लुप्त होते त्यौहार
लुप्त होते त्यौहार
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छठ में उभरता हुआ सूरज सा लाल,
झंडे का वह हरा, जो लहराता हर साल,
खेत में लहलहाते हुए सरसों सा पीला
और मेरी इस स्याही जैसा नीला I
इन रंगों से न जबतक मल दूँ तेरे गाल,
हवा में न जबतक उड़े रंग गुलाल,
अब कहो कैसी होगी बिन पटाखें की दीवाली?
कैसी होगी बिन पतंगबाजी की संक्रांति?
गणेश चतुर्थी पर जबतक नारे व नाच न हो,
अरे होली में जबतक, ज़रा सी भांग न हो I
बिन आग की क्या होती है लोहरी ?
जन्माष्टमी जिसमें दही हांड़ी न फोड़ी?
ऐसा चलता रहा जनाब, तो बचेगा न कोई जशन,
त्यौहार मनाएंगे प्रति वर्ष, सिर्फ फ्लिपकार्ट और अमेज़न!
