- शिव विवाह
- शिव विवाह
बिन बुलाए गई ज्यों सती पिता दक्ष के यज्ञ में ,
सुनके घोर अपमान हुई आहत अपने आराध्य की ।
दे दी वही आहुति यज्ञ में दिया तन अग्निसन्मुख ,
शिवशंकर हुए क्रोधित हो गए दुःख में समाधिग्रस्त ।
लिया ब्रह्मा से वरदान इधर मृत्यु ना हो शिवतनय बिन ,
गंगाधर के ना होने पर तारकासुर ने आतंक मचाया ।
शिव शक्ति मिलन ही कारण बनेगा तारकासुर वध का,
इधर हिमालय मैना घर सती पार्वती बन जन्म लिया ।
देख घोर समाधि में शशिशेखर को विरह विष सती ने पिया ,
करने भंग तपस्या महादेव की कामदेव को मनाया ।
कामदेव ने पुष्पबाण से भोलेनाथ को जगाया ,
त्रिनेत्र खोल शिव शम्भू हुए अति क्रोधित ।
क्रोध की ज्वाला में भस्म हुए कामदेव ,
भस्म हुए कामदेव समाधि से उठ गए महादेव ।
सारा वृतांत कह सुनाया कुछ करो भोले भंडारी अब तो,
त्राहि त्राहि मच रही चारों और अंधकार गहराया ।
शिव को विवाह के लिए मनाया ,
शिव पार्वती पुत्र ही तारकासुर के विनाश का कारण होगा ।
सुन अनुनय विनय देवों की सृष्टि के कल्याण हेतु ,
हो गए राजी विवाह को शिव कैलाशी ।
सुन यह सुखद समाचार सारा जग हर्षाया ,
जय हो देवों के देव महादेव जय हो !!
