Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

PRADYUMNA AROTHIYA

Abstract

3  

PRADYUMNA AROTHIYA

Abstract

तलब

तलब

1 min
492


बचपन बीत गया

अंधियारों की परछाई पाई थी,

अनजानी राहों में 

बेखुदी की तलब ही पाई थी।

क्या था वो जो खींच रहा था

अधखुली आँखों से

न दर्द कोई था, न गम की परछाई थी,

छिप रही थी फिर भी न जाने क्यों

जो दूर कहीं अंधियारों में

बेखुदी जगाई थी।

साल पर साल बीत गए

जो मुश्किल में

जिंदगी की कहानी पाई थी,

सिमट रही थी अपने ही शब्दों में

जो दूर तलक शब्दों को 

बोने की जद पाई थी।

खाली-खाली पन्नों पर

बदनामी की कहानी

धुंध बनकर छाई थी,

मेले चले गए कब के

आवाजों ने शहरों में

गूंजने की जद पाई थी।

पैमाने छलक रहे

जो जवानी की धूल

गली में छाई थी,

अफसोस करें या न करें

बुनियादी ढाँचों में

खुदी लुटाई थी।

वेख़ुदी जो घर कर गई

उसे न छोड़ने की जद पाई थी,

मुश्किल थी राह मगर

मुश्किल में ही जीने की तलब पाई थी।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract