STORYMIRROR

niharika prasad

Others

4  

niharika prasad

Others

लुप्त होते त्यौहार

लुप्त होते त्यौहार

1 min
371

छठ में उभरता हुआ सूरज सा लाल, 

झंडे का वह हरा, जो लहराता हर साल,


खेत में लहलहाते हुए सरसों सा पीला 

और मेरी इस स्याही जैसा नीला I 


इन रंगों से न जबतक मल दूँ तेरे गाल,

हवा में न जबतक उड़े रंग गुलाल,


अब कहो कैसी होगी बिन पटाखें की दीवाली?

कैसी होगी बिन पतंगबाजी की संक्रांति?


गणेश चतुर्थी पर जबतक नारे व नाच न हो,

अरे होली में जबतक, ज़रा सी भांग न हो I 


बिन आग की क्या होती है लोहरी ?

जन्माष्टमी जिसमें दही हांड़ी न फोड़ी?


ऐसा चलता रहा जनाब, तो बचेगा न कोई जशन,

त्यौहार मनाएंगे प्रति वर्ष, सिर्फ फ्लिपकार्ट और अमेज़न!



Rate this content
Log in