जब से मोबाईल आया
जब से मोबाईल आया
हर चीज का सही वक्त, लिमिट होना चाहिये...
क्या हर वक्त मोबाईल जरूरी है ?
दिन भर , उठते - बैठते खाते - पीते ...
देर रात तक...साथ में होना सचमुच जरूरी है ?
मोबाईल ने हमारी निजी जिंदगी पर ...
अनजाने में पुरी तरह .. काबू पाया है !
अब हम उसके अधीन हो चुके हैं ...
मानो कुछ लोग तो बिलकुल दिवाने हो चुके.!
सही तकनीक का सही इस्तेमाल होना...
बेहद ज़रुरी है.. जाने कब ? कैसे ? समझ पायेंगे ?
मानो जैसे हाय स्पीड कि गाड़ी थमा दी हाथ में ..
चलाना - भगाना कैसे ? कहाँ है रुकना पता नहीं !
हाय स्पीड में गाड़ी चलाते मोबाईल पर बातें करना ...
छोटे - छोटे बच्चों के हाथ में देना नहीं, हम भूल गये हैं !
खाते पिते - मोबाईल से खेलना ,फेसबुक, व्हाट्सअप पर
चैटिंग करना ... अब हमारी आदत बन गई हैं !
हमारी जिंदगी में जब से मोबाईल आया है...
दिलो दिमाग में ... जादू सा छाया है !
मगर कब, कहाँ ? कैसे इस्तेमाल करें ?
यह हमे आज तक समझ नहीं आया है !