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Arunima Thakur

Tragedy

5  

Arunima Thakur

Tragedy

सिहरन...

सिहरन...

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540


 यात्राएं तो जीवन में कई बार की है । पर सबसे भयानक यात्रा जहाँ मैंने स्वंय जीवन मृत्यु के बीच की पतली सी रेखा को महसूस किया, उसके बारे में अपनी यादें साझा करती हूँ। मेरे पति साँईं बाबा को बहुत मानते हैं और मैं शंकर भगवान को, तो अक्सर हम दोनों त्रबंकेश्वर होते हुए शिर्डी निकल जाते थे दर्शन करने के लिए । मेरी जिठानी की दोनों लड़कियाँ अपने काका की बड़ी लाडली है तो वह भी हमेशा हमारे साथ होती थी । बात सन 1999 की है। ऐसे ही एक दिन हम सबका त्रंबकेश्वर जाने का प्रोग्राम बना । नियत समय पर हम सुबह पाँच बजे निकल पड़े I हमारे यहाँ से नाशिक कुछ पाँच घंटे की दूरी पर है और शिर्डी छहः साढ़े छह: घंटे की दूरी पर। रास्ता पूरा घाट वाला (पर्वतीय) है । बारिश में यही रास्ता बहुत ही मनोरम दिखता है। इस रास्ते पर तब ज्यादा यातायात नहीं रहता था। सुबह पाँच बजे निकल कर हम छह सवा छहः बजे तक जव्हार पहुँच गए थे । वहाँ हमने उगते हुए सूरज के दर्शन किए। बहुत ही मनोरम दृश्य था । राजा का महल और काजू के बाग देखें । वही जव्हार में इनके दोस्त का होटल है । वहीं रुक कर चाय नाश्ता किया गया।


लगभग आठ बज रहे थे, जब हमने त्रंबकेश्वर के लिए चलना शुरू किया । बच्चे तो नाश्ता करके सो गए । हम रास्ते का आनंद उठाते हुए जा रहे थे । अगस्त का महीना था। जगह-जगह पर झरने गिर रहे थे जो रास्ते को बहुत मनोरम बना रहे थे। ऊंचे ऊंचे पहाड़, गहरी गहरी घाटी, बीच में बहती बरसाती नदियाँ खूब हरियाली, नहा धोकर प्रकृति अपने पूरे श्रृंगार पर थी। तब हमारे पास मारुति वैन थी। पता नहीं उस समय कारों में ए.सी. नहीं लगते थे या हम गरीब थे और हमारी कार में ए.सी. नहीं था । हम खिड़की खोल कर आने वाली ठंडी हवा का आनंद ले रहे थे । तभी हल्की बारिश शुरू हो गई । अब तो मौसम और भी सुहाना हो गया था । हम रास्ते का आनंद उठाते हुए चले जा रहे थे ।

दस बजे के आसपास त्रंबकेश्वर मंदिर पहुँचे । भगवान की कृपा से जरा भी भीड़ नहीं थी। लाइन में लगकर भगवान के खूब अच्छे से दर्शन किए, पूजा अर्चना की । हम वही मंदिर प्रांगण में बैठे थे । बच्चे इधर उधर दौड़ भाग कर खेल रहे थे । बाहर निकल कर बच्चों ने गाय को घास खिलायी। हम फिर चल पड़े। अब जो कि बच्चे साथ रहते थे तो हमारी कार में हमेशा एक छोटा सा गद्दा और तकिया वगैरह पड़े रहते थे । इस बार तो बच्चों को लिटा कर मैं भी सो गई । बच्चे शायद जग रहे थे और काका के साथ अंताक्षरी खेल रहे थे। वैसे भी त्रंबकेश्वर के बाद घाट इलाका कम हो जाता है । दो बजते बजते हम शिर्डी पहुँच गए । बच्चों को भूख लगी थी पर यह तय हुआ पहले दर्शन कर लेते हैं फिर कुछ खाएंगे । बच्चे मान गए । शिर्डी में भी ज्यादा भीड़ नहीं थी । आराम से दर्शन किए, लड्डू का प्रसाद लिया। बच्चों ने कुछ सामान खरीदें। फिर एक होटल में आकर अच्छे से खाया पिया ।


