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Anita Sharma

Inspirational

4.6  

Anita Sharma

Inspirational

मेरा स्वाभिमान

मेरा स्वाभिमान

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रिहा खुद को किया आज मैंने 

उन कुरीतिओं से...जो करती थीं घात

भ्रमजाल के परिवेश से निकल कर

आज करने लगी खुदको आत्मसात

इस संघर्ष की राह में खुद प्रेरणा बनूँगी

मुश्किलों की फिर मेरे आगे क्या बिसात


तोड़ रही हूँ अतिवादी धारणाओं को 

जो रोक रहीं हैं नारीत्व का विकास

अबला बनकर क्यों वंचित रहूँ

जब जीवित है मेरा आत्मविश्वास


ज़िन्दगी के उस मुहाने पर बैठी हूँ आज

जब खो देते लोग  हैं...आत्मसम्मान 

लेकिन मैं बनकर एक सशक्त नारी 

प्रतिबद्ध हूँ जीतने को...भरती हूँ हुँकार

सौ बार गिरूँगी , फिर भी सम्भलूँगी

पर मुश्किलों में कभी नहीं मानूँगी हार


कर लिया है...अब दृढ़ निश्चय भी

जब अपने दिल में मैंने लिया ये ठान 

कौन तोड़ेगा अब हौसला मेरा 

जब रक्षित है पूरी तरह मेरा स्वाभिमान


कभी मत समझना इसको गुरूर मेरा 

क्यूँकि ये आत्मगौरव  की अनुभूति है

कुरेद कर जीवित रखे हैं घाव कि... 

अवशोषित करनी मुझे हर कुरीति है

नाउम्मीदी में भी उम्मीदें तलाशनी हैं 

क्या हुआ जो विषम परिस्थिति है


मैं सोच कर रिक्त निकली हूँ घर से

एक सेनानी सा दिल में जज़्बा भी

विद्रोह सा है उमड़ता मेरे रग रग में

पर हूँ तटस्थ और...कुछ विरक्त भी


आज निहारती हूँ उस अनंत की ओर,

सुन रही हूँ अपने जज़्बे की जीत का शोर

अब शांत हो रहे हैं उद्विग्न मन के सारे दर्द 

आ चुकी हाथ मेरे उस सफलता की डोर 

गम मुझे ये नहीं कि कोई साथ क्यों नहीं 

ख़ुशी है कि मेरी इस लड़ाई के दौर में भी

मेरा स्वाभिमान कभी चोटिल हुआ नहीं



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