खुशी
खुशी
ईतना मुश्कील भी नही खुश रहना,
अब भी सब ठीक हो सकता है।
बस ईतनीसी समज हो के,
महज दो-चार रोटी से मिटती भूख है।
शर्त ये, की भूख पेट की ही हो,
ना रूतबे की ना गरुर की।
ना शौरत की ना ऐय्याशी की,
ना पैसे की ना जायदाद की।
हो तो हो सच्चाई की, सादगी की,प्यार की,
दोस्ती की, कुदरत के गीत संगीत की।
शायर कई, कह गए, कह गए कितने कबीर,
पर गौर कर वो इंसान कैसा ?
नासमजी मे उम्र गवाए,
अंधा नशेमे चूर हैरान मै।