ज़रा मैं ज़िंदादिली से आगे बढ़कर देख लूँ। ज़रा मैं ज़िंदादिली से आगे बढ़कर देख लूँ।
रिहा खुद को किया आज मैंने उन कुरीतिओं से...जो करती थीं घात। रिहा खुद को किया आज मैंने उन कुरीतिओं से...जो करती थीं घात।
ये कविता उन सब लोगों को समर्पित है जो अपंग होते भी ज़िन्दगी से हार नहीं मानते, डटे रहते हैं, ज़िन्दगी... ये कविता उन सब लोगों को समर्पित है जो अपंग होते भी ज़िन्दगी से हार नहीं मानते, ड...