माँ (ग़ज़ल)
माँ (ग़ज़ल)
थपकियाँ दे सुलाती रही माँ हमें
लोरियां भी सुनाती रही माँ हमें
नींद अब वो सुकूँ की नहीं मिलती हैं।
गोद में जो दिलाती रही माँ हमें।
भूख भी लगती थी, और खाते भी थे,
हाथ से जब खिलाती रही माँ हमें।
छींक से इक हमारी वो डरती रही।
फिर दवा भी पिलाती रही माँ हमें।
गुस्से में जब पिता का बरसता क़हर,
तब पिता से बचाती रही माँ हमें।
गलतियों से हमें लेना हैं बस सबक,
याद भी यह कराती रही माँ हमें।
माँ पिता का "कमल" कर्ज़ चुकता नहीं,
बात ये भी सिखाती रही माँ हमें।