अब तक तीन बज चुके थे । सोचा सब कुछ इतना जल्दी हो गया है I अभी निकलेंगे तो आठ बजे तक घर पहुँच जाएंगे I तो चलो यहाँ तक आए हैं तो शनि शिंगणापुर के दर्शन भी कर लेते हैं । शनि शिंगणापुर वहाँ से कुछ दो घंटे की दूरी पर है। हम वहाँ से शनि शिंगणापुर के लिए निकल गए । वहाँ इन्होंने अच्छे से पूजा की। हम सब ने दर्शन किए फिर एक दुकान पर जाकर चाय पी । बच्चों को कुछ नाश्ता वगैरह कराया । वो क्या है ना कि जितना भी खाया पिया हो, पेट भरा हो, भूख अपने समय पर लग ही जाती है । यह बच्चों के दूध का समय था।


साढ़े पाँच बजे तक हम दर्शन करके वहाँ से निकल पड़े घर के लिए । रास्ते में हल्की हल्की बारिश हो रही थी । शनि शिंगणापुर से दहानू कुछ छह साढ़े छह घंटे लगता है। हमने सोचा कि हम लेट से लेट बारह बजे तक दहानु पहुँच जाएंगे । रात का खाना खाने के लिए बच्चों ने बोला कि खाना तो हम चारोटी चलकर ही खाएंगे। क्योंकि बीच में घाट इलाका है । मैं और बच्चे तो पीछे जाकर पसर गये। बच्चे और मैं भी बहुत थक गए थे। ड्राइवर बहुत अच्छा था । नौ बजे तक हम त्रंबक पहुंच गए थे । हमने बच्चों से फिर से पूछा कुछ खाओगे ? क्योंकि अभी हम को तीन घंटे और लगेंगे । सबने ना बोला, क्योंकि घाट इलाके में खाया पिया सब निकल जाता है । फिर भी यह जाकर सब के लिए आइसक्रीम के कोन ले आए। अब हमारी नींद पूरी हो चुकी थी । हम सब उठकर खिड़की से बाहर देख रहे थे, आइसक्रीम खाते हुए, रास्ते का आनंद ले रहे थे ।


नासिक से त्रंबकेश्वर बिल्कुल भी बारिश नहीं थी, पर अभी बादल बहुत जोरों से गड़गड़ा रहे थे और बिजली भी चमक रही थी । आकाश के इस कोने से उस कोने तक लपलपाती बिजली रात में भी दिन का आभास करा दे रही थी । फिर से हल्की हल्की बारिश शुरू हो गई थी । ड्राइवर बोला, "यह बारिश ठीक नहीं है । बंद हो जाए तो ठीक, नहीं तो रास्ते में परेशानी होगी" । खैर ड्राइवर अच्छा था और रास्ते में यातायात भी बिल्कुल नहीं था । इसलिए वह गाड़ी आराम से चला ले पा रहा था । बादलों की गर्जना, बिजली की चमक, आसपास घुप्प अंधेरा, ऊंचे ऊंचे पहाड़, दूर घाटी में टिमटिमाती रोशनी, जबरदस्त कटाव वाले मोड़, डराने के लिए काफी थे । हर बार हम सात साढ़े सात तक सूरज के धुंधलके की रोशनी में यह इलाका पार कर लेते थे। पर इस बार हम जैसे तैसे जव्हार तक पहुँचे । बारिश हल्की हल्की हो रही थी । पति ने पूछा कि क्या यहीं पर रात को रुक जाया जाए, कल सुबह निकल जाएंगे । पर ड्राइवर का दूसरे दिन का किराया था तो उसने बोला कि अभी तो बारिश बंद है । कुछ घंटे की बात है, पहुँचा दूंगा । मेरे पति का मन तो नहीं था पर ड्राइवर की बात मानकर हम निकल पड़े । मुश्किल से बीस मिनट चले होंगे कि जो मूसलाधार बारिश शुरू हुई और आगे पूरा घाट का इलाका। अपनी जिंदगी में मैंने मूसलाधार बारिश तो बहुत देखी थी । पर जब आप कार में हो और आपको वाईपर चलाने पर भी बाहर का कुछ नहीं दिखाई दे रहा हो ऐसी मूसलाधार बारिश । बाहर सिर्फ पानी ही पानी और घना काला अंधेरा और कुछ नहीं दिख रहा था।


