खूबसूरत अदा
खूबसूरत अदा
कल सिरहाने रखी थी चिट्ठी
जाने कहाँ गुम हो गयी।
कही तुमने पढ़कर
छुपा तो न दी।
वही दो-चार शेर मैंने
तारीफ के बाँधे थे।
मुझे पता है,
तुम्हें तारीफ बहुत
कम पसंद आती है।
इसलिए अपनी
ख्वाहिशों के शब्द
बुने थे मैंने।
वही बात पढ़ पढ़कर
तुम भी जरुर
तंग आ गयी हो।
उफ्फ ! तुम्हारी ये अदा
मेरे अल्फाजों से भी
खूबसूरत है।