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एक चुटकी जिंदगी

एक चुटकी जिंदगी

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हामिद की कहानी

 

सुनसान रात है, काँपते हुये रेल की पटरी के पास खड़े हो कर हामिद पलों को माप रहा है। सर्दियो का मौसम है, हामिद के बदन पे सिर्फ एक पुराना कुर्ता लटक रहा है। ऐसा लग रहा है के बर्षो से ये कुर्ता उसकी बदन से नहीं उतरा है। साबुन की खुशबू से वो कभी नहीं नहाया है, किसी नाज़ुक हाथो के सुई धागे की मांग इसने कभी नहीं भरा है। हाँ एक यही कुर्ता तो है जो हामिद की आखरी संपत्ति रह गेयी है। 


  एक वो दिन था जब हामिद के पास भी एक घर हुआ करता था। हामिद के पास भी एक खूबसूरत पत्नी और एक गुलाब जैसी प्यारी बेटी हुआ करती थी। हामिद ने बड़े प्यार से उसका नाम रखा था कल्पना। हामिद तो ज्यादा पड़ा लिक्खा नहीं था पर उसने टी वी पे देखा था एक लड़की को, नाम था उसका कल्पना चावला। भारत मां की वो बेटी आसमान छूने जा रही थी। पड़ोसी रफीक चाचा के घरटी वी में उस लड़की को देख हामिद का दिल मचल उठा था, किसने कभी सोचा था भारत मां की एक बेटी कभी आसमान छूने चलेगी!! जिस दिन कल्पना की उड़ान मंगल ग्रह के भूमि को छूने वाला था उस दिन हामिद को इतनी खुशी हुई के ऐसा लग रहा था कि कल्पना चावला नहींं वह खुद ही मंगल की भूमि को छुआ है। पर समय बीतता चला गया हामिद टीवी पर अक्सर न्यूज़ देखा करता था कि कल्पना कब लौटेगी कब लौटेगी! पर कल्पना कभी नहींं लौट पाई। कल्पना की महाकाश जान पृथ्वी की मिट्टी छूने से पहले ही अचानक जल गई, अपने साथियों के साथ कल्पना हमेशा हमेशा के लिए बहुत बहुत दूर चली गई इस पृथ्वी से कल्पना कभी नहींं लौट पाए। पर हामिद ने उसी दिन सोच लिया था अगर कभी उसकी कोई बेटी होगी तो वह उसका नाम रखेगा कल्पना। कल्पना बेगम, हामिद चाहता था उसकी गुलाब जैसी प्यारी सी बेटी एक दिन कल्पना चावला की तरह आकाश छू सके। पर किस्मत को तो कुछ और ही मंजूर था। वही आग जिसने एकदिन कल्पना चावला, भारत माता की वीर संतान, को जला डाला था उसी आग ने ही हामिद का सब कुछ उजाड़ लिया। पता नहींं कैसे लगा था, पर रात के १०:00 बज रहे थे। हामिद अपने दोस्तों के साथ पत्तियां खेलने गया था, और उसके घर में उसकी पत्नी रामिज़ा कल्पना को सुला रही थी लोरी गाके। बेटी को सुलाते सुलाते पता नहींं कब रामिज़ा की भी आंख लग गई, और तभी घट गई वह दुर्घटना। पता नहींं कैसे पर सिर्फ कुछ ही पलों में हामिद का पूरा घर जल गया, खो गया हामिद का सब कुछ। हामिद को आज तक याद नहींं है कौन था वह, पर कोई एक हामिद को सुनाया यह खबर। हामिद तेजी से दौड़ता चला गया अपने घर के पास। उसका घर पूरा जल रहा था, ऐसा लग रहा था कि शमशान में कोई चिता जल रही है। हामिद पागलों की तरह उस चिता के भीतर घुस गया, उसके दोनों हाथ जल गए, सारे बदन पर आग की निर्दयी खंरोच से उसका बदन लथपथ हो गया; पर हामिद पागलों की तरह चीखते चीखते अपनी पत्नी और बेटी को बचाने के लिए किसी भी चीज की परवाह नहींं की। पर अफसोस हामीद उन्हें बचा नहींं पाया। हामिद जब तक वहां पहुंचा तब तक सब कुछ लगभग खत्म ही हो चुका थी इसीलिए हामिद खुद आग में जाकर भी कुछ ना कर पाया। उसकी आंखों के सामने देखते देखते उसका सबकुछ उजड़ गया--- उसका घर, उसके अपने, उसका संसार, उसके सपने--- सब कुछ।


