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niharika prasad

Drama Fantasy

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niharika prasad

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देवों के देव महादेव, हे शिव

देवों के देव महादेव, हे शिव

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मानव ने पार की ऊंचाईयां अनेक,

किन्तु उनमें बचा एक शेष है,

बर्फ़ की परतों से ढका है कैलाश, रहस्यमय उसका वेश है। 

मानसरोवर के पार, कहानियों का वह स्रोत,

कल्पित देवों का जैसे वहाँ निवास हो। 


चमचमाता जैसे कोई दिव्य अमनजोत,

गुप्त जिसका पूरा इतिहास हो। 

उन्हीं गहराईओं में जहाँ कोई ना पहुंच पाया,

मानव क्या, जहाँ रोशनी की हर किरण भी हिचकिचाए,

उस घोर अंधियारे में, एक ही है साया,

जिसके प्रत्येक चरण से, संपूर्ण कैलाश काँप जाए।                


रक्त के सागर में ,एकाएक भंवर उठ आया,

महाशक्तिमय ने कुछ ऐसा ताण्डव मचाया,

बलिष्ठ शरीर पर लिए, नागों का साया 

नागभूषण, नटराज, संछिप्ततया मुस्कुराया।


एक प्रतिबिंब, है,या अद्भुत एक स्वप्न,

आक्रोश के भंवर से प्रकट 

भैरव रूप में, प्रकट क्यों त्रिलोचन ?


बिखरे जटाओं में सर्पों की फुफकार है,

कैलाशनाथ के राज्य में क्यों आज ये हाहाकार है ?

देवों के देव, महादेव, तू तो पालनहार है,

लोकांकर है तू, फिर क्यों ये विनाश है ?


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