अपनी जीत और अपनी हार की अपने जश्न, अपने त्यौहार की इस युग की, इस संसार की अपनी जीत और अपनी हार की अपने जश्न, अपने त्यौहार की इस युग की, इस संसार की
ज़रा मैं ज़िंदादिली से आगे बढ़कर देख लूँ। ज़रा मैं ज़िंदादिली से आगे बढ़कर देख लूँ।
ये कविता उन सब लोगों को समर्पित है जो अपंग होते भी ज़िन्दगी से हार नहीं मानते, डटे रहते हैं, ज़िन्दगी... ये कविता उन सब लोगों को समर्पित है जो अपंग होते भी ज़िन्दगी से हार नहीं मानते, ड...