प्रकृति
प्रकृति
प्राकृतिक सौन्दर्य का विचरड़ करना खुद में ही अद्भूत महसूस कराता है,
जल गिरता है जब बून्द बनकर बादल से तो भीगता है हर कड,
हवा से हिलता पत्ता भी गिरते हुए पौधे के फूल पर सुंदर लगता है,
मिट्टी उड़ती हुई हर किसान को पसंद आती है तो गीली होने पर वो महकाती है हर घर।
पर भूल जाते है हम की हम भी तो है जो इस प्रकृति की सौन्दर्य को करने लगे है नष्ट,
हमे रुकना होगा और रोकने होंगे यह बढते गलत कदम।