहा था।
जब घर पहुंचा पिताजी उसी समय थाने से घर आए हुए थे । मेरी हालत देख कर बोले, " क्या हुआ ?" उन की रौबदार आवाज सुन कर मैं डर गया। मैं रोने लगा। बोला," गिर गया था।"
" शैतानी की होगी! " पिताजी ने छूटते ही कहा। फिर मकान मालिक को हाथ हटाया। मेरा घाव देखा । और तब उन्होंने मकान मालिक से पूरी बात पूछी। जिन्होंने पूरी बात विस्तार से बता दी। उस वक्त मेरे चेहरे पर डर के भाव आजा रहे थे।
तब पिताजी कुछ देर चुप रहे। फिर गुस्सा करते हुए बोले, " वह तो ठीक रहा ठोड़ी ही टूटी है। अभी आंख में पत्थर लग गया होता तो ?"रही सही बात मम्मी ने पूरी कर दिन ," अंधा हो जाता। शैतान कहीं का।"
तब पिताजी मुझे साइकिल पर बैठा कर अस्पताल ले गए । ठोड़ी में टांके लगवाए। बहुत दर्द हुआ। मैं बहुत पछताया। पिताजी से शैतानी न करने का वादा किया। तब वे बोले, " बेटा ! एक बात ध्यान रखना, शैतानी करो मगर उसे कबूल करना सीखना। और हां किसी से डरना पड़े, ऐसा काम कभी मत करना।
मैं चुप रहा है। एक समझदार बच्चे की तरह चुपचाप हां में गर्दन हिला दी।
आज जब भी उस बात को स्मरण करता हूं तो आंखें भर आती है। क्या वाकई मातापिता बच्चे को इतना प्यार करते हैं। गुस्सा होने पर भी चुप रह जाते हैं।