पति ने ड्राइवर से बात करके गाड़ी को एक किनारे रोकने के लिए बोला । क्योंकि एक तरफ खाई थी । हम चलाने का रिस्क नहीं ले सकते थे । आगे पीछे कोई भी गाड़ी भी नहीं थी कि हम उस की रोशनी में रास्ता देख पाते । एक तरफ पहाड़ से ऊपर से पानी बहुत वेग से बहकर आ रहा था। ड्राइवर ने बोला, "रुकना भी खतरनाक है । गाड़ी बह सकती है"।


हमारी तो सिटी पिट्टी गुम, बच्चों ने तो रोना शुरू कर दिया । हमें बुरा लग रहा था कि हमें कुछ हुआ तो हुआ, पर हम बच्चों को भी साथ ले आए हैं । अगर बच्चों को कुछ हो गया तो ? बच्चों को बहला-फुसलाकर, लिटाया कि कुछ नहीं होगा, सो जाओ । पर ऐसे में तो नींद भी नहीं आती है। आगे कुआं पीछे खाई वाली हालत थी । पहाड़ से बहता हुआ पानी गाड़ी को खड़ा नहीं होने दे रहा था और मूसलाधार बारिश में गाड़ी चला नहीं सकते थे ।


हमारी गाड़ी में ए.सी. नहीं था तो खिड़की बंद करके तो सांस भी लेते नहीं बन रही थी और खोलते तो पानी अंदर आ रहा था । तभी हमारे बगल से एक गाड़ी गुजरी बहुत ही तेजी से। ड्राइवर बोला, "पागल है क्या ? मरेगा"।


मैंने कहा, "ऐसा मत बोलो" ।


मेरे पति के कहने पर हम उसके पीछे उसकी रोशनी में चलने लगे । पर कुछ ही मिनट बाद अगले किसी मोड़ पर वह गाड़ी ओझल हो गयी। अचानक उस मूसलाधार बारिश में भी मुझे जोरदार रोशनी की चमक दिखाई दी । मैंने पूछा यह क्या थी ? क्या बिजली गिरी कहीं पर ? पति ने कंधे उचका दिए, क्या पता ! ड्राइवर और मेरे पति मराठी भाषा में कुछ बातें कर रहे थे। मराठी भाषा मुझे नहीं आती थी। हम धीरे-धीरे भगवान का नाम जपते हुए जिस तरफ पहाड़ थे, उल्टी तरफ से धीरे-धीरे गाड़ी चलाते हुए नीचे उतरे । वह बीस मिनट का रास्ता सदियों बराबर हो गया था । चारोटी पर पहुंचकर जान में जान आई । एक बज रहे थे । हाईवे होने के कारण होटल खुले थे । डर के कारण भूख तो नहीं थी पर ड्राइवर को तो खाना खिलाना ही था। हम सभी ने भी थोड़ा थोड़ा खाना खाया ।


खाना खाकर होटल से निकले । जब गाड़ी स्टार्ट कर रहे थे तो गाड़ी स्टार्ट ही नहीं हो रही थी। पर दो बार की कोशिश में गाड़ी स्टार्ट हो गयी। अब दहानु का रास्ता सिर्फ एक पौना घंटे का था । हमारे निकलने के कुछ पन्द्रह - बीस मिनट बाद, बिल्कुल बीचो बीच में ना तो इस तरफ कोई बस्ती ना तो उस तरफ, हमारी गाड़ी बंद हो गई । यह इलाका बहुत ही कुख्यात् था कि यहाँ आदिवासी लोग छुप कर रहते हैं। सड़क पर पत्थर रख देते हैं और गाड़ियों को लूट लेते हैं । अब हमारी हिम्मत नहीं हो रही थी कि हम बाहर निकलकर इंजन चेक करें कि क्या परेशानी है ? डर बड़ी चीज है । मेरे पति बाहर निकलते पर उन्हें कार के बारे में कोई भी जानकारी नहीं थी । ड्राइवर पहले से ही बहुत डरा हुआ था । शायद इससे पहले एक बार वह फँस चुका था । कार में तो हमारे पास एक डंडा तक नहीं था ।



