छटपटा मर गयी नदियां
छटपटा मर गयी नदियां
भील सरीखा हृदय भोला , तनिक प्रतिघात नहीं ,
सूफी संतों का कहना है बिन प्रेम आदम ज़ात नहीं।
चांदी से चमकते चाँद का कर कर इंतज़ार वो ,
ना रोई हो औंधे मुँह , ऐसी तो कोई रात नहीं।
नून- तेल ,लकड़ी, का ही बस करते रहे जुगाड़ वो,
क़तरा -क़तरा पिघल गया जीवन , माँ सी रात कहीं।
आग का अनुबंध लिए ,सूरज बढ़ रहा इस ओर ,
खुश फ़हमियों में ना जी , दिन है चांदनी रात नहीं।
लील गए जंगल , छटपटा मर गयी नदियां सारी ,
आज के हालात हैं ये , कहानियों की कोई बात नहीं।