रानी दुर्गावती
रानी दुर्गावती
वीरांगना रानी दुर्गावती (१५२४-१५६४)
भारत के इतिहास में गोंडवाना भू-भाग के आदिवासी वीरों, वीरांगनाओं और उनकी वीरगाथाओं का उल्लेख इतिहास में दुर्लभ है, विदेशी इतिहासकारों द्वारा सहेजी गई गोंडवाना के मानव समाज, संस्कृति, बोली-भाषा की जानकारी से हम उनकी वीरगाथाओं को जान पाए।
गोंडवाना की भूमि वीर तथा आदर्श नारियों की भूमि रही है।ऐसी ही एक महान नारी जिसने मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे वह थीं, रानी दुर्गावती।
रानी दुर्गावती का जन्म वर्तमान मध्यप्रदेश में हुआ था, जिसे कभी गोंडवाना कहते थे। गोंडवाना के महोबा राज्य के चंदेलवंशीय राजा कीरत राय ( कीर्तिसिंह चंदेल )के घर सन १५२४ में रानी दुर्गावती का जन्म हुआ। दुर्गा अष्टमी के दिन जन्म होने के कारण इनका नाम दुर्गावती रखा गया। रानी दुर्गावती अपने माता-पिता की इकलौती सन्तान थीं।इनके पिता राजा शालीवाहन ने इनका लालन-पालन एक राजकुमार की तरह किया था।बचपन से ही इन्हें अश्त्र-शस्त्र की शिक्षा दी गई थी।
उनका विवाह राजा संग्राम शाह के पुत्र दलपतशाह से 1542 में हुआ था।विवाह के चार वर्ष बाद ही राजा दलपतशाह का निधन हो गया, तब उनकी गोद में तीन वर्षीय पुत्र, वीरनारायण था, अतः रानी को गढ़मंडला का शासन संभालना पड़ा।
राजा संग्राम शाह का राज्य बहुत औविशाल था, जिसमें 52 गढ़ थे और उनका राज्य वर्तमान मंडला, जबलपुर , नरसिंहपुर , होशंगाबाद, भोपाल, सागर, दमोह और वर्तमान छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्सों तक फैला था।1545 को शेरशाह सूरी ने कालिंजर पर हमला कर दिया और जीतने में सफल भी हो गया परन्तु अचानक हुए बारूद के विस्फोट से वह मारा गया।शेर शाह सूरी के कालिंजर के दुर्ग में मरने के बाद मालवा पर सुजात खान ने अधिकार कर लिया।गोंडवाना राज्य की सीमा मालवा को छूती थीं।मालवा के शासक बाजबहादुर ने रानी को कमज़ोर महिला समझ गोंडवाना पर 1556 को आक्रमण कर दिया।रानी की सेना बहुत बहादुरी से लड़ी। बाजबहादुर को युद्ध में हार का सामना करना पड़ा।इस विजय के बाद रानी की प्रसिद्धी सब ओर फैला गई।
अकबर गोंडवाना साम्राज्य को हड़पने की योजना बनाने लगा। उसने रानी दुर्गावती को सन्देश भिजवाया कि वह अपने प्रिय सफ़ेद हांथी सरमन और सूबेदार आधार सिंह को मुग़ल दरबार भेज दे।रानी ने अकबर की बात मानने से इंकार कर दिया और युद्ध की तैयारी शुरू कर दी।इस पर आगबबूला हो अकबर ने अपने सेनापति आसफ खान को गोंडवाना पर आक्रमण करने का आदेश दे दिया। आसफ खान विशाल सेना लेकर रानी पर आक्रमण करने बढ़ा।रानी दुर्गावती जानती थीं कि उनकी सेना अकबर की सेना विशाल थी और आधुनिक अस्त्र-शत्र से प्रशिक्षित थी, जबकि रानी दुर्गावती की सेना पुराने परंपरागत हथियार से तैयार बहुत छोटी थी। उन्होंने अपनी सेना को नरई नाला घाटी की तरफ कूच करने का आदेश दिया।