उस दुर्घटना में हामीद का एक हाथ इतनी बुरी तरह से जल गया था कि उस हाथ को डॉक्टर ने काट के शरीर से अलग कर दिया। तब से हामीद अपाहिज बन गया, उसे किसी ने काम पर नहींं दिया। उस दुर्घटना के बाद ना तो हामिद के पास उसका अपना कोई संपत्ति रहा और ना उसे कोई काम मिला। हामिद इस दुनिया में बिल्कुल अकेला हो चुका था, उसका कुछ नहींं बचा, कुछ भी नहींं। लोग हामिद को देखते-देखते पागल कहने लगे। क्यया हामिद सच में पागल था! पता नहींं, पता नहींं जब कोई इंसान कुछ ही पलों में अपना सब कुछ खो कर कितना स्वस्थ रह सकता था!वो सड़क के पास बैठा रहता था अपने ही गम में खोया अकेला। समय बीतता चला गया। लोग कहते हैं वक्त सारे जख्मों पर मरहम लगा देता है। हामिद के साथ भी ऐसा ही हुआ। जैसे जैसे समय बीतता गया उसके गम तो नहींं मिटे, पर गम के जो घाव थे वह धीरे-धीरे कम होने लगे। हामिद महसूस करने लगा इस बड़ी सी दुनिया में वह बस अकेला है, उसके पास काम नहींं है, पर उसके पास एक पेट है जिस पेट की भूख को मिटाने के लिए उसे पैसों की जरूरत है। पर कोई उसे काम नहींं देना चाहता था क्योंकि वह अब अपाहिज बन चुका था। एक तरफ हामिद का दिल गमों के खून में लथपथ होकर तकरीबन मर चुका था और दूसरी तरफ था उसका पेट उसका ज़ीद्दी पेट यू उसे चैन से जीने नहींं दे रहा था। क्या करता हामिद! एकसर वह सोचता था वह क्यों जी रहा है! किस लिए जी रहा है! किसके लिए जी रहा है! कुछ भी तो नहींं है उसके पास इस दुनिया में... कोई इंसान अपने लिए नहींं जीता है, उसे एक सहारे की जरूरत होती है हमेशा; जो आज हामिद के पास नहींं था। क्या जरूरत है जिंदगी की जब इसका कोई मकसद ही नहींं!!


  आज एक सुनसान शाम है। तपते हुए रेल की पटरी के ऊपर खड़े होकर हामिद इस समय को माफ रहा है। वो रेलगाड़ी आने ही वाला है... बस कुछ ही पलों के इंतजार है, बस कुछ ही पल है उसके पास बाकी। आज सारे हिसाब चुकाने वाला है हामिद, सारे हिसाब...



रबि की कहानी


शाम के ७:३० बजने वाले हैं।हर रोज इसी वक्त रवि रेल लाइन के पास आता है। ७:३९ पर एक ट्रेन यहां से गुजरता है। रवि उसको हर रोज देखता है; हर रोज। तब रविबहुत छोटा था जब ट्रेन पहली बार चालू हुआ था, तब यह ट्रेन ठीक ७:२९ बजे इस लाइन से गुजरती था, और रवि उसे देखता था। तब वह ट्रेन बिल्कुल नई थी, एकदम चकाचक। रवि हर रोज सोचता था एक दिन ऐसा आएगा जब मां को लेकर रवि झोपड़ी के घर को छोड़ कर बहुत बहुत दूर चला जाएगा, बहुत दूर जहां मां के साथ रवि अपना सपनों का दुनिया बनायेगा। तब मां को काम करने की जरूरत नहींं पड़ेगी। रवि काम करेगा तब, और मां को रानी बनाकर रखेगा। इस छोटी सी चोल से वह दोनों बहुत दूर निकल जाएंगे अपनी जिंदगी की सारी गमों को पीछे छोड़कर एक सपनों की दुनिया बसाएंगे। 


