बरसी औऱ जन्मदिन
बरसी औऱ जन्मदिन
है उपालम्भ, उपहार कहाँ है,
बस ताने हैं, अब प्यार कहाँ है ।
इस जन्मदिवस की, बेला पर,
आखिर क्या है, जो जश्न मनाऊँ,
आखिर अब तक, मैं क्या पाया,
किस जीत पे कोई, गीत सुनाऊँ ।
इससे अच्छा, तो ये होता,
तुम मेरी, बरसी पर आती,
जगवालों से, आकर कहती,
बिलखो मत, त्योहार मनाओ,
काले कपड़े भी, मत ओढ़ो,
घर पे, बंदनवार सजाओ ।
ये तो सच है, एक ना एक दिन,
होना ही था,
उसने भी तो, कितना खोया,
तुमको उसको, खोना ही था,
खोना जग की, रीत है यारों,
उसने भी तो, रीत निभाई ।
उसने बैर रखा, ना कोई,
उसने सबसे, प्रीत निभाई,
वो भी तो, पत्थर था आखिर,
दुख की छैनी-से, टूट गया
तुम उसके, शिकवों से छूटे,
वो भी तुमसे, छूट गया ।