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Gaurav Shrivastav

Classics Drama Fantasy

5.0  

Gaurav Shrivastav

Classics Drama Fantasy

गाँव की याद आ गई...

गाँव की याद आ गई...

1 min
358


यूहीं अचानक आज गाँव की याद

आ गई है,

उन खिलखिलाते खेतों की हरियाली

याद आ गई है,

थोड़ा अजीब ही सही मगर,

खेतों में गन्ना चूसने की बात याद

आ गई है,

आज मुझे गाँव की याद आ गई है।


रिश्तों के बंधन की कुछ मिठास

याद आ गई है,

धुँधली ही सही मगर,

तस्वीर याद आ गई है,

आज मुझे गाँव की याद आ गई है।


मिट्टी के सौंधी खुशबू याद आ गई है,

कच्चे ही सही मगर, 

यूं मकानों की याद आ गई है,

आज मुझे गाँव की याद आ गई है।


स्वादिष्ट भोजन के स्वाद की याद

आ गई है,

देशी ही सही मगर,

दादी के हाथ की स्वाद याद आ गई है,

आज मुझे गाँव की याद आ गई है।


वो कुटिया के खेलकूद की याद आ गई है,

हार ही सही मगर,

दोस्ती की जीत की याद आ गई है,

आज मुझे गाँव की याद आ गई है।


तालाब और नदियों के पानी की याद गई है,

मैला ही सही मगर,

उन में नहाने की बात की याद आ गई है,

आज मुझे गाँव की याद आ गई है।


मास्टर जी की वो डांट याद आ गई है,

पढ़ाई ना सही मगर,

जीवन की मूल्यों की याद आ गई है,

आज मुझे गाँव की याद आ गई है,

आज मुझे गाँव की याद आ गई है।


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