  तब कितने साल का होगा रवि शायद एक या डेढ़ साल का जब पापा गुजर गए। रवि को आज भी हल्का सा याद आता है वह दिन एक इंसान जिसे वह बस तभी पापा कहना सीख रहा था वह इंसान का मुंह खून से लथपथ होके उनके चोल के सामने पड़ा था, और उनके पास बैठ कर अपना सर कूट-कूट के रो रही थी मां । तब कुछ समझ नहींं पाया रवि, बस इतना महसूस किया कि उस घटना के बाद उसकी पूरी जिंदगी बदल गई। पहले की तरह मां अब घर पर नहींं रहती थी। वह निकल जाती थी लोगों के घर में जाकर बर्तन मॉजती थी, कपड़े साफ करती थी। तभी से लेकर आज तक रवि बढ़ा चुका था। रवि अब सपने देखने लगा था। वह जो नया ट्रेन पहली बार इस लाइन से गुजरा था रवि को जैसे लगा था यह सिर्फ एक ट्रेन नहींं है, रवि की जिंदगी है, जबकि सपने है जो उसे इस चौल की जिंदगी से मुक्ति दिलाएगा। पर अफसोस इंसान सोचता कुछ और है और होता कुछ और। रवि जब बीमार पड़ता था मां हमेशा उसके सर के पास बैठी रहती थी। एक पल के लिए भी अपनी आंखें नहींं बंद करती थी। रवि जब तक ठीक ना हो जाता था मां काम पर नहींं जाते थे, मालिक लोग उन पर गुस्सा करते थे, उनका तनख्वाह काट देते थे। पर मां रवि को छोड़कर नहींं जाती थी। शायद मां को डर लगता था कि रवि भी कभी उसके पापा की तरह उन्हें छोड़ कर चला जायेगा। पर किस्मत भी बड़ी अजोब चीज़ है। जो मां रवि के लिए इतना चिंता करती थी, रवि के थोड़े से बुखार होने पर वह पागलों की तरह हो जाती थी। वही मां खुद बस तीनदिन की बुखार से गुज़र गयी रवि को अकेला छोड़कर। अकेला पड़ गया रवि। 


  तभी से रवि इधर उधर काम करके अपना गुजारा कर लेता है। ऐसे ही चलता है उसकी ज़िंदगी, उसके अकेले की जिंदगी। उसके सारे सपने जो थे, वो कहीं दूर मिट गए। माही नहींं रही तो रवि अब अकेला क्या करेगा उन सपनों का!!! आज भी वह ट्रेन गुजरती है, रवि देखता है उसकी बचपन की वह चमकता हुआ ट्रेन आज नहींं चमकता है, वह भी पुराना हो चुका होता है, उसकी शान खो चुकी होती है, ठीक जैसे खो गई है रवि की जिंदगी की शान--- उसकी जिंदगी के सपने।


  ऐसे ही बस चलती है रवि की जिंदगी। अच्छा नहींं लगता अपने लिए खाना पकाना, बस इधर-उधर से कभी खरीद के कभी जुगाड़ से खाना खा लिया करता है। कभी-कभी तो भूखे पेट ही सो जाता है, अच्छा नहींं लगता मां के बिना खाना खाना। अच्छा नहींं लगता अपने हाथ से खाना खाना। रवि बहुत मिस करता है कि वह खुशबू को, माके शरीर के वह मसालों की महक को, बहुत मिस करता है रवि मां की वह सख्त हाथ जो लोगों के घर में बर्तन मांजके कपड़े साफ करते करते रूखे सूखे हो गए थे, मां के हाथों की प्यार को बहुत मिस करता है रवि। 


  पर आज भी एक इंसान बाकी है जिसे रवि अपने दिल की बात बोल सकता है। बाकी लोग तो उस इंसान को पागल कहते हैं। रवि को पता नहींं वह इंसान पागल है या बिल्कुल ठीक है, बस रवि उनके पास जाता है और अपने दिल की सारी दर्दों को उनके सामने बोल देता है। रवि ने देखा है वह इंसान भी बिल्कुल अकेला है उसी की तरह। रवि ने सुना है किसी हादसे में उस इंसान की भी बीवी और बच्चे उनसे बिछड़ गई, और तभी से वह इंसान ऐसा है अकेले जीता है, अकेले बड़बड़ा ता है। शायद अपने दिलों पर बहुत सी गमों को छुपाए बैठा है, पर किसी से कह नहींं पाता है। रवि ने बहुत कोशिश की थी वह इंसान कुछ बोले, उसके गमों को बांटे ताकि उसका दिल हल्का हो सके। पर उस इंसान ने कभी कुछ नहींं वो!