ड्राइवर बार-बार गाड़ी स्टार्ट करने की कोशिश करता पर इंजन घर घरा कर बंद हो जाता । ड्राइवर ने बोला शायद जोरदार बारिश के कारण पानी चला गया है । मेरे पति बाहर निकले उन्होंने बोला मैं धक्का लगाता हूँ शायद स्टार्ट हो जाए । कुछ नहीं हुआ । कार पूरी बंद थी, दम घुट रहा था पर खिड़की खोल नही सकते थे। सड़क पूरी सुनसान थी, किसी से मदद भी नहीं माँग सकते थे । अब रात के ढ़ाई बज रहे थे । आजकल का समय होता तो फटाक से फोन लगा कर के मदद मिल जाती। तब मोबाइल फोन तो क्या आसपास कोई पीसीओ भी नहीं था। आखिर में पति ने जाकर ड्राइवर को बोला, "मैं चारोटी तक जाकर मदद ले कर आता हूँ। भाभी और बच्चों का ध्यान रखना"। ड्राइवर भी बहुत डरा हुआ था, वह बोला नहीं आप मत जाओ। मैं जाता हूँ, भाभी और बच्चों के पास आप रहो ।

इतना कहकर ड्राइवर वहाँ से पैदल चलते ही चारोटी के लिए निकल गया । चारोटी से निकले वैसे तो हमें अभी पन्द्रह बीस मिनट ही हुए थे, पर पैदल जाने के लिए रास्ता बहुत लंबा था । मैं मेरे पति, बच्चे एक दूसरे से चिपक कर बैठे थे। हर आहट पर डर जाते कि कहीं कोई लूटने ना आ जाए । वैसे तो इस सड़क पर रोज ट्रक चलते थे पर उस दिन पता नहीं क्यों कोई भी हलचल नहीं थी ।


कुछ पौना घंटा बाद ड्राइवर होटल मालिक की कार और कुछ लोगों को लेकर आया । उसने कार को दूसरी वाली कार से बांध दिया। कार बनाने का रिस्क ड्राइवर ने नहीं लिया । क्या पता रास्ते में फिर से खराब हो जाती तो ? उस कार में बांधकर हमारी कार खींच कर घर तक पहुंचाई गयी । 


अब तक सुबह के चार बज चुके थे । घर में भी सभी जाग रहे थे, परेशान थे, क्योंकि हम हमेशा नौ दस बजे तक आ जाते थे पर इस बार तो हम पीसीओ से भी उन्हें फोन नहीं कर पाए थे, जो कि बोल कर गए थे कि थोड़ा लेट होगा पर ग्यारह बजे की जगह चार बजे !


जीवन की वह यात्रा अति भयानक थी पर हम सकुशल घर पहुँच गए थे । दूसरे दिन के अखबार में खबर थी जव्हार के पास एक कार दुर्घटना, मेरे तो रोंगटे खड़े हो गए और यह हादसा तो हमारी आँखों के सामने घटा था । 


मैंने पति को बोला, "हमें रुकना चाहिए था ना मदद के लिए" । 


मेरे पति बोले, "हाँ बिल्कुल और तुम क्या कर लेती ? उस मूसलाधार बारिश में घाटी में कूदकर उन लोगों को जलती कार से निकाल लाती" ?


 मैं कुछ कह नहीं पाई पर मुझे आज भी अफसोस होता है उनके लिए, निसंदेह मौत उस रात हमारे पास से गुजरी थी। 


बहुत सारी खूबसूरत यात्राओं की स्मृतियों के बीच इस यात्रा की स्मृति आज भी दिल और दिमाग मे सिहरन भर देती है।


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