यादों की बारात
यादों की बारात
सोचा यादों के समन्दर में फिर डुबकी लगाऊँ
जीवन की गाड़ी को फिर पीछे ले जाऊँ
अपने बचपन में फिर लौट जाऊँ
ननिहाल की छत की डोली पर फिर से चढ़ जाऊँ
जिम्मी को फिर से सताऊँ
भाई बहनों को फिर छेड़ जाऊँ
नानाजी से फिर से डाँट खाऊँ
मगर ऐसा हो न सका...
मगर ऐसा हो न सका...
क्योंकि
मैं भूल गयी थी
जीवन की राह पर रिवर्स गियर नहीं हुआ करते
आज जब लौट आयी हूँ यहाँ सालों बाद
फिर से वही दिन जीने तो अहसास हुआ कि
न तो जिम्मी रहा हमें भौंक के डराने वाला
ना ही भाई बहनों के पास समय रहा
ना ही नानाजी की आँखें
हमें शरारत करते हुए देख सकीं
अब लगता है जैसे
अपनी मंज़िलों की राह पर चलते - चलते
न जाने कितने ऐसे पल गंवा बैठे हम
अपना बचपन भुला चले हम
अपनों को पीछे छोड़ चले हम
ज़िन्दगी की राह की गाड़ी को
दौड़ा चले हम
दौड़ा चले हम...।