तड़पती लाश
तड़पती लाश
हार-मांस से गढ़ा शरीर
परिस्तिथि थामे बड़ी गम्भीर
राहीगर गुजरते लिए आश
किसी ने न ताका
किसी ने न झांका
बुझ न सकी दर्द की प्यास
सड़क पर देखने को
नित मिलती तड़पती लाश
यहां सबको जल्दी थी
शायद उसके मौत को
भी उतनी ही जल्दी थी
वह मर रहा था भूख से
या किसी बीमारी ने
उसे अपने आगोश में
जोरो से जकड़ी थी
क्यो उसे कोई
ले नहीं गया
क्यो किसी ने
उसे दो रोटी
भी नहीं दिया
बन गया वह
संसद का सवाल
या मीडिया का
न्यूज़ मसालेदार
आखिर क्यों सड़को
पर नजर आई
आज भी तड़पती लाश
वह लाश ही थी
या थी उम्मीद किसी की
या वह थी महज कठपुतली
यहां वोट बैंक की
नारे तो खूब लगे
चर्चाएं भी खूब हुई
टी वी पर उसके
लिए कई सारे बहसें
भी हमने देखी
उसके इस विषय पर
संसद में भी कुछ
दिन हंगामे हुई
लेकिन क्या मिला उसे
क्या हुआ उसे
यह लोग भूल गए
यह सच छिप गए
और वह आज भी
पड़ा रहा सड़को पर
करता रहा कफ़न
का इंतजार
लेकिन सड़को पर
ही लेटी रही
हठधर्मिता धारण किये
आज भी वह तड़पती लाश।
कुछ आयोग भी बने
आलीशान होटलों में
किसी के बिल भी भजे
लेकिन आज भी
यह गुथी सुलझ
न सकी
वह मर रहा था
भूख से, बीमारी से
या गरीबी और लाचारी
शोध इसपर
आजतक हो न सकी
वह लाश महज लाश नहीं ं
आज राष्ट्र का चर्चित मुद्दा है
सच बता दे ए पथिक
तू जिंदा है या मुर्दा है
अब न जाने क्या
इस शदी में भी
हो सकेगा उसका कल्याण
या फिर सड़को पर
फिर मिलेगा
कोई तड़पती लाश।
तड़पन उसकी कम होगी
या फिर किसी की बिल बनेगी
या आज भी आलीशान होटलों
में बैठ कर यह गुथी सुलझेगी
वह कल भी था
वह आज भी है
ढाई फुट के
फुटपाथ पर
कराहते चिल्लाते
दिल मे दर्द और
आंखों में अश्रु दबाये
की कब पूरी होगी
उसकी मन्नते
कब बुझेगी
इसकी प्यास
कब सड़को पर
से हटेगा
कब उसे
छत मिलेगा
कब मिलेगा
उसे रोजगार
कब उसके बच्चे
होंगे शिक्षित
कब होगा
उसका उपचार
क्या पूरी होगी
उसकी इच्छाएं
क्या पूरी होगी
उसकी आश
आज कलम फिर
से पूछ रहा
सच बता कब न दिखेगी
कब सड़को पर से हटेगी
कब उसकी तड़प मिटेगी
कब होगा उसका इंसाफ
होगा भी की नहीं
आ की रह जायेगा
सदा ही
पीढ़ी दर पीढ़ी
सदी डर सदी
सड़को पर यू ही
नित कोई तड़पती लाश?