समानांतर जीवन...
समानांतर जीवन...
उम्र की डगर पर
जीता चलता है मनुष्य
दो जीवन समानांतर
एक बाहरी दुनिया
के लिए
एक कहीं भीतर
अपने लिए
कभी न्याय कर
पाता है
भीतरी जीवन से
कभी छटपटाता
रह जाता है
उसे जीने के लिए
अधिकतर तो
लोगों की ख़ातिर
ऊपरी जीवन ही
जीता रह जाता है
बहुत कठिन है
दोनों जीवन में
संतुलन साध पाना...