नारी
नारी
हाँ मैं नारी हूँ इक जिम्मेदारी हूँ मैं
ना मैं अबला हूँ ना ही बेचारी हूँ मैं
सबसे पहले तो मैं बिटिया रानी बनी
छोड़ बाबुल का घर मैं सयानी बनी
मैं पिता घर रही या पति घर रही,
दोनों घर की सजग साझेदारी हूँ मैं
न मैं मुँह ज़ोर हूँ न मैं कमजोर हूँ
रूप दुर्गा का काली का पुरज़ोर हूँ
बदनीयत से हमेशा अकेली भिड़ी
तेज़ तलवार या फ़िर कटारी हूँ मैं
मोम के जैसे सांचों में मैं हूँ ढली
मैं ही जननी बनी सृष्टि मुझसे चली
जिंदगी में मिली लाख मुश्किल मगर
गर्दिशों में कभी भी ना हारी हूँ मैं
माँ से बढ़कर ख़ुदा तेरी रहमत नहीं
कोई कहता रहे मैं तो सहमत नहीं
तुलसी आंगन की हूँ मौन रहकर के भी
घर को महकाये जो फुलवारी हूँ मैं
मेरे हिस्से की चाहो तो ले लो ज़मीं
हौसलों को न हो आसमाँ की कमी
चाँद सूरज को बनने दो मंज़िल मेरी
आसमां जीते वो बेकरारी हूँ मैं