फादर माइकेल की कहानी


कहते हैं खुशियां बांटने से बढ़ती है और दुख बांटने से दुख कम होता है, पर कभी यह सुना है के एक इंसान जो लोगों के दुख को खरीदना चाहता है!!! इस छोटे से शहर में ऐसा ही एक इंसान है फादर माइकल, इस शहर का एकलौता चर्च के फादर है। ६ फुट १ इंच हाइट, गोरा चेहरा, एक सफेद सी लंबी दाढ़ी, सफेद गाउन में एक क्रॉस गले पर लिए और हाथ में बाइबल--- वह इंसान शहर की गली गली में घूमता है। वह इंसान लोगों के दुखों को खरीदना है। सुना जाता है फादर माइकेल गोया में रहते थे। अपने माता पिता की मौत के बाद उन्होंने चर्च का काम ले लिया। बचपन से ही उन्होंने डिफाइनिटी के ऊपर पड़ा था; अब ईश्वर की साधना के सहारे ही अपनी जिंदगी गुजारने की सोच ली। लोग कहते हैं फादर माइकल का कोई परिवार नहींं है, पर फादर माइकल खुद कहते हैं यह पूरा देश उनका परिवार है, हर भारतवासी उनका परिवार है। इस छोटे से शहर में फादर माइकल को नहींं पहचानता है ऐसा कोई इंसान नहींं मिलेगा। हर दिन शाम की प्रेयर के बाद हो चुपके से निकल जाते हैं, इस शहर की गली गली में घूमते हैं, सब लोगों को देखते हैं, किसका क्या दर्द है, किसका क्या गम हैं। ऐसे ही है फादर माइकेल। 


  लेकिन उनकी जिंदगी को लेके शहर के लोगों को उत्सुकता की कमी नहींं है। वह फादर से उनकी जिंदगी को लेकर बहुत सारे सवाल करते हैं जब भी मौका मिलता है, और फादर हंसते हुये बस एक ही जवाब देते हैं--- "मैं ईश्वर का सेवक हूं, यही मेरा पहला और आखिरी परिचय है। मैं जो करता हूं वह मेरी महानता नहींं है, बस मेरा कर्तव्य है जो ईश्वर ने मुझे सौंपा है। बस इतना ही।" 


रेल की पटरी पे खड़े हामिद देख रहा है एक पीली लाइट तेजी से आगे बढ़ रहा है। हामिद एक गहरी सांस लेता है, और तैयार करता है अपने आप को, तैयार करता है अपनी इस नाम की जिंदगी की आखिरी वक्त को। परतभी पीछे से एक आवाज आती है, "अरे वह हामिद चाचा देखो क्या लाया हो मैं तुम्हारे लिए।"

हामिद चौंक जाता है, और चौंक के पीछे घूम के देखता है रवि खड़ा है वहां। रवि… अगर कल्पना आज जिंदा होती तो शायद रवि से थोड़ी छोटी होती। रवि का कोई खून का रिश्ता तो नहींं है उसके साथ पर पता नहींं क्यों यह लड़का हामिद को साथ चिपका रहता है। क्या सच में यह लड़का हामिद को प्यार करता है!!! वरना क्यों कोई पराया हर दिन अपने साथ साथ हामिद के लिए भी खाने का इंतजाम करता है। ये लड़का हामिद से बहुत सारे सवाल पूछता है, पर हमीद रवि को जवाब नहींं देता है। पता नहीं क्यूँ हामिद रवि को पसंद नहींं करता है, उसे लगता है जैसे कि यह लड़का उसे दया जाता रहा है। और हामिद को दया की जरूरत नहींं है। हामिद उस लड़के को पसंद नहीं करता है, पर फिर भी आज जब हामिद ने अपनी जिंदगी को खत्म करने के बारे में सोच ही लिया था तभी रवि उसे बुलाता है। कहता है, "अरे चाचा यह देखो क्या लाया हूं मैं।"

