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टिया

टिया

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नीलिमा किचन का काम निपटा कर जब कमरे में आई तो देखा कि टिया अभी भी वैसे ही बैठी है। नीलिमा को गुस्सा आ गया। यह लड़की दिन पर दिन बिगड़ रही है। कोई बात सुनती ही नहीं है।


"टिया तुम्हें समझ नहीं आता है। मैंने कहा था ना कि तैयार हो जाओ। मुझे ज़रूरी काम से बाहर जाना है। तुम्हारे लिए खाना बना कर रख दिया है। भूख लगे तो जब रजनी आंटी काम करने आएं तो उनको बता देना। नानी को परेशान मत करना। उनकी तबीयत ठीक नहीं है”


टिया वैसे ही बैठी रही। कुछ नाराज़गी से बोली।


"हम घर कब चलेंगे। मुझे पापा की याद आती है”


नीलिमा टिया के पास बैठ गई।


"अब हम वहाँ नहीं जाएंगे”


"तो क्या हम हमेंशा यहीं रहेंगे ?"


"नहीं... मम्मी नौकरी ढूंढ़ रही है। आज इंटरव्यू के लिए जाना है। नौकरी मिल जाएगी तो मम्मी नया घर किराए पर लेगी। हम वहीं रहेंगे”


"पर क्यों पापा ने तो हमारे लिए कितना सुंदर घर खरीदा है। मुझे बहुत अच्छा लगता है। हम वहाँ क्यों नहीं रह सकते हैं?”


टिया के इस तरह बहस करने से नीलिमा को गुस्सा आ गया। वह उसे डांटने लगी। तभी उसकी माँ कमरे में आ गईं।


"क्यों डांट रही हो इसे ?"


"ज़िद्दी हो गई है। कोई बात नहीं मानती। मुझे जाना है। कहा था कि नहा कर तैयार हो जाओ। सुनती ही नहीं है”


"तुम जाओ...मैं कर दूँगी इसे तैयार”


नीलिमा ने घड़ी देखी। देर हो रही थी।


"चुपचाप नहा कर तैयार हो जाना। नानी को परेशान मत करना”


नीलिमा जल्दी जल्दी तैयार हो कर निकल गई।


सात साल पहले नीलिमा का विवाह अजय से हुआ था। अजय एक मानी हुई कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर था। उनकी शादी अरेंज्ड थी। लेकिन उनके बीच कुछ ही महीनों में अच्छा तालमेल हो गया था। अक्सर शाम दोनों ही कहीं बाहर घूमने निकल जाते थे। घर पर भी रहते तो एक दूसरे के साथ ही वक्त बिताते थे।


फिर उनके जीवन में उनकी बेटी टिया का आना हुआ। अब दोनों पर ही माता पिता की ज़िम्मेदारियां आ गई थीं।


टिया के आने के बाद अजय को लगने लगा था कि यदि वह उसे अच्छा भविष्य देना चाहता है तो अपनी आमदनी बढ़ानी पड़ेगी। बहुत दिनों से वह और उसका एक साथी विप्लव योजना बना रहे थे कि दोनों मिलकर अपनी सॉफ्टवेयर फर्म खोलेंगे। अजय ने सोचा कि अपना बिज़नेस शुरू करने का यही सही मौका है। उसने विप्लव से बात की। वह भी तैयार हो गया। दोनों का बिज़नेस शुरू हो गया।


शुरुआत में बिज़नेस जमाने के लिए अजय को बहुत मेहनत करनी पड़ी। वह अक्सर ही देर से घर लौटता था। शुरू शुरू में तो नीलिमा ने धैर्य रखा लेकिन फिर रोज़ ही शिकायत करने लगी कि वह उसे और टिया को समय नहीं देता है। अजय ने उसे समझाया कि बिज़नेस को सही तरह से पटरी पर लाने के लिए कुछ दिन उसे अधिक मेहनत करनी पड़ेगी। बिज़नेस अगर सही तरह से चल निकलेगा तो यह उनके आने वाले कल के लिए अच्छा होगा। इसलिए वह कुछ दिन निभा ले।


अजय और विप्लव की मदद से व्यापार चल निकला। अच्छी कमाई होने लगी। उनके पास बहुत अधिक काम आता था। अब पहले से भी अधिक मेहनत करनी पड़ती थी। इसी बीच अजय ने अपना घर खरीद लिया। अब लोन की किश्तें भी देनी पड़ रही थीं। इसलिए अजय अधिक से अधिक काम ले रहा था।


अजय का मानना था कि अभी समय है कि वह मेहनत कर पैसे बना ले। ताकि आने वाला समय सुख से बीत सके।


अजय भले ही नीलिमा को पहले की तरह समय ना दे पाता हो पर वह उसकी हर छोटी बड़ी बात का ख्याल रखता था। लेकिन नीलिमा चाहती थी कि अजय पहले की ही तरह उसे घुमाने ले जाया करे। शाम को जल्दी घर लौट कर उससे बातें किया करे। पर वैसा हो नहीं रहा था।


