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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

4.5  

Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

"चीते की चिंता"

"चीते की चिंता"

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हम जंगली चीते आजकल बड़े,परेशान हैं।

अपना देश छोड़ने से,खो चुके मुस्कान हैं।।

न्यूज,मीडिया सब तरफ हमारा मैदान हैं।

अपनी निजता लूटने से हुए बड़े हैंरान हैं।।


वो कहते हमे नही तंग करो,वन संग करो।

छद्मदिखावा करने का न कोई अरमान है।।

हम तो सीधे साधे जंगली जीव बेजुबान हैं।

पहले तुम्हारे दखल से खो चुके पहचान हैं।।


अब ओर हमको न सताओ,तुम इंसान है।

गर इतने हल्ले का पहले करते,घमासान हैं।।

तुम्हे विदेश से नही बुलाने पड़ते,मेहमान हैं।

पहले तुम यहां के जीवों का रखो ध्यान है।।


यहां गायें लंपि बीमारी से दे रही जान हैं।

दूसरों को ज्ञान देना,बड़ी सरल जुबान हैं।।

जो पहचानते अपनी कमियों का स्थान हैं।

वो कभी न देते,दूसरों को फिजूल ज्ञान है।


जिनका जिंदा होता,इस दुनिया मे,ईमान हैं।

कभी नही फेंकते,दूजो पर पत्थर अनजान हैं।।

हमको तुम लोगों ने दिया इतना सम्मान है।

इन आंखों में आंसुओ का नही रह स्थान है।।


हमारी छोड़ो,हमारे भाई-बहिन,साथियों पर।

थोड़ा बरसाओ कृपादृष्टि जल,आसमान हैं।।

यह सीना,तब गर्व से चौड़ा होगा,हे,इंसान हैं।

दिखावा छोड़,गर बेजुबां रखोगे नित ध्यान हैं।।



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