 खाना लाया है रवि, "अरे चाचा उस गली के पास में जो मंदिर है ना वहां पर एक बड़े साहब गरीबों के बीच खाना दे रहे थे। ईश्वर का प्रसाद। मैं वहीं से तुम्हारे और मेरे लिए खाना लाया हूं देखो। खिचड़ी जितना है हम दोनों के लिए काफी है। चाचा अच्छा लगता है ना जब मंदिर में कभी-कभी ऐसे बड़े बड़े लोग आकर दान देते हैं, कम से कम हम गरीबों का पेट तो भरता है।"  

मंदिर का प्रसाद!!! हामिद तो कभी मंदिर नहींं गया, और हामिद ने तो मस्जिद भी जाना छोड़ दिया है उस शाम के बाद!!! हामिद महसूस करता है उसे ज़ोर की भूख लगी है। वह खिचड़ी का एक निवाला अपने मुंह पर लेता है। यह इंसान भी अजीब चीज होती है, चाहे कितने भी गम हो जिंदगी में पर उसी जिंदगी को बचाने के लिए एक पुकार, बस एक पुकार ही काफी है।



तीन पन्ने की कहानी




  हर शाम की तरह फादर माइकल टहलने निकले हैं। उन्होंने देखा एक गली के पास एक मंदिर में कोई गरीबों में खिचड़ी बांट रहा है, सभी ईश्वर की कृपा है। फादर माइकल धीरे से उस मंदिर के पास से गुजरतेहैं और एक दूसरे गली के पास जाते हैं, उस गली से होकर कुछ देर अगर चले तो रेल की पटरी मिलती है। और रेल की पटरी के पास उन्होंने देखा दो इंसान जिनके पास अपना कुछ नहींं है, वह इंसान कैसे आनंद से इस मंदिर से लाए हुए खिचड़ी को बांट के खा रहेहैं । जो आखिरी निवाला बचा था उसको लेके लड़के ने कहा, "चाचा आप खा लो।" पर जो बुजुर्ग थे उन्होंने कहा, "नहींं बेटा तुम खाओ।"

 ऐसे दोनों में हंसी छिड जाती है। दोनों ने हाथ में आखरी निवाले का आधा लेके एक दूसरे को खिलाते हैं । फादर माइकल ये देख एक अजीब सी खुशी महसूस हुई। फादर इन दोनों इंसान को बहुत दिनों से नज़र में रख रहे थे। एक का नाम है रवि और दूसरे का नाम है हामिद। हां यह दोनों दो अलग धर्म के लोग हैं, पर इनका प्यारे अनमोल हैं । और शायद ऐसी चीज सिर्फ भारत मां की गोद में ही संभव है--- दो अलग धर्म के लोग इतने प्यार से एक दूसरे को खाना खिला रहे हैं, खून का रिश्ता ना होते हुए भी चाचा और भतीजे का प्यार जता रहे हैं। फादर माइकेल आज धीरे से उनके पास जाता है और वह दोनों चौक जाते हैं। उनमे से जो रवि था, वो कहता है, "आप! आप तो आदर माइकल हैं ना? आपको मैंने दूर से देखा है बहुत बार।"

" दूर से क्यों? पास भी तो आ सकते थे।" 

"नहींं, असल में मैं …"

"सुनो , काम क्या करते हो दोनो?"

"ज्यादा कुछ नहींं बस इधर-उधर जो मिलता है उससे गुजारा हो जाता है।"

"अगर मैं चर्च में काम करने के लिए कहुँ तो करोगे?" 

"पर वहाँ तो हमारे भगवान नहींं है!"

" और मेरे अल्लाह भी नहींं है!"

 उनकी बात सुन के फादर मुस्कुराते हैं, और कहते हैं, "पता है मुझे चर्च में जो है वह हामिद का अल्लाह नहींं है, रवि का भगवान नहींं है, वह मेरा गॉड है। पर अजीब बात है ना हामिद ने कभी अपने अल्लाह को नहींं देखा रवि ने कभी अपने भगवान को नहींं देखा और मैंने कभी नहींं देखा अपने गॉड को। पर मैं यह मानता हूं मैंने ईश्वर को देखा है।"

" ईश्वर को देखा है आपने!!! सच में?"

