कोई खिलता फूल गुलाब हो आप !
कोई खिलता फूल गुलाब हो आप !
कोई खिलता फूल गुलाब हो आप – कुछ मीठी सी सौगात हो आप,
हो सूरज की इक पहली किरण – या ढलती चांदनी रात हो आप.
हो शाम का कुछ ठहरा मौसम – या सावन की बरसात हो आप,
हो बातें खूब जुबां की कहीं – तो कहीं खामोश ज़ज्बात हो आप.
कहीं बेकरारी की फितरत – कहीं जीने का अंदाज़ हो आप,
कहीं बेतहाशा हो समुंदर – कहीं इक प्यासे की प्यास हो आप.
कहीं आँखों का हो नजारा – कहीं अनजाना कोई राज़ हो आप,
कहीं वक़्त के जैसे चलता हुआ – कहीं ठहरा रात का चाँद हो आप.
कहीं अनसुलझे से हो मौसम – कहीं सुलझे हुए जस्बात हो आप,
है मेरे अपने खूब यहाँ – पर मेरे लिए कुछ ख़ास हो आप ||