ये मन
ये मन
तेरे पलकों के झरोखें पे
अटका हुआ ये मन
तेरे घने केशों में
उलझा रहा ये मन
नटखट एक बच्चे की मुस्कान है तू
बिन डोर के पतंग की उड़ान है तू
लोहरी की रात की आग है तू
होली की मनचली गुलाल है तू
इस मतलब की दुनिया में,
बेमतलब बातें करना चाहता ये मन
रुई के फाहें की तरह,
अज्ञात उड़ान भरना चाहता ये मन
कड़ी धूप में मीठी छांव है तू
टूटते तारे को देख मांगी मुराद है तू
शर्माती दुल्हन की अनकही हाँ है तू
नींद को भिंगोता हुआ ख्याब है तू
इस महफिल में शायर बहुत है,
जानता ये मन
पर हार मानेगा नहीं,
ऐसा बावरा ये मन
मेरे जिस्म की रूह है तू
बेखयाली में भी ख्याल है तू
गैरों में अपनी है तू
मेरे दिल की हर धड़कन है तू।