" हां मैंने ईश्वर को देखा है।"

" अच्छा मजाक कर लेते हो आप। ईशवर को कोई थोड़ी ना देख सकता है!!"

"पर मैंने देखा है सन, हां मैने तुम्हारे बीच ईश्वर को देखा है। ईश्वर को मैंने देखा है इंसानों के बीच में। ईश्वर कोई मूर्ति नहींं है, ईश्वर एक चेतना है; जिस चेतना ने तुम्हें और हामिद को एक दूसरे से जुड़ा है, जिस चेतना ने आज मुझे तुम लोगों के पास लाया है। मेरे लिए यही ईश्वर है, मेरे लिए ईश्वर हर भारतवासी के दिल में विराज करता है।"

"आपकी बात कुछ समझ नहीं आ रही है…"

" कभी स्वामी विवेकानंद का नाम सुना है तुम लोगों ने?"

 रवि और हामिद दोनों अपने सर हिलाते हैं, उन्होंने नहींं सुना। फादर माइकल मुस्कुराते हैं और वो कहते हैं, "स्वामी बिबेकनन्द भारत माता के एक महान संतान थे, जिन्होंने कहा था शिव के रूप में इंसान की पूजा करो, क्यूंकि इंसानो में ही भगबान बसते हैं । उन्होंने कहा था हर भारतवासी चाहे वो हिंदू हो मुसलमान हो क्रिश्चियन हो या फिर किसी और धर्म का हो, चाहे वह गरीब हो या धनी, हर इंसान, हर भारतवासी उनका भाई है, उनका खून है। मैं स्वामी विवेकानंद के धर्म से तो नहींं बिलॉन्ग करता हूं पर मैं उनके आदर्श को अपना आदर्श मानता हूं। स्वामी जी को मैंने कभी नहींं देखा है पर उन्हें मैं अपना गुरु मानता हूं। इसलिए हर शाम मैं शहर की गलियों से गुजरता हूं, जिनको मेरी जरूरत होती है उनकी मदद करने की कोशिश करता हूं; क्योंकि मैं मानता हूं हर भारतवासी मेरा भाई है, मेरा अपना है, मेरा परिवार है। इसीलिए रवि और हामिद चाहे चर्च में तुम लोग जिस भगवान को मानते हो वह भगवान ना हो पर अगर चार्ज के आंगन में तुम लोग फूल खिला सकते हो तो मैं दावे के साथ कह सकता हूं वो फूल सिर्फ मेरे गॉड के चरणों में नहींं तुम्हारे भगवान और तुम्हारे अल्लाह के चरणों मे भी समर्पित होंगे अगर तुम्हारे इरादे सच्चे हो। अगर तुम्हारा दिल साफ हो तो तुम कुछ भी काम करो अच्छे के लिए, तो तुम्हारी भगवान तुम्हारे पास मिल जाएंगे।"

फादर की बात शुनके थोड़े वक्त के लिए हामिद और रवि कुछ नहींं कह पाते हैं। उनके दिल में एक अजीब सी हलचल है, एक अजीब सी फीलिंग हो रही है। उन्हें उनके अंदर के अनुभूति का अर्थ तो सहिमे समझ नहींं आ रहा है, पर उनका दिल बस यही कह रहा है, "चलो... चलो साथ मिलकर चलते हैं… हम सब एक हैं, हमारे भगवान भी एक ही है।"


   सुनसान शाम है। फादर माइकेल फिरसे चलने लगे अपनी मकसद की तरफ । आज एक अजीब सी सुकून महसूस हो रहा है उनके दिल में । सब कहते हैं भारत मे लोग धर्म के लिए लड़ते हैं , जातपात के लिए लड़ते हैं । शायद सच है सबकुछ। पर इनके बावजूद भी इस देश में ही हामिद और रवि जैसे इंसान भीहैं । हमीद और रवि तो बस दो नाम है, दो प्रोतिनिधि है भारत माता की उन लाखोँ बच्चो के जो इस धर्म जातपात का बेड़ा पार एक प्यार के रिश्ते में बंध जाते हैं एक दूसरे के साथ:



"O heart of mine, awake in this holy place of pilgrimage
 In this land of India, on the shore of vast humanity”.


(-------- Rabindranath Tagore

Bharat-Tirtha "The Indian Pilgrimage")

 


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