पथिक
पथिक
आये बन हम पथिक इस संसार में,
परन्तु हैं …..
राहें अलग-अलग,
चाल अलग-अलग,
विचार अलग-अलग,
संघर्ष अलग-अलग,
समय अलग-अलग,
जूझते विभिन्नताओं से अलग-अलग,
मिलते कर्मों के फल अलग-अलग,
परन्तु है….
गंतव्य एक सब का,
कर त्याग शरीर का,
पहुँच जाना है वहीं,
आये जहाँ से इस संसार में।
मंजरी से भरपूर पथ जिस पथिक का,
चल पड़े यदि वह भर अभिमान मस्तिष्क में,
तो निश्चित है ठोकर खाना उसका,
हो जाता चूर-चूर दंभ, छा जाता तिमिर,
बिखर जाते काँटे भी ,
सुमन के साथ-साथ पथ पर।
परन्तु…..
चलते जो राही कुसुम भरी राह पर,
सम्भल-सम्भल कर,
जमा पैर धरती पर,
करते हुए सम्मान पुष्पों का,
वो छू लेते आसमां को धरा से।
शूल से भरे पथ जिस बटोही के,
अपनी इच्छा शक्ति, लगन और परिश्रम से,
कर सकता वह परिवर्तित शूल को फूल से,
कर दूर अँधियारा कर सकता,
प्रकाशित जीवन अपना।
परन्तु……
राहगीर जो जाता घबरा देख राह कंटक भरी,
हो खिन्न बहा देता आत्मबल,
साथ-साथ नयनों के नीर के,
छा जाता अँधियारा घना,
जीवन में उसके।
मिले डगर जीवन की जैसी भी,
करते हुए आदर, बढ़ते चलें निडर,
कर्म पथ पर, दे तिलांजलि अहं को,
पूर्ण निष्ठा, सत्यता और निष्कपटता,
को बना अपना सहभागी,
कर सार्थक जीवन पथिक,
पहुँच जायेगा गंतव्य पर अपने।।