अब आए दिन नीलिमा और अजय के बीच इस बात को लेकर झगड़े होते थे। नीलिमा कहती थी कि वह सारा दिन घर में पड़ी पड़ी बोर हो जाती है। ऐसे में यदि वह उससे थोड़ा सा समय मांगती है तो क्या गलत करती है। अजय का तर्क था कि अब तो टिया भी बड़ी हो गई है। नीलिमा चाहे तो कोई काम शुरू कर सकती है। इससे उसका मन लगा रहेगा। पर नीलिमा राज़ी नहीं थी।


एक दिन टिया को तेज़ बुखार था। नीलिमा बहुत परेशान थी। उसने अजय को फोन कर बताया कि घर आ जाओ। टिया को डॉक्टर के पास ले जाना है। अजय ने कहा कि वह बस कुछ ही देर में पहुँच रहा है। नीलिमा राह देखने लगी। किंतु अजय नहीं आया तो वह खुद ही टिया को डॉक्टर के पास ले गई।


टिया को दिखा कर जब वह घर पहुँची तो अजय घर के बाहर खड़ा था।


"कुछ देर रुक जाती। मैं आ ही रहा था”


"कितना इंतज़ार करती। टिया बुखार से जल रही थी”


"मैं जैसे ही बाहर आया तो कार का पिछला पहिया पंचर था। स्टेपनी बदलने में समय लग गया”


नीलिमा ने कोई जवाब नहीं दिया। वह टिया को लेकर अंदर चली गई।


उस दिन के बाद से नीलिमा ने अजय से बात करना छोड़ दिया। अजय ने कई बार उसे अपनी मजबूरी बताई पर वह कुछ मानने को तैयार नहीं थी। उसने गांठ बांध ली थी कि अजय अब उसके और टिया के प्रति उदासीन हो गया है। नीलिमा मन ही मन खुद को तैयार कर रही थी। उसने अजय का घर छोड़ने का निश्चय कर लिया। अजय के समझाने का उस पर कोई असर नहीं हुआ।


नीलिमा घर छोड़ कर अपनी माँ के पास आ गई। वह अपने लिए एक नौकरी ढूंढ़ रही थी। इसी सिलसिले में आज वह बाहर गई थी।


एक ही शहर में होते हुए भी अपने अपने अहम के कारण नीलिमा और अजय एक दूसरे से चार महीनों से नहीं मिले थे। टिया अक्सर पापा के पास जाने की ज़िद करती थी। उसे अपने पापा की याद आती थी। इसलिए दिन पर दिन ज़िद्दी होती जा रही थी।


काम वाली के जाने के बाद टिया की नानी उसे कमरे में आराम करने के लिए ले गईं। कुछ ही देर में वह सो गईं। टिया उठ कर बाहर आई। कुर्सी लगा कर मेंन डोर खोला। चुपचाप घर से निकल गई। आज उसने सोंचा था कि पापा के पास जाएगी। 


थोड़ी देर में जब उसकी नानी जागीं तो उसे ना देख कर वह घबरा गईं। उन्होंने उसे आस पड़ोस में खोजा पर वह नहीं मिली। उन्होंने फौरन नीलिमा को फोन किया।


नीलिमा को याद आया कि कल रात टिया गुस्से में कह रही थी कि अगर तुम पापा के पास नहीं ले जाओगी तो मैं खुद उनके पास चली जाऊँगी। यह याद आते ही उसने अजय को फोन कर सब बताया। अजय ऑफिस में था। वह फौरन अपने घर गया कि कहीं सचमुच टिया वहाँ ना पहुँच गई हो। पर वह वहाँ नहीं थी।


पुलिस स्टेशन में टिया के गायब होने की रिपोर्ट लिखाई गई। पुलिस टिया को हर जगह खोजने लगी।


नीलिमा का रो रो कर बुरा हाल था। अजय उसे सांत्वना दे रहा था। दोनों ही ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे कि टिया सही सलामत मिल जाए। नीलिमा इस सब के लिए खुद को दोष दे रही थी। उसका कहना था कि यदि उसने टिया के मन को समझा होता तो ऐसा ना होता। अजय सब बातों के लिए खुद को ज़िम्मेदार मान रहा था। नीलिमा की माँ ने दोनों को समझाया कि टिया के मिलने पर दोनों अपना झगड़ा भुला कर एक हो जाएं।


कुछ देर बाद खबर आई कि टिया मिल गई। वह एक पार्क में बैठी रो रही थी। एक भले आदमी की उस पर नज़र पड़ी। वह उसे पास के पुलिस स्टेशन में पहुँचा आया।


टिया के मिलने पर अजय और नीलिमा दोनों ने भगवान को धन्यवाद दिया। अपने झगड़े को भूल कर दोनों एक हो गए।


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