मै कविता कैसे लिखता हूँ ?
मै कविता कैसे लिखता हूँ ?
मै कविता कैसे लिखता हूँ ?
ना कोई धन,ना कोई गौरव, ना कोई प्रशंसा
मै जिंदगी जीने के लिए लिखता हूँ
मै कविता ऐसे लिखता हूँ ।
कभी दर्द ए दिल को बयां करता हूँ
कभी प्यार का इजहार करता हूँ
तो कभी प्रेमी की आश को लिखता हूँ
मैं कविता ऐसे लिखता हूँ ।
मौसम के अहसास को महसूस करता हूँ
गर्मी की तपन, बारिश की रिमझिम बुंदो को लिखता हूँ
तो कभी ठंड की पुरानी याद को लिखता हूँ
मै कविता ऐसे लिखता हूँ ।
कभी बच्चे की खिलखिलाहट देखता हूँ
कभी मां की ममता देखता हूँ
तो काग़ज़ और कलम ले उनके भाव लिखता हूँ
मै कविता ऐसे लिखता हूँ ।
कभी अनसुलझे ख़्वाब पूरे करता हूँ
कभी अपनी ख्वाहिशों में जी लेता हूँ
तो कभी खुशी के खजाने की खोज में लिखता हूँ
मै कविता ऐसे लिखता हूँ ।
अपनी मैं सोच लिखता हूँ
जज्बातों के लफ्ज़ लिखता हूँ
पर्यावरण की ओर से लिखता हूँ
हर दुःख का दौर लिखता हूँ
मै कविता ऐसे लिखता हूँ ।