अब मुक्त हूँ
अब मुक्त हूँ
जिस्म में बंधी जब तक थी
तेरी गिद्ध निगाहें
करती रही तार-तार।
मासूमियत मेरी मरती रही
प्रति पल बिखरती गयी
रेत की तरह।
एक जीवन का संचार था मुझमें
सपने कितने आँखों में थे
छीनी तुमने खुशियाँ मेरी
मौत के आगोश में।
अब मुक्त हूँ
सब बंधन से
वस्तु समझा औरत को
अब भाग रहा है क्यों मुझसे।
जीवन के बाद गर
मरकर ही घर महफूज हूँ मैं
तुझको कैसे छोड़ूँगी।
बदत्तर मौत से
जिंदगी हो तेरी
सुकून रूह को मेरी तब मिले।