तू सबल है
तू सबल है
देवों की प्रतिमा मध्य उपस्थित, पूजा सामग्री लिए अगिनत उपासक,
आखिर कब आएगी वो घड़ी जब प्रकट होंगे ईश, वो दुख विनाशक।
एक सज्जन उस भीड़ में, दिखते है बड़े असहाय,
बलिष्ठ शरीर, कीमती वस्त्र धरे, फिर भी बैठे हाथ फैलाये।
जिस प्रकार माँ के ध्यान के लिए, एक नन्हा शिशु शोर करता है,
कुछ उसी कदर भक्त घंटियों को बारम्बार ठनठनाता, मंत्र बोलता है।
जब परमात्मा ने मनुष्य की रचना की इस सृष्टि में,
एक अंश उनका भी मानो, उसमे भी एकाग्र हुआ।
परं ज्योति मानो, खण्डित हुई टुकड़ों टुकड़ों में,
एक बड़े सूर्य से छितरे चमचमाते तारों की कदर, मनुष्य तेरा निर्माण हुआ।
तू अव्वल है, तू सबल है, क्या कमी तुझमें कि तू स्वयं पर विश्वस्त नहीं?
हाथ की लकीरें क्या पत्थर पे खुदी हैं ?
अरे किस्मत तो उनकी भी है, जिनके हाथ ही नहीं।
परं आत्मा का एक अंश, हे मनुष्य तुझमें समाया,
आत्मा बन तेरे ही भीतर, जब उन्होंने तुझे रचाया।
तभी तो संतो ने कहा है,
'ना मैं मंदिर, ना मैं मस्जिद, ना काबे कैलास में,
खोजि होये तो तुरंतै मिलि हों, पल भर की तालास में।
असफलता का ये अड़चन,
तेरे मार्ग का हर काँटा; अल्पकालिक है, एक साजिश है,
खुदा को तो देखना है तेरा बल, और तेरी ख्वाइश है।
फिर क्यों तू मेरे द्वारा निर्मित, मासूम कलियों को तोड़ता है ?
और उन निर्मित कलियों को गुथ, मेरी प्रतिमा पे छोड़ता है ?
कष्ट के पलों में, मंदिरो में, तू दिखता सात्विक सदा,
पर मंदिरो के बाहर भी, ईश्वर देखता तुझे सर्वदा।
फिर क्यों मनुष्य तू ईश से कपट कर बना एक वंचक,
चारों ओर विनाश फैला कर, आज तू दिखता बस एक भक्षक।
चोरी, घृणा, ईर्ष्या या लोभ की आती जब तुझमें वो भावना,
तब अपनी ही गहराईओं से सुन, आत्मा का तुझे पुकारना,
सुन ले तू, अब भी समय है, अपने भीतर का संताप,
प्रत्याख्यान करना ना उसे, नहीं तो सह तू दैविक अभिशाप।