यह स्थान एक ओर से नर्मदा नदी की विशाल जलधारा से और दूसरी तरफ गौर नदी से घिरा था। नरई के चारों तरफ घने जंगलों से घिरी पहाड़ियाँ थीं। मुग़ल सेना के लिये यह क्षेत्र युद्ध हेतु कठिन था। जैसे ही मुग़ल सेना ने घाटी में प्रवेश किया रानी के सैनिकों ने उन पर धावा बोल दिया। लड़ाई में रानी की सेना के फौजदार अर्जुन सिंह मारे गये अब रानी ने स्वयं ही पुरुष वेश धारण कर युद्ध का नेतृत्व किया। दोनों तरफ से सेनाओं को काफी नुकसान हुआ। शाम होते- होते रानी की सेना ने मुग़ल सेना को घाटी से खदेड़ दिया और इस दिन की लड़ाई में रानी दुर्गावती की विजय हुई।
अपनी हार से तिलमिलाई मुग़ल सेना के सेनापति आसफ खान ने दूसरे दिन विशाल सेना एकत्र की और बड़ी-बड़ी तोपों के साथ दुबारा रानी पर हमला बोल दिया। रानी दुर्गावती अपने प्रिय सफ़ेद हाथी सरमन पर सवार होकर युद्ध मैदान में उतरीं। रानी के साथ राजकुमार वीरनारायण भी थे। रानी की सेना ने कई बार मुग़ल सेना को पीछे धकेला। कुंवर वीरनारायण के घायल हो जाने से रानी ने उन्हें युद्ध से बाहर सुरक्षित जगह भिजवा दिया। युद्ध के दौरान एक तीर रानी दुर्गावती के कान के पास लगा और दूसरा तीर उनकी गर्दन में लगा। तीर लगने से रानी कुछ समय के लिये अचेत हो गईं। जब तक पुनः चेतन होतीं, मुग़ल सेना हावी हो चुकी थी!रानी के सेनापतियों ने उन्हें युद्ध का मैदान छोड़कर सुरक्षित स्थान पर जाने की सलाह दी परन्तु रानी ने इस सलाह को दरकिनार कर दिया।अपने आप को चारों तरफ से घिरता देख रानी ने अपने मान-सम्मान की रक्षा हेतु स्वयं तलवार घोंपकर अपना बलिदान दे दिया। इसी के साथ इतिहास में यह वीरांगना रानी सदा-सदा के लिये अमर हो गईं। यह 24 जून 1564 का दिन था।
रानी दुर्गावती ने अपने कार्यकाल में अनेक मंदिर, मठ, कुएं, बावड़ी तथा धर्मशालाएं बनवाईं। वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केन्द्र था। उन्होंने अपनी दासी के नाम पर चेरीताल, अपने नाम पर रानीताल तथा अपने विश्वस्त दीवान आधारसिंह के नाम पर आधारताल बनवाया।
महारानी दुर्गावती के (424 वें)बलिदान दिवस 24 जून, 1988 को भारत सरकार ने एक डाक टिकट जारी किया था।जबलपुर संग्रहालय का नाम रानी दुर्गावती संग्रहालय किया गया है। शासकीय कॉलेज, पुस्तकालय, पार्क, अभ्यारण आदि के नाम रानी दुर्गावती किए गए हैं। गोंडवाना में अनेक स्थानों पर रानी दुर्गावती की प्रतिमाएं बनाई गई हैं।
वह भारतीय इतिहास की सर्वाधिक प्रसिद्ध रानियों में गिनी जाती हैं।उन्होंने 16 वर्ष तक जिस कुशलता से राज संभाला, उसकी प्रशस्ति इतिहासकारों ने की है। आईना-ए-अकबरी में अबुल फ़ज़ल ने लिखा है- "दुर्गावती के शासनकाल में गोंडवाना इतना सुव्यवस्थित और समृद्ध था कि प्रजा लगान की अदायगी स्वर्णमुद्राओं और हाथियों से करती थी।"
