सम्पूर्ण है वह
सम्पूर्ण है वह
तेज धूप हो, झुलसता हो तन
शीतल छाँव बन जाती है वो,
सूने दिन हों सूनी रातें
कान में कुछ कह जाती है वो !
पिहू पिहू चिल्लाए पपीहा
स्वाति की बूँद बन जाती है वो,
पथ में काँटे हों घायल पग द्वय
आँचल से सहलाती है वो !
श्रृंगार-सौंदर्य चंचल मनभावन
रस - रंग के पर्व मनाती है वो,
ममता, समर्पण, माधुर्य वही है
परहित में खुद मिट जाती है वो !
कोमल तन-मन मगर हौसला
कि वक्त से भी भिड़ जाती है वो,
लक्ष्मी, सरस्वती, महिषासुरमर्दिनी
सृष्टि का चक्र चलाती है वो !
जननी भगिनी प्रियतमा संगिनी
जग में औरत कहलाती है वो !
जननी भगिनी प्रियतमा संगिनी
जग में औरत कहलाती है वो !!