झूठी इज़्जत
झूठी इज़्जत
इस बार दुर्गा माँ की मूर्ति एक दम बढ़िया से बनाना..जानते हो ना हर साल की तरह इस साल भी हम ठाकुर मंदिर में दुर्गा माँ की नई प्रतिमा स्थापित करेंगे और पूजा करेंगे..इसीलिए कोई कमी नहीं रहनी चाहिए आखिरकार हम दुर्गा माँ के भक्त हैं उन्हें खुश रखेंगे तभी तो उनकी कृपा हमारे ऊपर बनी रहेगी...फोन पर बात करते हुए ठाकुर जी ने माँ की प्रतिमा बनाने वाले रचनाकार को गौरान्वित स्वर में बोला।
जैसे ही फोन रखने के बाद ठाकुर जी की नजर बाथरूम के पास सीधी खड़ी झाड़ू पर पड़ी उनका गुस्सा सातवें आसमान पर पुहंच गया वो क्रोधित होकर अपनी पत्नी को बोलने “अरे,कहां मर गयी,इधर आइयो तो ज़रा..तेरे को एक नही हज़ारों बार समझाया है कि झाड़ू सीधी नही खड़ी करते...लक्ष्मी माँ नाराज़ हो जाती है, घर मे क्लेश रहता है लेकिन तुझे यह बात आज तक समझ ना आई न आएगी लगता है कल की मार भूल गयी तू”।
ठाकुर जी की बात सुनकर जल्दी से अपना सारा काम छोड़ कर उनकी बीवी डरी सहमी हुई आयी और झाड़ू को सही रखकर चली गई लेकिन रोज़ खुद की बेइज्जती व मारपीट को बर्दाश्त करने के बाद आज भी मन में एक सवाल था जिसका जवाब पाना उनकी पत्नी के लिए मुश्किल था कि” क्या फायदा ऐसे अंधविश्वासों का जब तुम अपने घर की लक्ष्मी को इज़्जत न दे सके.. मिट्टी की मूरत को दूर्गा माँ समझ कर पूजने वाला यह पुरुषप्रधान समाज ना जाने कब औरत को अपमानित करना छोड़ेगा..ऐसे ही कुछ सवालों को मन में लिए आज ठाकुर जी की घर की लक्ष्मी की आंखों में पानी था।